Bihar Politics: बिहार का राजनीतिक तूफान उमड़-घुमड़ रहा है. नीतीश कुमार की चुप्पी बड़े बदलाव के संकेत दे रही थी और आखिरकार उन्होंने रविवार (28 जनवरी) को राजद का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बना ली. इस तरह से लालू यादव की पार्टी महज 17 महीने ही सरकार का हिस्सा रही. राजद से नाता तोड़ने के बाद नीतीश ने कहा कि उनके साथ बड़ी परेशानी हो रही थी. दोनों तरफ के लोगों को तकलीफ हो रही थी. इसीलिए हमने बोलना छोड़ दिया था. नीतीश ने जब बोलना शुरू किया तो राजद सुप्रीमो लालू यादव ने खामोशी अख्तियार कर लिया है. 


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सरकार से रिश्ते खत्म होने के साथ ही राजद से जुड़े नेताओं ने नीतीश कुमार पर ताबड़तोड़ जुबानी हमले शुरू कर दिए, लेकिन इन सबके बीच राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद मौन हैं. लालू की इस चुप्पी से सियासी गलियारों में कयासबाजी तेज हो गई है. नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव की राजनीतिक ग्रॉफ को देखें तो छोटा भाई हमेशा से ही भारी पड़ा है. 1994 से लेकर आजतक बिहार के सियासी संग्राम में हर बार नीतीश ही विजेता रहे और राजनीति के धुरंधर लालू को मात खानी पड़ी है. 


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हालांकि, अब कहा जा रहा है कि जेडीयू को तोड़कर लालू यादव सारा हिसाब-किताब चुकता करने की फिराक में हैं. इस बीच एनडीए में वापसी के बाद नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के सांसदों की बैठक बुलाई थी. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, इस बैठक में जदयू के 15 सांसद ही पहुंचे थे. जानकारी मिली है कि इस बैठक में जहानाबाद के सांसद नहीं पहुंचे हैं.


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बता दें कि बिहार विधानसभा में राजद सबसे बड़ी पार्टी है. उसके पास 79 विधायक हैं. दूसरे नंबर पर बीजेपी है, उसके पास 77 विधायक हैं. वहीं 45 विधायकों के साथ जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी है. कांग्रेस के पास 19, भाकपा माले के 12, HAM के 4, माकपा के 2 और एक निर्दलीय विधायक है. विधानसभा में संख्याबल के हिसाब से तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनने के लिए सिर्फ 8 विधायकों की जरूरत है.