100 साल के परिचालन के बाद बंद पुराना किऊल पुल, अब नए ब्रिज पर सरपट दौड़ेंगी ट्रेनें
Advertisement

100 साल के परिचालन के बाद बंद पुराना किऊल पुल, अब नए ब्रिज पर सरपट दौड़ेंगी ट्रेनें

साथ ही ट्रेनों की अधिकतम गतिसीमा में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त हो गया है. अब इस पुल से ट्रेनों का परिचालन अधिकतम 110 किलोमीटर प्रतिघंटा तक की गति से किया जा सकेगा. 

100 साल के परिचालन के बाद बंद पुराना किऊल पुल, अब नए ब्रिज पर सरपट दौड़ेंगी ट्रेनें.

हाजीपुर: बिहार में 10 मई से पुराना किऊल ब्रिज बंद कर दिया गया है और इसके बदले नए किऊल ब्रिज पर रेल परिचालन को हरी झंडी दिखा दी गई है.

पिछले दिनों 8 मई को नए किऊल ब्रिज पर ट्रायल रन किया गया था जो पूरी तरह सफल रहा. अब ट्रेनों के परिचालन के लिए पूरी तरह फिट पाते हुए नए किऊल ब्रिज पर 10 मई से आधिकारिक रूप से ट्रेनों का परिचालन शुरू हो गया है. इस पुल से किऊल-लखीसराय के बीच अप एवं डाउन दिशा में प्रतिदिन 150 यात्री ट्रेनें तथा मालगाड़ियों का परिचालन किया जाता है. 

हालांकि, 17 मई तक सभी प्रकार की रेल सेवाएं स्थगित हैं, परंतु वर्तमान में इस रेलमार्ग पर चलने वाली मालगाड़ियां और कुछ श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का परिचालन नए किऊल रेल पुल से किया जा रहा है. 

7 मई के बाद जब भी ट्रेनों का परिचालन प्रारंभ होगा तो सभी ट्रेनों की आवाजाही नए रेल पुल से ही होगी. अब नए किऊल ब्रिज से ट्रेनों का संरक्षित परिचालन हो सकेगा. 

साथ ही ट्रेनों की अधिकतम गतिसीमा में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त हो गया है. अब इस पुल से ट्रेनों का परिचालन अधिकतम 110 किलोमीटर प्रतिघंटा तक की गति से किया जा सकेगा. 

10 मई को यानी रविवार के दिन किउल-लखीसराय ब्रिज होकर स्टाफ स्पेशल ट्रेन गुजरी जो इस ऐतिहासिक पुल से गुजरने वाली यह अंतिम रेल सेवा बनी. 

100 वर्षों से भी अधिक अवधि के दौरान इस पुल से अनगिनत यात्री ट्रेनों और मालगाड़ियों के गुजरने तथा करोड़ों यात्रियों के जीवन का छोटा सा हिस्सा बनने के साथ यह पुल रेलवे की लंबी विकास यात्रा का साक्षी रहा है. अपनी स्मरणीय यात्रा के बाद अब यह पुल भारतीय रेल के गौरवशाली अतीत का एक हिस्सा बन जाएगा.   

पुराना किऊल ब्रिज अपने आप में कई महत्वपूर्ण यादों को समेटे हुए है. पूर्वी भारत को पश्चिमी भारत से जोड़ने में अपना अहम योगदान देते हुए 100 वर्ष से भी अधिक इसपर सफलतापूर्वक ट्रेनों का परिचालन होता रहा. 

लेकिन काफी पुराना ब्रिज हो जाने के कारण इसमें कई खामियां आ गई थीं जिसके फलस्वरूप सुरक्षा की दृष्टिकोण से ट्रेनों की आवाजाही पर असर पड़ने लगा था. इसी का परिणम था कि ट्रेनों का परिचालन नियंत्रित गति के साथ ही सावधानीपुर्वक किया जाने लगा था.

इतना ही नहीं गैर-जरूरी बड़ी मालगाड़ियों का परिचालन स्थगित कर दिया गया था. 

विदित हो कि कोरोना संक्रमण के दौरान भी रेलवे के इंजीनियर्स, कर्मचारियों तथा श्रमिकों के प्रयास से ही इतनी जल्दी ये महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हो पाई है. इस दौरान पूर्व मध्य रेल की ओर से सामाजिक दूरी के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए सभी कार्य सीमित कार्यबल ने ही कराए. 

पुल को अंतिम रूप देने में जुड़े श्रमिकों की थर्मल स्क्रीनिंग के साथ ही कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए मास्क, हैंडवाश, सेनिटाइजर जैसी सामग्रियों के साथ-साथ भोजन भी पूर्व मध्य रेल की ओर से ही उपलब्ध कराया गया.