आंकड़ें बताते हैं कि एक साल में लगभग 150 बच्चों ने कोख में ही दम तोड़ दिया है. यानी हर दूसरे या तीसरे दिन कोई ना कोई बच्चा इस दुनिया में अपना पहला कदम नहीं रख पा रहा है.
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धनबाद: स्वास्थ्य विभाग की तरफ से शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए करोड़ो रूपए योजनाओं के नाम पर खर्च किए जाते है. लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है.
स्थिति तो ये है कि कोख के अंदर ही जिंदगियां दम तोड़ रही है. आंकड़ें बताते हैं कि एक साल में लगभग 150 बच्चों ने कोख में ही दम तोड़ दिया है. यानी हर दूसरे या तीसरे दिन कोई ना कोई बच्चा इस दुनिया में अपना पहला कदम नहीं रख पा रहा है. ये आंकड़े जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पीएमसीएच के हैं.
झारखंड धनबाद पीएमसीएच में जन्म लेने वाले शून्य से पांच साल तक के बच्चों में मरने वालों में अधिकांश लड़के शामिल हैं. वहीं, जन्म लेने से पहले ही कोख में 94 लड़के और 74 लड़कियों ने दम तोड़ दिया है.
अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि यहां अधिकतर मरीज काफी गंभीर स्थिति में आते हैं. इसमें से कई निजी अस्पताल से आते हैं. यही वजह है कि यहां मृत्यु दर कुछ ज्यादा दिखाई देती है.
हकीकत ये है कि ग्रमीण क्षेत्र में गर्भधारण के बाद से ही सहायिका की मदद से गर्भवती की निगरानी की जाती है. समय समय पर उनका टीकाकरण होता है. ताकि जच्चा-बच्चा दोनों स्वास्थ्य रहे.
इसके आलावा बच्चा और मां स्वास्थ्य रहें इसके लिए सरकार की तरफ से उन्हें आयरन सहित अन्य जरूरी दवाईयां दी जाती हैं. इन दवाइयों को तीन महीने का कोर्स कहा जाता है. साथ ही पौष्टिक आहार दिया जाता है.
इन सभी बातों के बाद ये सवाल उठता है कि अगर सरकार और स्वास्थ्य विभाग की तरफ से गर्भवती महिलाओं का दिन-प्रतिदिन चेकअप किया जाता है, तो ये मौत के आंकड़े चौकाने वाले हैं. इसे सरकारी चूक कहा जा सकता है. जिस वजह से मौत के आंकड़े बढ़ रहे हैं.
Anupama Kumari, News Desk