बिहार : दाने-दाने को मोहताज हुई स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी, लोगों से मांग रही रोटी और दवाई
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बिहार : दाने-दाने को मोहताज हुई स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी, लोगों से मांग रही रोटी और दवाई

परिस्थिति ऐसी है कि दवा भी नसीब नहीं हो पा रही है. न तो वह देख पाती है और न ही सुन पाती है. उनके साथ-साथ सरकारी सिस्टम भी अंधा और बहरा हो गया है.

पति की मौत के बाद आज तक नहीं मिली पेंशन.

धनंजय/बेतिया : बिहार के बेतिया में एक दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी दाने-दाने के लिए मोहताह हो चुकी है. परिस्थिति ऐसी है कि दवा भी नसीब नहीं हो पा रही है. न तो वह देख पाती है और न ही सुन पाती है. उनके साथ-साथ सरकारी सिस्टम भी अंधा और बहरा हो गया है. वह हर किसी से यही कहती फिर रही हैं कि दवा करा दो, खाना खिला दो, मेरे पति ने देश को आजादी दिलायी है. उनके इन शब्दों को सुनने वाला कोई नहीं है.

यह कहानी बेतिया के दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी बहादुर सिंह नेपाली की 85 वर्षीय पत्नी की है. वर्ष 2012 के फरवरी महीने में पति की मौत हो गई. उसके बाद आज तक उन्हें पेंशन नहीं मिली है.

बेतिया से पटना और पटना से दिल्ली तक वह चक्कर लगा चुकी हैं. लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. आज इस बुजुर्ग की आंखें चली गई हैं. वह देख भी नहीं सकती हैं. बहुत प्रयास करने पर कुछ बोल पाती हैं.

2012 के बाद बैंक ने पति का डेथ सर्टिफिकेट मांगा, तो परिवारवालों ने दिया. अन्य सारे कागजात भी जमा करा दिए गए. लेकिन पीपीओ नहीं होने से पेंशन पर बैंक ने रोक लगा दी. बुजुर्ग महिला के पास पीपीओ की फोटो कॉपी थी, लेकिन बैंक ने अस्वीकार कर दिया.

बेतिया डीएम ने भी बैंक को पत्र लिखा कि उन्हें पेंशन मिलनी चाहिए, बावजूद कोई फायदा नहीं हुआ. बुजुर्ग महिला ने गृह मंत्रालय तक चक्कर लगायी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. पीपीओ की एक कॉपी बैंक के पास होती है, इसके जबाव में बैंक ने लिखित बयान दिया कि हमारे ब्रांच से पीपीओ खो गया है, इसलिए जबतक पीपीओ नहीं आएगा तब तक पेंशन नहीं मिलेगी.

अब सवाल उठता है महिला के पास पीपीओ की फोटो कॉपी है. ऑरिजिनल बैंक से ही गायब हुआ है. सिस्टम की लापरवाही से एक स्वतंत्रता सेनानी की विधवा आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो गई है. दवा कराने के लिए सिस्टम से गुहार लगा रही है. जिला प्रशासन हो या राज्य सरकार या फिर केंद्र सरकार, किसी को भी इस विधवा जानकी देवी की परवाह नहीं है.

जानकी देवी के दो बेटे हैं. दोनों बेरोजगार हैं. मां की देखभाल भी नहीं करते हैं. उसे उसी की हाल पर छोड़ दिए हैं. आज ये विधवा दवा कराने के लिए और दो वक्त की रोटी के लिए सरकार से गुहार लगा रही है.

जिसका पति शेर बहादुर सिंह नेपाली अंग्रेजों से लोहा लेकर देश की आजादी में भूमिका निभाई हो, अंग्रेजो के कोड़े खाए हों, सालों साल जेल में कैद रहे हों, आज उन्हीं की पत्नी दाने-दाने के लिए मोहताज हो चुकी हैं.

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