बिहार चुनाव: 'जंगलराज' के सहारे सत्ता तक पहुंचने में जुटी NDA, तेजस्वी ने भी खेला दांव!
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बिहार चुनाव: 'जंगलराज' के सहारे सत्ता तक पहुंचने में जुटी NDA, तेजस्वी ने भी खेला दांव!

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 71 और दूसरे चरण में 94 सीटों पर मतदान हो चुके हैं, सात नवंबर को तीसरे और अंतिम चरण के लिए मतदान होना है. तीसरे चरण को लेकर सभी दलों के नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.

बिहार विधानसभा चुनाव का दो चरण पूरा हो चुका है और आखिरी चरण 7 नवंबर को होगा.

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 71 और दूसरे चरण में 94 सीटों पर मतदान हो चुके हैं, सात नवंबर को तीसरे और अंतिम चरण के लिए मतदान होना है. तीसरे चरण को लेकर सभी दलों के नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.

अब तक दो चरणों के हुए चुनाव के लिए हुए प्रचार अभियान में जहां सत्ता पक्ष 'जंगलराज' के जरिए एक बार फिर सत्ता तक पहुंचने को लेकर बेताब दिख रही है, वहीं महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्ती यादव रोजगार के मुद्दे को प्रभावशाली ढंग से उठाकर बिहार में बदलाव की कहानी गढ़ने के लिए खूब पसीना बहा रहे हैं.

तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने के वादे से लोग महागठबंधन की ओर आकर्षित भी हो रहे हैं, लेकिन सत्ता पक्ष राजद के पुराने शासनकाल को 'जंगलराज' की याद दिलाकर भय भी दिखा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) हों या मुख्यमंत्री, एनडीए के नेता अपनी सभी चुनावी सभाओं में जंगलराज की चर्चा कर रहे हैं. हालांकि विपक्षी दलों के महागठबंधन के नेता जंगलराज की चर्चा करने से बच रहे हैं.

राजद ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में पहली कैबिनेट की बैठक में दस लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का वादा किया है. इस चुनाव की घोषणा के पूर्व राजग की जीत तय मानी जा रही थी, लेकिन राजद के सरकारी नौकरी के वादे के बाद महागठबंधन की तरफ राज्य के युवाओं का रुझान दिख रहा है.

पटना के दीघा विधानसभा क्षेत्र में तेजस्वी की एक सभा में पहुंचे दानापुर के एक युवा मतदाता ने कहा कि पहली बार विधनसभा चुनाव में रोजगार मुद्दा बना है. उन्होंने कहा कि बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा प्रारंभ से रहा है, लेकिन कभी किसी राजनीतिक दल ने इस मुद्दे को नहीं उठाया था. उन्होंने कहा कि इसका महागठबंधन को लाभ मिलना भी तय है.

इधर, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने भी अपनी सभी रैलियों में जंगलराज की याद करवाते हैं. उल्लेखनीय है कि बिहार में 1995 में हुए चुनाव में नीतीश कुमार इसी 'जंगलराज' के नारे पर सवार होकर मजबूत माने जाने वाले लालू प्रसाद को हटाकर सत्ता तक पहुंचे थे. उस समय पटना उच्च न्यायालय ने राज्य में बढ़ते अपहरण और फिरौती के मामलों पर टिप्पणी करते हुए राज्य की व्यवस्था को जंगलराज बताया था, जिसे राजद विरोधियों ने मुद्दा बनाया था.

सत्ता में आने के बाद राजग ने नीतीश सरकार को 'सुशासन' का चेहरा बना दिया. हालांकि 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार की जदयू, राजद और कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में उतरी, उस समय भी भाजपा नेतृत्व वाले राजग ने 'जंगलराज' को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी, लेकिन तब यह मुद्दा नहीं बन सका था और महागठबंधन विजयी हुई थी. इस चुनाव में जदयू भाजपा एक साथ चुनावी मैदान में हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारों ही इशारों में तेजस्वी यादव को 'जंगलराज का युवराज' तक बताकर जंगलराज कैसा था, इसका भी बखान अपनी चुनावी सभाओं में कर रहे हैं. भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा भी जंगलराज का मुद्दा उठा रहे हैं.

बीबीसी के संवाददाता रहे बिहार के वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर भी मानते हैं कि भाजपा ने जिस तरह से इस मुद्दे को उभारा है, उससे उसको फायदा मिलेगा, क्योंकि अभी भी काफी लोग हैं जो उस दौर की वापसी नहीं चाहते हैं.

इधर, सुपौल के नवीन कुमार भी कहते हैं कि रोजगार ठीक है, नौकरी ठीक है. वे यह भी कहते हैं कि क्षेत्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति नाराजगी है, लेकिन जंगलराज की कल्पना करना ही डर पैदा करता है. युवा नवीन कहते हैं, ''जंगलराज की मुझे याद नहीं है, क्योंकि उस समय सात साल का था, लेकिन उस दौर की कहानियां अजीब है.'' बहरहाल, रोजगार और जंगलराज के बीच बिहार का चुनाव दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है. मतदाता किसे पसंद कर रहे हैं, यह तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा. (इनपुट IANS)