लॉकडाउन के चलते दुर्गापुर में फंसे बेटे को साइकल से ही लेने निकल गया पिता
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लॉकडाउन के चलते दुर्गापुर में फंसे बेटे को साइकल से ही लेने निकल गया पिता

मुश्किल ऋषिदेव अपने 12 साल के बेटे नरेश ऋषिदेव को घर वापस लेने जा रहे हैं.  नरेश अपने इलाके के कुछ लोगो के साथ मज़दूरी करने शक्तिगढ़ इलाके में काम करने गया था.

अररिया में लॉकडाउन के बावजूद दुर्गापुर में फंसे अपने बेटे को साइकल से ही निकल पड़ा एक पिता. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

पूर्णिया: लॉकडाउन के चलते अपने बेटे को दुर्गापुर से घर वापस लाने के लिए निकल पड़े हैं एक पिता जिनका नाम मुश्किल ऋषिदेव है. वो भी एक टूटी फूटी साइकिल पर सवार हो कर. नेपाल बॉर्डर से सटे बिहार के अररिया ज़िले के खोड़ागाओं से करीब 200 किलोमीटर साइकिल चलाकर उत्तर दिनाजपुर के रायगंज तक पहुंच चुके हैं.

खाने की अगर बात करें तो उनकी साइकिल पर एक छोटे से पैकेट में मुरमुरा रखा हुआ है, जिसे खाकर यह पिता अपना सफर तय कर रहे है. शरीर पर चढाने के लिए एक छोटा सा कंबल और साथ में एक छोटी सी चटाई. दुर्गापुर अपने बेटे को लेने जा रहे इस शख्स के साथ सफर में उनके एक रिश्तेदार भी हैं. 

दुर्गापुर कितनी दूर है और कितना बड़ा शहर है इसका अंदाज़ा उन्हें नहीं है, लेकिन इसके बावजूद अपने बेटे को वापस लाने के लिए दृढ़ निश्चय कर चुके हैं.  मुश्किल ऋषिदेव अपने 12 साल के बेटे नरेश ऋषिदेव को घर वापस लेने जा रहे हैं.  नरेश अपने इलाके के कुछ लोगो के साथ मज़दूरी करने शक्तिगढ़ इलाके में काम करने गया था.  मगर लॉक डाउन के चलते वो फंस गया. साथ ही ट्रेन में उसका मोबाइल भी खो गया था. 

इस मजदूर दल ने लॉकडाउन के चलते शक्तिगढ़ से पैदल ही चलने का फैसला किया. रास्ते में पुलिस की नजरदारी से बचने के चलते अपने कुछ साथियो को खो दिया. पिता बताते हैं कि नरेश के पास पैसे तक नहीं बचे हैं और उसे 8 दिन से ठीक से खाना तक नसीब नहीं हुआ है.

उसके बाद एक आदमी ने नरेश को इस हालत में देख उसे खाना खिलाया. देहाती हिंदी में नरेश ने अपनी कहानी बयां की और उसके बाद उस दरियादिल इंसान के फोन से अपने घर पर फोन कर सारी घटना के बारे में बताया और कहा की वो  दुर्गापुर में हैं. बस इसी खबर को सुनते ही नरेश के पिता सीधा साइकिल से निकल गए अपने बेटे को वापस लाने के लिए. क्योंकि उनके पास और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था.

हाल ही में सरकार द्वारा विभिन्न बॉर्डर इलाकों को सील कर दिया गया है. इसी बीच बिहार के इस गरीब किसान पिता ने अपने बेटे को वापस लाने का जोखिम उठा लिया. अब देखना यह है की आखिर में एक बाप अपने बेटे से कब मिलता है.