श्राद्ध कल्प के लिए क्या-क्या है जरूरी, रावण से जानिए जरूरी सामग्री
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श्राद्ध कल्प के लिए क्या-क्या है जरूरी, रावण से जानिए जरूरी सामग्री

Pitru Paksha 2021: वेदों में सबसे प्राचीन ऋग्वेद अष्टहोम और मंत्रों के साथ तर्पण की व्याख्या करता है, वहीं यजुर्वेद में तर्पण करने को भी यज्ञ के समान ही बताया गया है.

 

श्राद्ध कल्प के लिए क्या-क्या है जरूरी. (फाइल फोटो)

Gaya: श्राद्ध पक्ष की शुरुआत के साथ तीर्थराज गयाजी में श्रद्धालु जुटने लगे हैं. इस वक्त बिहार के गया क्षेत्र में कुंभ जैसा माहौल है और लोग अपने पितरों का तर्पण करने यहां पहुंच रहे हैं. सनातन परंपरा में तर्पण प्राचीन काल से चली आ रही प्रक्रिया है. सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे पितरों-पूर्वजों को पानी देना कहते हैं. पानी देना इसलिए क्योंकि इस प्रक्रिया में तिल मिले जल को पूर्वजों का नाम लेकर भूमि पर चढ़ाया जाता है. इसके साथ ही पिंडदान भी किया जाता है.

कैसे करें पिंडदान
पिंडदान कैसे किया जाए और श्राद्ध कल्प का क्या विधान है, आज के आधुनिक युग में ये एक जटिल सवाल है. जटिल इसलिए क्योंकि प्राचीन ज्ञानी अब नहीं रहे और संस्कृति-संस्कारों को लेकर हमारा उपेक्षा का भाव हमें इन पद्धतियों से दूर ले लिया है. ऐसे में अगर आप अपने पितरों का श्राद्ध करने गया तीर्थ पहुंचने वाले हैं तो जान लीजिए कि श्राद्ध कर्म में क्या जरूरी वस्तु है.

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ऋग्वेद-यजुर्वेद में है वर्णन
इतिहास और पौराणिक आख्यानों पर नजर डालें तो इसका जवाब हमें कई तरह से मिलता है. वेदों में सबसे प्राचीन ऋग्वेद अष्टहोम और मंत्रों के साथ तर्पण की व्याख्या करता है, वहीं यजुर्वेद में तर्पण करने को भी यज्ञ के समान ही बताया गया है. इसके अलावा रामायण-महाभारत जैसी कथाओं में श्राद्ध प्रक्रिया के पूरे विवरण मिलते हैं. इन्हीं में से एक कथा श्रीराम के वनवास के दौरान की है. जब उन्हें पता चलता है कि पिता महाराज दशरथ की मृत्यु हो गई है तो वे उनका श्राद्ध करने के लिए तत्पर होते हैं.

भारत एक खोज में लोककथा
रामायण की यही कहानी रामचरित मानस और अन्य महाकाव्य में लिखी है, इसके अलावा इस प्रसंग के कई अलग-अलग वर्जन लोकशैलियों में मिल जाएंगे. प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने अपनी किताब भारत एक खोज (द डिस्कवरी ऑफ इंडिया) में ऐसी ही एक लोककथा का जिक्र किया है. इस लोककथा में अन्य कहानियों से उलट यह बताया जाता है कि रावण सीता को हरने के लिए ऋषि वेश बनाकर पहुंचा हुआ है. ठीक इसी समय राम और सीता पिता के श्राद्ध के विषय पर चर्चा कर रहे हैं.

सीता हरण से पहले का है प्रसंग
तब रावण उनकी कुटिया में प्रवेश करता है. औपचारिक सत्कार के बाद रावण श्रीराम से कहना शुरू करता है. 'श्रीमान मैं कश्यप गोत्र का हूं. मैंने वेद की समस्त शाखाओं मनुस्मृति, माहेश्वर रचित योगशास्त्र, बृहस्पति के अर्थशास्त्र, मेगातिथि के न्याय शास्त्र और प्राचेस्त्र के श्राद्धकल्प पद्धति का अध्ययन किया है.'

क्या कहा आपने प्रभु? श्राद्ध कल्प पद्धति? राम ने पूछा. तब ऋषि बना रावण झूठे आश्चर्य का दिखावा करता है और पूछता है कि अन्य सभी विषयों को छोड़कर आपकी रुचि श्राद्ध पद्धति में क्यों है?
तब श्रीराम कहते हैं कि मेरे पिता अब नहीं रहे, इसीलिए अब यही शास्त्र मेरे लिए उचित है. ऐसे में आप ये बताएं महाराज, पिंडदान के समय मैं किन वस्तुओं से पितरों को संतुष्ट कर सकता हूं.

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रावण ने बताई श्राद्ध की जरूरी वस्तुएं
रावण, जो एक ज्ञानवान ब्राह्मण था और यहां उसने अपने असल पांडित्य और ज्ञान का ही परिचय दिया. रावण कहता है कि जो श्रद्धा से दिया जाए वही श्राद्ध है. तब राम कहते हैं, जो अश्रद्धा से दिया जाता है उसे पितर अस्वीकार कर देते हैं. इसीलिए मैं आपसे विशेष वस्तु के बारे में पूछ रहा हूं, जिसे पाकर मेरे पिता की आत्मा संतुष्ट हो सके.

ये सवाल सुनकर रावण सभी दिव्य और जरूरी वस्तुओं को गिनाना शुरू करता है. रावण कहता है कि हे युवक सुनो- मनुष्यों के लिए श्राद्ध करने में जरूरी वस्तुएं बताई गई हैं, वो ये हैं, वनस्पतियों में दरभाकुश, औषधियों में तिल, शाकों में कलाय, मछलियों में महाशपर, पक्षियों में सारस और पशुओं में गाय, गेंडा या स्वर्ण मृग. इनमें से जिससे भी श्राद्ध किया जाएगा, उसे पाकर पितर स्वर्ग में देवताओं की भांति रहेंगे.

लोककथा के मुताबिक, रावण ने स्वर्ण मृग की बात षड्यंत्र में कही थी, क्योंकि वह मारीच को पहले ही स्वर्ण मृग बनाकर जंगल में ले आया था. लेकिन, इसके अलावा रावण ने जो बताया वो सभी वस्तुएं असल में श्राद्ध कल्प के लिए जरूरी हैं. ऐसे में अगर आप बिहार के गया जी में पिंडदान के लिए पहुंचे हैं तो अपने पुरोहित से इन वस्तुओं पर विचार जरूर कर लें. इससे जरूर आपके पितरों को सच्चा श्राद्ध फलित होगा.

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