उन्नति लीची के जरिए बिहार के मुजफ्फरपुर, वैशाली और समस्तीपुर जिला में लगभग तीस हजार एकड़ पुराने और उजड़े लीची के बाग को पुनर्जीवित किया जाएगा और नए पेड़ भी लगाए जाएंगे.
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पटना: बिहार के तीन जिलों में अगले तीन वर्ष में लीची का उत्पादन दोगुना हो जाएगा और इसके लिए मार्केटिंग की भी कोई समस्या नहीं रहेगी. पटना में गुरूवार को कोका कोला इंडिया, नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन लीची (NRCL), देहात और केडिया फ्रेश के साथ मिलकर बिहार में उन्नति लीची को लॉन्च किया गया. इसके किसानों की स्थिति में सकारात्मक बदलाव आएगा और उनकी आमदनी बेहतर हो पाएगी.
दरअसल, बिहार के मुजफ्फरपुर का लीची अपने बेहतरीन स्वाद और मिठास के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है, लेकिन लीची के परम्परागत बागान में उत्पादकता कम होती है और अब नए बाग भी नहीं लग रहे हैं, जिससे लीची का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है. अब उन्नति लीची के जरिए बिहार के मुजफ्फरपुर, वैशाली और समस्तीपुर जिला में लगभग तीस हजार एकड़ पुराने और उजड़े लीची के बाग को पुनर्जीवित किया जाएगा और नए पेड़ भी लगाए जाएंगे. इतना ही नहीं, ज्यादा घनत्व वाले बाग लगाकर लीची का उत्पादन तीन वर्ष में दोगुना कर लिया जाएगा और इसके जरिए किसानो की आर्थिक स्थिति बेहतर हो सकेगी.
वहीं, कोका कोला के उपाध्यक्ष असीम पारेख ने कहा कि उन्नति लीची के जरिए इन तीन जिलों के अस्सी हजार से ज्यादा किसान लाभान्वित होंगे. मुजफ्फरपुर, वैशाली और समस्तीपुर के छप्पन ब्लॉक के सभी ब्लॉक में कम से कम दो बगीचे लगाए जाएंगे जो आदर्श बगीचा होगा.
उन्होंने कहा कि फिलहाल परम्परागत तरीके के लीची बगीचे में प्रति एकड़ 70 से 80 पेड़ लगे होते हैं, जबकि उन्नति लीची के जरिए इतने ही जमीन में ही 160 पेड़ लगाए जाएंगे यानी घनत्व बढ़ाया जाएगा. असीम पारेख ने कहा कि परम्परागत लीची के बगीचे में छह वर्ष में फल लगते हैं, जबकि उन्नति लीची में चार वर्ष में ही लीची तैयार होने लगेगी.
गौरतलब है कि लीची बिहार की शान है और प्रति वर्ष इसके उत्पादन में गिरावट देखी जा रही है. किसानो के लिए लीची एक नकदी फसल है और उच्च गुणवत्ता वाली उन्नति लीची से किसानो की स्थिति बेहतर हो सकेगी. इसके लिए ग्यारह हजार करोड़ रुपए का निवेश किया जा रहा है और फसल लगाने से लेकर उसके उत्पाद का मार्केटिंग, प्रोसेसिंग और पैकेजिंग तक की व्यवस्था यहां होगी, फ्रूट सर्कुलर इकोनॉमी के जरिए न सिर्फ लीची की खेती आकर्षक होगी, बल्कि गांव और किसानों की स्थिति में भी प्रभावी बदलाव देखने को मिलेगा.