झारखंड में व्यापारियों के लिए सिक्का बना सिरदर्द, बैंक-आरबीआई लेने से कर रहे इंकार
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झारखंड में व्यापारियों के लिए सिक्का बना सिरदर्द, बैंक-आरबीआई लेने से कर रहे इंकार

सिक्के कौन गिनेगा. कभी कहता है कि सिक्के रखने के लिए जगह नहीं है. पहले से ही हमारे पास सिक्कों की भरमार है. नए करेंसी चेस्ट खोलने की इजाजत मांगी गई है. 

 बैंकों के द्वारा सिक्के जमा नहीं लिए जाने के मामले में पत्र भी लिखा गया है.

रांची: झारखंड में छोटे व बड़े व्यापारियों के लिए सिक्का परेशानी का सबब बन गया हैं. उनके पास सिक्कों का अंबार लग गया है. इस मामले को लेकर जब भी आरबीआइ के पास शिकायत होती है, तो अधिकारी साफ कहते हैं कि बैंकों को सिक्के लेने के निर्देश दिये गए हैं, लेकिन बैंक नहीं सुन रहा हैं और निर्देश कागजों में सिमट कर रह गये हैं. 

सिक्का की समस्या हर दिन बढ़ती जा रही है. बैंक कभी कहता है कि स्टाफ की कमी है, सिक्के कौन गिनेगा. कभी कहता है कि सिक्के रखने के लिए जगह नहीं है. पहले से ही हमारे पास सिक्कों की भरमार है. नए करेंसी चेस्ट खोलने की इजाजत मांगी गई है. 

 

वहीं, बैंककर्मियों का कहना है कि सारे करेंसी चेस्ट फुल हो गये हैं. आरबीआई जब तक सिक्कों को वापस नहीं लेगा तब तक कोई समाधान नहीं है. जल्द-से-जल्द नए करेंसी चेस्ट खोलने की इजाजत दी जाए. इसके लिए बैंकों ने आवेदन भी दे रखा है. आरबीआई भी बैंकों को नए सिक्के नहीं दे रही है. कई बार पत्र लिखा गया, कोई कार्रवाई नहीं हुई और न कैमरे के सामने अधिकारी तैयार हैं.

बैंकों के द्वारा सिक्के जमा नहीं लिए जाने के मामले में झारखंड चेंबर सहित विभिन्न संगठनों ने आरबीआई को कई बार पत्र भी लिखा है. बैंकों में ग्राहकों से हर दिन केवल 1,000 रुपये तक के सिक्के ही लिए जा रहे हैं, जबकि बैंक शाखाएं सिक्के लेने से सीधे इनकार कर रही हैं. एफएमसीजी के व्यवसाय में जुड़े डिस्ट्रीब्यूटर बताते हैं कि दुकानों में सिक्के अधिक आते हैं, लेकिन बैंक जरूरत के अनुसार इन्हें जमा नहीं लेता है. 

झारखंड चेंबर के एफएमसीजी उप समिति के चेयरमैन व डिस्ट्रीब्यूटर संजय अखौरी कहते हैं कि रांची में ही विभिन्न डिस्ट्रीब्यूटरों के पास एक करोड़ रुपये से अधिक के सिक्के फंसे हुए हैं.  उनके पास हर दिन कलेक्शन में लगभग 25,000 रुपये के सिक्के आते हैं, जबकि बैंक 100 पीस ही सिक्का लेता है. 10-12 लाख रुपये के सिक्के उनके पास भी हैं. वहीं, झारखंड चैम्बर के अध्यक्ष का कहना है कि अगर बैंक या आरबीआई व्यवसायियों की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकती तो ऐसी संस्थाओ का होना बेकार है.