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Patna: Karvachauth: यूं तो करवाचौथ व्रत को महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती है. लेकिन क्षेत्र, काल जाति के अनुसार इसमें आधुनिकता भी हावी होती जा रही है. बीते दो दशक में फिल्मों ने करवाचौथ का सिनेमाई कलेवर तैयार कर दिया है.
आज बदल गया है व्रत का माहौल
आज करवाचौथ के व्रत का मतलब है, छलनी से चांद देखा, पति के हाथ से पानी पीया, उनसे गिफ्ट लिया और बाहर कहीं डिनर के लिए निकल गए, लेकिन असल में करवाचौथ इससे बहुत अलग है. राजस्थान-पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से को छोड़ जब आगे आप पूर्व की तरफ बढ़ेंगे तो त्योहार का असली मकसद और सही परंपरा का भी पता चलेगा.
पश्चिम चंपारण में अलग है करवाचौथ
बिहार में चंपारण इलाके में कई अलग तरह से करवाचौथ मनाया जाता है. सुदूर गांव के कई इलाके ऐसे हैं जहां परंपरा के मुताबिक क्षेत्र विशेष में यह पर्व मनाने की विधि भी अलग अलग है. पश्चिम चंपारण के उतरांचल में नेपाल के तराई इलाकों में एक जनजाति रहती है थारु.
थारु जनजाति के लोगों का व्रत
वनों, नदियों पहाड़ों की गोद में बसे थरुहट में तीन या चार लाख की आबादी में थारु जनजाति के लोग रहते हैं. ये लोग आज भी करवाचौथ को अपने पारंपरिक विधि से ही मनाते आ रहे हैं. थारु जाति के लोग करवाचौथ को गउर पर्व कहते है. यहां की कुंआरी कन्याएं सुहागिन महिलाएं दोनों इस पर्व को काफी उत्साह के साथ मनाती है.
यह है परंपरा
यहां सदियों पुरानी परंपरा है कि गउर (करवाचौथ) व्रत को सुहागिन एवं कुंआरी कन्याएं दोनों पूरे उत्साह के निर्जला करती है. इस दिन व्रती नदी में स्नान कर ही घर लौटती है. उसके बाद सामूहिक रुप से दिवाल पर बनाए गए परंपरागत रंगोली के समीप बैठकर विधिवत पूजा झमटा डांस करती है.
ऐसे तोड़ती हैं व्रत
जब चांद दिख जाता है तो कई वृद्ध महिलाएं सभी व्रतियों का लट (बाल) दूध से धोती हैं और उसके बाद सभी व्रतियां पानी पीकर अपना व्रत तोड़ती है. इसके बाद चावल के आटे का बना पीठा मछली चांद को दिखाकर खाती है.