बगहा में स्वास्थ्य विभाग में प्रशासनिक उदासीनता की वजह से बुनियादी सुविधाओं का बंटाधार
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बगहा में स्वास्थ्य विभाग में प्रशासनिक उदासीनता की वजह से बुनियादी सुविधाओं का बंटाधार

बाढ़ और बरसात के दिनों में अस्पताल परिसर में जलजमाव के चलते कई बार फर्श पर तो कई बार टायर गाड़ी और ट्रेलर पर पोस्टमार्टम किया गया है.

बगहा में स्वास्थ्य विभाग में प्रशासनिक उदासीनता की वजह से बुनियादी सुविधाओं का बंटाधार.

इमरान अजीज/बगहा: बिहार में सरकार जरूरतमंद लोगों तक हर एक प्रकार की सुविधाएं पहुंचाने के लिए चाहें जितनी भी तत्परता क्यों न दिखा ले, लेकिन स्वास्थ्य विभाग में प्रशासनिक उदासीनता की वजह से आज भी बुनियादी सुविधाओं का कई दफा बंटाधार हो जाता है. इसका जीता जागता उदाहरण पश्चिम चंपारण जिले के बगहा अनुमंडलीय अस्पताल से आया है, जहां 2016 में तकरीबन 60 लाख की लागत से बना एयर कंडीशनर पोस्टमार्टम भवन बन्द और बेकार साबित हो रहा है.

दरअसल, करीब चार साल पहले निर्माण के बाद अब तक अपने उद्घाटन के इन्तजार में धीरे-धीरे पोस्टमार्टम हाउस खण्डहर में तब्दील होता जा रहा है. इस पूरे मामले पर अस्पताल प्रशासन की ओर से डीएस डॉ केबीएन सिंह का कहना है कि निर्माण एजेन्सी द्वारा विभाग को दस्तख्त नहीं किया गया है. पूर्व के डीएस द्वारा आखिर किन कारणों से उपयोग में नहीं लाया गया और विभाग ने अनुमति नहीं दी जिसके लिए पुनः पत्राचार किया जा रहा है.

जबकि, निर्माण एजेंसी के संवेदक इरफान अख्तर का कहना है कि पोस्टमार्टम भवन का निर्माण कार्य मानक और इस्टिमेट के मुताबिक वर्ष 2016 के नवंबर माह में ही पूर्ण कर लिया गया है. तत्कालीन अस्पताल उपाधीक्षक डॉ अशोक तिवारी को हस्तांतरित भी कर दिया गया है. 

बावजूद, इसके प्रशासनिक स्तर पर इसके चालू करवाने की पहल चार वर्षों बाद भी नही हो पाई है. जिसके चलते जर्जर हालत वाले महज़ एक कमरे वह भी गंदगी और खंडहर में तब्दील हो चुका है, उसी में अंत्यपरीक्षण कार्य मेडिकल टीम को बामुशिल पूरा करना पड़ता है.

इधर, मानवाधिकार हेल्पलाइन संगठन के सचिव सुनील कुमार ने सीएम नीतीश कुमार और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय से इसकी जांच और कार्रवाई की मांग करते हुए शव रखने और अंत्यपरीक्षण कार्य को पूरा करने के लिए नव निर्मित पीएम हाउस के शीघ्र उपयोग में लाए जाने की भी मांग किया है. ताकि बिहार यूपी और नेपाल सीमा क्षेत्र में मिलने वाले लावारिस शवों के पोस्टमार्टम समेत रख रखाव में सहूलियत हो.

बाढ़ और बरसात के दिनों में अस्पताल परिसर में जलजमाव के चलते कई बार फर्श पर तो कई बार टायर गाड़ी और ट्रेलर पर पोस्टमार्टम किया गया है.

सबसे बड़ी परेशानी तब होती है जब कई शव एक साथ एक ही समय में पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल में आते हैं. यहां पीएम हाउस में बिजली नहीं होने के चलते रात में तो अंत्यपरीक्षण कार्य होता ही नहीं है जिससे लोगों को भारी परेशानी होती है. 

कई बार सूबे के कई अस्पतालों में लावारिश शवों को कुत्तों द्वारा नोंचें जाने की तस्वीरें भी आपने देखी होंगी.

यूपी और नेपाल सीमा पर स्थित बिहार के शुरुआती छोर पर बगहा में वैसे भी स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है. प्राथमिक उपचार के बाद यहां के अस्पताल से मरीजों को अमूमन रेफर ही कर दिया जाता है. ऐसे में शवों को सुरक्षित रखने और उनके पोस्टमार्टम की प्रक्रिया में मुश्किलें दिनों दिन बढ़ती जा रही है.

बता दें कि प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी पंडित कमल नाथ तिवारी की स्मृति में बना बगहा का अनुमंडल अस्पताल में अभी जो पोस्टमार्टम कक्ष है, वह महज एक कमरे का बग़ैर बिजली सप्लाई का है. लिहाजा जब एक साथ एक से ज्यादा शव आते हैं तो खुले आसमान में रख पोस्टमार्टम के लिए घंटों इन्तजार करना पड़ता है. 

जबकि किसी अज्ञात शव या लावारिश शवों को 72 घंटे तक सुरक्षित रखने और परिजनों अथवा दावेदारों के आने तक उसकी देखभाल का कानूनन प्रावधान है. ऐसे में आम लोगों की सहुलियत के लिए बनवाया गया पोस्टमार्टम भवन सरकारी उदासीनता और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही की वजह से सिर्फ कागजों में ही धुल फांक रही है जिसका असल जिम्मेवार कौन है इसका जवाब मिलना बाकी है.