झारखंड में अब महुआ से शराब नहीं, सैनिटाइजर बनेगा
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झारखंड में अब महुआ से शराब नहीं, सैनिटाइजर बनेगा

कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए इन दिनों सैनिटाइजर की मांग बढ़ी है. इसे देखते हुए झारखंड सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग ने राज्य में बहुतायत पाए जाने वाले महुआ से सैनिटाइजर बनाने की पहल की है.

झारखंड में अब महुआ से शराब नहीं, सैनिटाइजर बनेगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

हजारीबाग: महुआ के लिए प्रसिद्ध झारखंड में अब महुआ के फूलों के रस से सैनिटाइजर बनाने की तैयारी की जा रही है. इसमें मदद के लिए राज्य सरकार लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति शोध संस्थान के वैज्ञानिकों से बातचीत शुरू की है. इस योजना पर अगले सप्ताह काम शुरू हो जाने के आसार हैं.

कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए इन दिनों सैनिटाइजर की मांग बढ़ी है. इसे देखते हुए झारखंड सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग ने राज्य में बहुतायत पाए जाने वाले महुआ से सैनिटाइजरधन बनाने की पहल की है. इसकी जिम्मेदारी हजारीबाग के क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक संजीव कुमार को सौंपी गई है.

संजीव कुमार ने मीडिया को बताया कि, राज्य में महुआ के पेड़ों की संख्या अधिक है और गांव के लोगों के लिए यह आर्थिक स्रोत भी है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इससे ग्रामीणों को जितना आर्थिक लाभ मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता है. यही कारण है कि, सरकार महुआ के फूलों से सैनिटाइजर बनाने की योजना बनाई है.

उन्होंने बताया कि, इस योजना के सफल होने के बाद राज्य में, जहां सैनिटाइजर सस्ते दामों पर मिलेगा, वहीं ग्रामीणों को भी आर्थिक लाभ मिलेगा. कुमार ने बताया कि, इस योजना पर काम शुरू करने के लिए लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति शोध संस्थान के वैज्ञानिकों से बातचीत चल रही है. उन्होंने कहा कि, वन एवं पर्यावरण विभाग इसके लिए आशान्वित है.

वनों से समृद्ध झारखंड में महुआ बहुतायत में पाया जाता है. महुआ यहां के आदिवासियों की जीविका का साधन भी है. यहां के आदिवासी महुआ फूल को एकत्र करते हैं और बाजार में बेचते हैं. गहरा पीलापन लिए हुए महुआ के फूल औषधि और देसी शराब बनाने के काम आते हैं. महुआ के फूलों से यहां बड़ी मात्रा में शराब भी बनाई जाती है.

वन एवं पर्यावरण विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि महुआ के फूलों में अल्कोहलिक अवयवों का होने के कारण सैनिटाइजर बनाने की संभावना को बल मिला है. उन्होंने कहा कि, महुआ से बनाया गया सैनिटाइजर भी पूरी तरह हर्बल होगा, जिससे शरीर को नुकसान पहुंचने की आशंका नहीं के बराबर है.

उल्लेखनीय है कि, झारखंड में अगर यह प्रयोग सफल रहता है तो, बड़े पैमाने पर कम लागत में इसका उत्पादन हो सकता है. महुआ के पेड़ों से बीच मार्च से लेकर मई की शुरुआत तक फूल गिरते हैं. झारखंड में महुआ का उपयोग ब्रेड और बिस्किट बनाने में भी किया जाता है.
(इनपुट-आईएएनएस)