बिरसा मुंडा (Birsa Munda) के गांव के विकास की बात करें तो उनका गांव आज भी विकास के लिए बाट जोह रहा है. सरकारी सहायता और विकास के नाम पर गांव तक पक्की सड़क, बिजली और स्कूल का ढांचा खड़ा है.
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Ranchi: खूंटी (Khunti) के उस गांव (Village) के लाल जिनके नाम से पूरे जनजातीय समाज को ही नहीं, बल्कि झारखंड (Jharkhand) राज्य के सभी लोगों को गौरव है. खूंटी के एक सुदूरवर्ती गांव उलीहातू (Ulihatu) जहां जनजातीय समाज के क्रांतिकारी युवक का जन्म हुआ था, जिन्होंने समाज की मानसिकता को बदल डाला और देश व समाज के दुश्मनों को नाकों चने चबवा डाला था. जनजातीय समाज के लिये भगवान का अवतार के रुप में समाज को एक दिशा देने का काम किया था. ऐसे वीर स्वतंत्रता सेनानी रहे बिरसा मुंडा (Birsa Munda), जिनके नाम पर 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाएगा.
यह गौरवपूर्ण इतिहास खूंटी की धरती के लिए और भी गौरव का विषय है. लेकिन जब इस महान विभूति की त्याग और तपस्या के नाम देश का हृदय समर्पित होता है तो उनके गांव, घर और समाज की वर्तमान परिस्थितियों को भी बदलने का कर्तव्य देश, राज्य के नेतृत्वकर्ताओं और सरकार का भी है. बिरसा मुंडा ने नाबालिग उम्र में ही समाज और देश को ठीक करने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया और दुश्मनों को मार भगाने के लिए हथियार उठाया था. इतना ही नहीं, जहां विकास के नाम पर अंधेरा ही अंधेरा था, उस गांव से क्रांति का मशाल जलाकर लोगों को एक सूत्र में बांध डाला था. आज आपको उनकी पारिवारिक स्थिति और उस गांव की वर्तमान स्थिति को जानने के लिए बिरसा मुंडा के जन्मस्थली उलीहातू की सच्चाई से रुबरू कराते हैं.
वंशजों को दी सरकार ने चतुर्थवर्गीय नौकरी
बिरसा मुंडा के वंशज सुखराम मुंडा (Sukhram Munda) ने बताया कि उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं, जिनमें बेटों और एक बेटी की शादी हो चुकी है. वहीं, एक बेटी जौनी मुंडा है जो पढ़ाई कर रही है. सरकारी लाभ के नाम पर उनके दोनों बेटों को सरकार ने चतुर्थवर्गीय नौकरी दी है. जिसमें एक जंगल सिंह मुंडा मैट्रिक तक पढ़ा है इसलिए चतुर्थवर्गीय नौकरी तो ठीक है. पर दूसरा बेटा पीजी तक पढ़ा है, इसके बावजूद जिला प्रशासन ने उसे चतुर्थवर्गीय नौकरी दी है. इसका उसके पिता को आज भी मलाल है.
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स्वास्थ्य सुविधा की उचित व्यवस्था नहीं
सुखराम मुंडा ने बताया कि उनकी अपनी जमीन है जिसमें सरकार द्वारा भगवान बिरसा मुंडा का मंदिर का निर्माण करा दिया गया है. अब उनके पास घर बनाने के लिए जमीन नहीं रहने के कारण वे लोग पक्का मकान नहीं बना पाये हैं. जहां ये लोग रहते हैं वह उनके रिश्तेदारों की जमीन है. सुखराम मुंडा खेती करते हैं. वहीं, गांव में नल से घर तक जल की योजना हाथी के दांत बनकर रह गई है. इसीलिए उनके घर में पानी नहीं आ पाता है. सुखराम मुंडा ने बताया कि उलिहातू गांव में स्वास्थ्य सुविधा (Health Facility) की भी उचित व्यवस्था नहीं है. यहां एक स्वास्थ्य उपकेंद्र (Health sub Centre) है पर ये प्रतिदिन नहीं खुलता है. इस क्षेत्र के लिए एक भी एमबीबीएस डॉक्टर (MBBS Doctor) नहीं है. इलाज कराने के लिए या तो अड़की या फिर खूंटी ले जाना पड़ता है. यह यहां की मुख्य समस्या है.
पीने का पानी कुआं से लाने को ग्रामीण मजबूर
गांव के विकास (Development) की बात करें तो बिरसा मुंडा का गांव आज भी विकास के लिए बाट जोह रहा है. सरकारी सहायता और विकास के नाम पर गांव तक पक्की सड़क, बिजली और स्कूल का ढांचा खड़ा है. वहीं, ग्रामीणों ने बताया कि गांव में नल से घर तक पानी पहुंचाने के लिए टावर तो बना दिया गया है, पर वह भी वर्षों से खराब पड़ा है. लोगों को पीने का पानी कुआं से लाना पड़ता है.
कक्षा आठ तक की पढ़ाई के लिए मात्र दो कमरे
गांव में कक्षा एक से आठ तक के लिए एक कन्या मध्य विद्यालय है. लेकिन यहां भी मात्र कागज पर ही कलम चला है. विद्यालय में एक प्रभारी प्रधानाचार्य और दो पारा शिक्षक हैं. विद्यालय में कक्षा आठ तक की पढ़ाई के लिए मात्र दो कमरे हैं. यानि कि शिक्षा का दीप जलाने के लिए कक्षा आठ तक दो कमरे और तीन शिक्षक हैं. वहीं, रोजगार के नाम पर लोग खेती-बारी पर ही आश्रित हैं. यहां के लोग खेती करके क्षेत्र के बाजार में अपनी उपज बेचने जाते हैं. खेती करने के लिए उपयुक्त सिंचाई व्यवस्था की भी काफी कमी है. लोग खेती-बारी के लिए प्रकृति पर ही निर्भर रहते हैं.
(इनपुट-बृजेश)