खतरे में थी सात साल के मासूम की जान, धनबाद शहर ने ऐसे दिलाई नई जिंदगी
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खतरे में थी सात साल के मासूम की जान, धनबाद शहर ने ऐसे दिलाई नई जिंदगी

तीन महीने के इलाज के बाद बुधवार को आरव को गोद में लेकर उसकी मां जब धनबाद रेलवे स्टेशन पर उतरी तो उसकी कहानी से वाकिफ लोगों की आंखें खुशी से छलक उठीं. आरव का परिवार धनबाद के दुहातांड़ बनकाली मंदिर के पास रहता है. आरव ने पहली बार दुनिया में आंखें खोलीं तभी से उसकी तबीयत बेहद खराब थी. 

खतरे में थी सात साल के मासूम की जान, धनबाद शहर ने ऐसे दिलाई नई जिंदगी

Ranchi: धनबाद शहर के लोगों की मदद से सात माह के बच्चे आरव को नयी जिंदगी मिल गयी है. चाट-पकौड़ा बनाकर किसी तरह परिवार की गाड़ी खींचने वाले अजय साहू के इस बच्चे का लीवर ट्रांसप्लांट कराने के लिए धनबाद के लोगों ने 25 लाख रुपये जुटाये. सीएमसी वेल्लोर के डॉक्टरों ने उसकी मां के लीवर का 25 प्रतिशत हिस्सा निकालकर बच्चे को ट्रांसप्लांट किया.

  1. जन्म के तीसरे महीने ही चल गया था असाध्य बीमारी का पता
  2. बच्चे की जान बचाने के लिए 25 लाख रुपये की थी जरूरत

जन्म के तीसरे महीने ही चला था पता
तीन महीने के इलाज के बाद बुधवार को आरव को गोद में लेकर उसकी मां जब धनबाद रेलवे स्टेशन पर उतरी तो उसकी कहानी से वाकिफ लोगों की आंखें खुशी से छलक उठीं. आरव का परिवार धनबाद के दुहातांड़ बनकाली मंदिर के पास रहता है. आरव ने पहली बार दुनिया में आंखें खोलीं तभी से उसकी तबीयत बेहद खराब थी. जन्म के तीसरे महीने में ही पता चल गया कि उसे असाध्य बीमारी है. डॉक्टरों ने कह दिया कि लीवर ट्रांसप्लांट कराये बगैर बच्चे की जान बचानी मुश्किल है. खर्च बताया गया 25 लाख. गरीब परिवार के पांवों के नीचे की जमीन खिसक गयी. 

नहीं जुटा पा रहे थे अस्पताल का खर्च
सवाल यह भी था कि लीवर कौन डोनेट करेगा? आरव की मां रानी तत्काल इसके लिए तैयार हो गयी लेकिन जहां दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल जुट पाती है, वहां 25 लाख रुपये कहां से आते? कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार और जिला प्रशासन के पास दरख्वास्त लगवायी तो थोड़ी-बहुत जद्दोजहद के बाद असाध्य रोग उपचार योजना के तहत पांच लाख रुपये मंजूर हुए. घर के सामान बेचकर और रिश्तेदारों से मदद लेकर अजय के परिवार वालों ने भी दो-ढाई लाख रुपये जुटाये, लेकिन उतनी रकम नहीं जुट पा रही थी कि लीवर ट्रांसप्लांटेशन पर आनेवाला खर्च पूरा हो पाए.

अब अच्छी है सेहत
ऐसे वक्त में शहर के कई लोगों ने क्राउड फंडिंग के लिए सोशल मीडिया पर मुहिम चलायी. सामाजिक कार्यकर्ता शहर में गली-गली में घूमे. लगभग 40 दिनों में आखिरकार 25 लाख रुपये जुटा लिये गये. सितंबर में आरव को वेल्लोर ले जाया गया. डॉक्टरों ने उसकी मां के लीवर का 25 प्रतिशत हिस्सा निकालकर बच्चे में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया. डॉक्टरों ने लगभग तीन महीने के बाद छुट्टी दी. मां-बेटे दोनों की सेहत अब अच्छी है.

 

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