रोजा तोड़ मुस्लिम युवक ने बचाई फौजी के बेटे की जान
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रोजा तोड़ मुस्लिम युवक ने बचाई फौजी के बेटे की जान

ब्लड बैंक के डाक्टर ने मोहम्मद अश्फाक का ब्लड लेने से साफ इंकार करते हुए कहा कf रोजे में भूखे होने के कारण इनका खून नहीं निकाला जा सकता है.

दरभंगा में मुस्लिम युव के खून देकर बचाई नवजात की जान.

दरभंगा : मजहब के नाम पर एक-दूसरे का खून बहाने वाले लोगों के बीच धर्म की दीवार तोड़कर इंसानियत की मिसाल पेश करने वालों की भी कमी नहीं है. बिहार के दरभंगा जिला के रहने वाले अश्फाक भी उन्हीं लोगों में से हैं, जिन्होंने रमजान के दौरान रोजा तोड़कर एक हिंदू बच्चे को अपना खूद देकर ना सिर्फ उसकी जान बचाई बल्कि समाजिक सौहार्द का संदेश भी दिया.

  1. बच्चे के पिता एसएसबी जवान हैं
  2. नवजात का ब्लड ग्रुप ओ निगेटिव है
  3. अश्फाक ने रोजा तोड़कर किया रक्तदान

अश्फाक ने जिस बच्चे की जान बचाई उसका पिता सीमा पर देश की सुरक्षा करते हैं. वह एक एसएसबी जवान हैं, जो फिलहाल अरुणाचल प्रदेश में तैनात हैं. 

एसएसबी जवान रमेश कुमार सिंह की पत्नी आरती दो दिन पहले ही दरभंगा के एक निजी नर्सिंग होम में लड़के को जन्म दी. जन्म के बाद से ही नवजात की हालत बिगड़ने लगी. आनन-फानन में बच्चे को मां से अलग कर आईसीयू में रखा गया, जहां जांच के बाद डाक्टर ने बच्चे को बचाने के लिए खून की मांग की. नवजात बच्चे का खून ओ नेगेटिव O (-) है, जो कि रेयर बल्ड ग्रुप है.

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खून उपलब्ध नहीं होने के कारण नवजात की हालत पल-पल बिगड़ती जा रही थी. परिवार के लोगों को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर करें तो क्या करें. नवजात के परिवार वालों ने सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर बल्ड ग्रुप का जिक्र करते हुए खून के लिए लोगों से मदद मांगी. वहीं, दूसरी तरफ एसएसबी के बटालियन के द्वारा भी अलग-अलग जगहों पर भी खून की जरुरत को पूरा करने के लिए मैसेज भेजा गया.

रमजान के महीने में रोजा कर रहे मोहम्मद अश्फाक ने भी फेसबुक पर यह संदेश पढ़ा. इत्तेफाक से अश्फाक का ब्लड ग्रुप भी ओ-नेगेटिव था. उसने तुरंत ही फेसबुक चैट के माध्यम से परिवार से संपर्क साधा और खून देने के लिए अस्पताल पहुंच गया. नवजात के परिवार के लोग पलकें बिछाए अश्फाक के इंतजार में थे. अश्फाक के आते ही सभी के चेहरे खिल उठे.

ब्लड बैंक के डाक्टर ने मोहम्मद अश्फाक का ब्लड लेने से साफ इंकार करते हुए कहा कf रोजे में भूखे होने के कारण इनका खून नहीं निकाला जा सकता है. अश्फाक ने डॉक्टर से कई बार ब्लड निकालने का आग्रह किया, लेकिन डाक्टर ने उसकी एक नहीं सुनी. परिस्थिति को देखते हुए अश्फाक ने बच्ची की जान बचाने का फैसला किया और बीच में ही रोजा तोड़कर अस्पताल में ही कुछ खाने के सामन मंगाकर खाया, जिसके बाद डॉक्टर खून लेने पर राजी हुए. 

डॉक्टर ने अश्फाक का खून निकालकर नवजात को चढ़ाया. इससे बच्चे को नई जिंदगी मिली. इस बीच मधुबनी के मधवापुर के नेपाल बॉर्डर से भी एक एसएसबी जवान राकेश गोस्वामी खून देने के लिए दरभंगा पंहुचा, लेकिन तबतक खून की जरुरत समाप्त हो चुकी थई. पूरी कहानी सुनकर जवान के आंखों में भी आंसू आ गए.   

अश्फाक ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि रोजा तो फिर कभी रख लेंगे, लेकिन जिंदगी किसी की लौट कर नहीं आती है. उन्हें गर्व है कि आज खुदा ने उससे यह काम करवाया. उन्हें इस बात को फर्क नहीं पड़ता है कि नवजात किस धर्म का है.

नवजात के परिजन खून की जरुरत पूरा होने के बाद बेहद खुश हैं. बच्चे को नई जिंदगी देनेवाले अश्फाक को नवजात का परिवार भगवान जैसा देखता है. बच्चे की दादी ने मीडिया को बताया कि उन्हें कोई एतराज नहीं है कि हम हिन्दू हैं और हमारे पोते को कोई मुसलमान खून दे रहा है, बल्कि मैं खुश हूं कि अश्फाक की वजह से उनके घर का चिराग बुझने से बच गया. पूरे परिवार ने अश्फाक के इस नेक काम के लिए धन्यवाद दिया.