हजारीबाग में मिले साक्ष्यों से चलेगा पता, क्या अति प्राचीन सभ्यता में भी था मानव को संगीत से प्रेम?
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हजारीबाग में मिले साक्ष्यों से चलेगा पता, क्या अति प्राचीन सभ्यता में भी था मानव को संगीत से प्रेम?

मेगालिथ साइट्स की तलाश और इससे संबंधित शोध में लगभग तीन दशकों से जुटे विशेषज्ञ डॉ शुभाशीष दास का कहना है कि बांसुरी जैसा दिखने वाले इस पुरातात्विक साक्ष्य की कार्बन डेटिंग कराने से नए और चौंकानेवाले निष्कर्ष सामने आ सकते हैं.

क्या अति प्राचीन सभ्यता में भी था मानव को संगीत से प्रेम?

Hazaribagh: क्या प्रागैतिहासिक काल में भी मानव को संगीत कला का ज्ञान था? क्या वे वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल करते थे? ऐसे सवालों का जवाब तलाशने वाले पुरातत्वविदों और इतिहासकारों के शोध को झारखंड के हजारीबाग में एक मेगालिथ साइट पर मिला बांसुरी जैसा वाद्ययंत्र नई दिशा दे सकता है.

मेगालिथ साइट्स की तलाश और इससे संबंधित शोध में लगभग तीन दशकों से जुटे विशेषज्ञ डॉ शुभाशीष दास का कहना है कि बांसुरी जैसा दिखने वाले इस पुरातात्विक साक्ष्य की कार्बन डेटिंग कराने से नए और चौंकानेवाले निष्कर्ष सामने आ सकते हैं.

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डॉ शुभाशीष दास ने हजारीबाग शहर और उसके आस-पास पांच से ज्यादा मेगालिथिक साइट्स की तलाश की है और वहां से कई ऐसे प्रमाण जुटाए हैं, जो यहां अतिप्राचीन सभ्यता के महत्वपूर्ण साक्ष्य हो सकते हैं. उन्होंने अपने शोध और अध्ययन के आधार पर ह्यद आर्कियो एस्ट्रोनॉमी ऑफ फ्यू मेगालिथिक साइट्स ऑफ झारखंडह्ण नामक एक पुस्तक भी लिखी है, जो अमेजन पर बेस्टसेलर्स की सूची में शुमार रही है. इस पुस्तक में उन्होंने झारखंड के मेथालिथिक साइट्स और वहां से मिली प्राचीन वस्तुओं-साक्ष्यों को डिकोड करने की कोशिश की है.

डॉ शुभाशीष दास ने बताया कि हजारीबाग जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर सदर प्रखंड के चानो गांव में उन्हें मेगालिथ साइट पर यह बांसुरीनुमा वस्तु मिली थी. यह मानव या किसी दूसरे जीव की हड्डी से बनी है. संभव है कि प्राचीन काल में वाद्ययंत्र बनाने के लिए हड्डियों का इस्तेमाल किया जाता रहा हो. डॉ दास कहते हैं कि इस बारे में व्यापक शोध की जरूरत है.

डॉ दास ने हजारीबाग में एक निजी म्यूजियम भी विकसित किया है, जहां इस बांसुरीनुमा वस्तु सहित कई तरह की वस्तुओं और साक्ष्यों को सहेजकर रखा गया है. विदेशों से आए कई विद्वानों, पुरातत्वविदों और खगोलविदों ने भी उनके द्वारा तलाशे गए मेगालिथिक साइट्स और इन साक्ष्यों का निरीक्षण किया और इन्हें पुरा पाषाण और नव पाषाण काल की सभ्यताओं को डिकोड करने के नजरिए से अत्यंत महत्वपूर्ण माना है. ऐसे विदेशी अध्येताओं में वेल्स के एंटीनी रोपार क्रेरार और जर्मनी की डॉ लिंडिया एकेशेल्फे शामिल हैं, जो कुछ साल पहले यहां आए थे.

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चानो गांव स्थित मेगालिथिक साइट के बारे में डॉ दास बताते हैं कि अंग्रेजी शासन के नक्शे में इस जगह का उल्लेख सेक्रेड माउंट के रूप में किया गया है. इसका अर्थ यह है कि अंग्रेज शोधकतार्ओं की निगाह इस स्थान पर रही होगी और स्थानीय लोग भी इस टीलेनुमा जगह पर प्राचीन मान्यताओं की वजह से पूजा-अनुष्ठान आदि करते रहे हों.

इसी स्थान से अनूठी चमक वाले काले और लाल मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) मिले हैं. इनपर विशेष तरह का पॉलिश चढ़ाया गया है, जिसके बारे में अलग से जांच और शोध की जरूरत है क्योंकि इस पॉलिश की चमक बिल्कुल अनूठी है. डॉ दास कहते हैं कि ये मृदभांड 700 से 500 ईसा पूर्व के हो सकते हैं. शुभाशीष दास के शोध की जानकारी मिलने पर झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव वीएस दुबे ने खुद इस स्थल का निरीक्षण किया था और यहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की निगरानी में खनन कराने की बात कही थी. हालांकि, ऐसा हो नहीं सका और अब इस मेगालिथिक साइट को स्थानीय ग्रामीणों ने अज्ञानता में काफी नुकसान पहुंचाया है. डॉ दास इसे लेकर बेहद दुखी हैं. उनका कहना है कि उनके द्वारा बार-बार ध्यान आकृष्ट कराए जाने के बावजूद सरकारी उदासीनता की वजह से इस महत्वपूर्ण मेगालिथ साइट्स के संरक्षण की दिशा में अब तक कोई कदम नहीं उठाया जा सका है.

(इनपुट- आईएएनएस)

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