अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में शरीक होने के बाद बबलू उरांव फिर उसी बेबसी की दुनिया में वापस चले गए. बबलू का कहना है कि उनकी जिंदगी में आई गरीबी ने उन्हें खेल छोड़ने पर मजबूर कर दिया.
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रांची: कभी फुटबॉल को ही अपनी जिंदगी समझने वाले झारखंड के अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी बबलू उरांव ने दो साल पहले फुटबॉल के मैदान को अलविदा कह दिया. लेकिन आज मौका खेल दिवस का है तो ऐसे में खेल प्रेम ने ख्वाइशों के समंदर में फिर गोता लगाया और सब कुछ भूलकर बबलू फिर मैदान फतह करने निकल पड़े.
अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में शरीक होने के बाद बबलू उरांव फिर उसी बेबसी की दुनिया में वापस चले गए. बबलू का कहना है कि उनकी जिंदगी में आई गरीबी ने उन्हें खेल छोड़ने पर मजबूर कर दिया. हालांकि उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के मुकाबलों में भी राज्य का प्रतिनिधित्व किया है लेकिन आज कोई पहचान नहीं है. पैसों की कमी ने इन्हें खेल के मैदान को छोड़ देने पर मजबूर कर दिया. आज बबलू उरांव मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. पेड़ से गिरने की वजह से बबलू के हाथ में चोट आई थी और इलाज के दौरान उसके हाथ को काट दिया गया था.
इस बात की जानकारी जब राज्य के खेल मंत्री को दी गई तो उनका कहना था कि सरकारी सुविधाएं विभाग की तरफ से दी जाती है. लेकिन उसे जरूरतमंद तक पहुंचाना एक चुनौती है और सरकार की कोशिश है कि हर जरूरतमंद को इस योजना का लाभ मिले ताकि उन्हें छोड़ने पर मजबूर ना होना पड़े.
बहरहाल मौका खेल दिवस का है इसलिए बबलू इस आयोजन का हिस्सा बने लेकिन इनकी चाहत एक बार फिर मैदान में उतरकर खेल के प्रति अपनी दीवानगी दिखाने की है. वो चाहते हैं कि कोई ऐसी व्यवस्था हो जिसमें बबलू को औपचारिकता ना करनी पड़े और मैदान में एक बार फिर उसी जोश और जज़्बे के साथ बबलू खेलें जिसका उन्होंने सपना देखा है.