गुमनामी में जी रहा देवघर का यह पॉपुलर कलाकार, झारखंड सरकार से है मदद की आस
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गुमनामी में जी रहा देवघर का यह पॉपुलर कलाकार, झारखंड सरकार से है मदद की आस

देवघर के झूमर आदि ने अपना ऊंचा मुकाम हासिल किया है लेकिन एक से बढ़कर एक चित्रकार होने के बावजूद पेटिंग में शहर पिछड़ जाता था. इस पिछड़ेपन को दूर करने के लिए देवघर में बसे और देवघर के ही बनकर रह गए नरेंद्र पंजियारा ने बीड़ा उठाया. 

 

गुमनामी में जी रहा देवघर का यह पॉपुलर कलाकार. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Deoghar: एक कलाकार की कलाकृतियां जब पहचान की मोहताज हो जाए तो धीरे-धीरे कलाकार का मनोबल टूटने लगता है और जब कलाकार का मनोबल टूटता है तो वो गुमनामी के अंधेरों में खो जाता है. यह पंक्तियां किसी बड़े साहित्यकार के साहित्य की चंद्र लाइनों में से नहीं है, इस वेदना को एक कलाकार महसूस ही नहीं बल्कि इस पीड़ा से गुजर भी रहा है. हम बात कर रहे हैं देवघर के प्रसिद्ध कलाकार नरेंद्र पंजियारा की.

देवघर की अपनी नहीं है कलाकारी 
नटराज की नगरी में कला की विविधता है. बाबा वैद्यनाथ की अनुकंपा से इस माटी में एक से बढ़कर एक कलाकारों का सृजन हुआ. कभी एकीकृत बंगाल में आने वाला देवघर सांस्कृतिक तौर पर संपन्न क्षेत्र में शुमार रहा है. अतीत में बंगाल के ही संसर्ग का नतीजा रहा कि देवघर को विरासत में नैसर्गिक कला प्राप्त हुई. वर्षों पुराने कला की विरासत होने के बावजूद भी देवघर में कला का कैनवास अधूरा रह गया था. इसका एकमात्र कारण देवघर की अपनी कोई ट्रेडमार्क कलाकारी का नहीं होना था. 

नरेंद्र पंजियारा ने उठाया बीड़ा
हालांकि, संगीत के क्षेत्र में देवघर के झूमर आदि ने अपना ऊंचा मुकाम हासिल किया है लेकिन एक से बढ़कर एक चित्रकार होने के बावजूद पेटिंग में शहर पिछड़ जाता था. इस पिछड़ेपन को दूर करने के लिए देवघर में बसे और देवघर के ही बनकर रह गए नरेंद्र पंजियारा ने बीड़ा उठाया. उन्होंने बैद्यनाथ पेंटिंग के नाम से बाबा बैद्यनाथ मंदिर की परंपराओं को अपने नजाकत भरी ब्रश से कैनवास पर उतारा. अब उनकी बैद्यनाथ पेंटिंग इनदिनों खूब सुर्खियों में हैं.
 
नरेंद्र ने कहा...
नरेंद्र कहते हैं, 'देवघर में कला की असीम संभावनाएं हैं लेकिन देवघर की अपनी एक पेंटिंग नहीं होना दुखद पहलू था. इसे दूर करने का मैंने गिलहरी प्रयास किया है. मिथिला की मधुबनी पेंटिंग ने जिस तरह शोहरत और प्रसिद्धि अर्जित किया है. देवघर की चित्रकारी भी आसानी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हो सकती है.' उन्होंने कहा कि बैद्यनाथ पेंटिंग बाबा मंदिर की संपूर्ण धार्मिक परंपराओं पर आधारित है.

एक्रिलिक कलर से बनती है पेंटिंग
उन्होंने आगे कहा कि अभी तक कुल 108 पेटिंग बनाई गई हैं, जिसमें बाबा मंदिर में पुरातन परंपरा कांचाजल, सरदारी पूजा, दैनिक पूजा, श्रृंगार पूजा, जनेऊ, विवाह, फूल वाले, विल्वपत्र प्रदर्शनी, शिव बारात समेत 108 विविध अनुष्ठान और मंदिर की तरह-तरह की व्यावसायिक और धार्मिक गतिविधियां शामिल हैं. सभी चित्रों को एक्रिलिक कलर से बनाया गया है. 

बैद्यनाथ पेंटिंग को बनाया जाए ब्रांड
नरेंद्र कहते हैं कि उन्हें भारत सरकार से वैद्यनाथ पेंटिंग के लिए फैलोशिप भी मिल चुका है लेकिन इसे स्थानीय तौर पर प्रोत्साहन देने की जरूरत है, झारखंड सरकार को इसके लिए पहल करने जरूरत है ताकि बैद्यनाथ पेंटिंग को ब्रांड बनाया जा सके और मिथिला पेंटिंग के तर्ज पर देवघर की अपनी पेंटिंग हो. 

कला को पुनर्जीवित करने की जरूरत
हालांकि, 3 साल पहले देवघर जिला प्रशासन की ओर से श्रावणी मेला में इसे ब्रांडिंग करने की तैयारी की जा रही थी लेकिन इसके बाद किसी सरकार और जिला प्रशासन में वैद्यनाथ पेंटिंग को स्थापित करने के लिए कोई पहल नहीं की. लिहाजा बैद्यनाथ पेंटिंग की 108 पन्ने की यह कलाकृति महज 10 बाय 10 के कमरे में सिमटकर रह गई है, ऐसे में इस कला को पुनर्जीवित करने की जरूरत है.

(इनपुट- विक्की)

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