टूटी हॉकी से देखे सपने को ओलंपिक में पूरा कर रहे हैं विवेक सागर, बिहार से है ये खास रिश्ता
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टूटी हॉकी से देखे सपने को ओलंपिक में पूरा कर रहे हैं विवेक सागर, बिहार से है ये खास रिश्ता

विवेक ने जब खेलना शुरू किया था, तब उनके घर के आर्थिक हालात ज्यादा अच्छे नहीं थे. इस दौरान उनके दोस्तों ने उन्हें हॉकी स्टिक दी थी लेकिन ये स्टिक टूटी हुई थी. 

टूटी हॉकी से देखे सपने को ओलंपिक में पूरा कर रहे हैं विवेक सागर. (फाइल फोटो)

Patna: भारतीय हॉकी टीम ने 'खेलों के महाकुंभ' टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) में अर्जेंटीना को 3-1 से हराकर क्वार्टर फाइनल में अपनी जगह बना ली है. इस मैच में युवा फॉरवर्ड खिलाड़ी विवेक सागर (Vivek Sagar) ने अपने शानदार खेल से सबका ध्यान खींचा है. हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार की खोज विवेक के खेल से कई महान खिलाड़ी काफी ज्यादा प्रभावित हुए हैं. हालांकि, विवेक का जीवन काफी ज्यादा संघर्ष में गुजरा है. 

पिता को नहीं पसंद था हॉकी खेलना 
विवेक के पिता को उनका हॉकी खेलना पसंद नहीं था. इस पर उनके पिता खुद कहते हैं कि कई बार इसी वजह से विवेक की घर में पिटाई भी हुई है. हालांकि, उनकी मां और बड़े भाई ने विवेक का पूरा समर्थन किया है. कई बार जब विवेक हॉकी खेलने जाता था, तो उनकी मां झूठ बोल देती थी. लेकिन जब विवेक बड़े स्तर पर खेलने लगे तो उनके पिता भी उनका समर्थन करने लगे थे. 

टूटी हॉकी से देखा था सपना 
बता दें कि विवेक ने जब खेलना शुरू किया था, तब उनके घर के आर्थिक हालात ज्यादा अच्छे नहीं थे. इस वजह से उन्होंने अपने दोस्तों से हॉकी मांगकर इस खेल को खेलना शुरू किया था. इस दौरान उनके दोस्तों ने उन्हें हॉकी स्टिक दी थी लेकिन ये स्टिक टूटी हुई थी. 

वहीं, विवेक के बड़े भाई का कहना है, 'अब जब वो एक अच्छे मुकाम पर पहुंच गया है, तो स्पॉन्सरशिप के बदले कंपनी से हॉकी लेता है और उन खिलाड़ियों को देता है, जो संसाधनों के अभाव में इसे खरीद नहीं पाते हैं.'

मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने पहचानी प्रतिभा 
एक बार विवेक अकोला में हुए एक टूर्नामेंट में हिस्सा लेने पहुंचे थे. इस दौरान अशोक ध्यानचंद की नजर उन पर पड़ी. उनकी दौड़ने की तकनीक और पैरों के गजब तालमेल को देखकर अशोक कुमार भी उनसे प्रभावित हुए और उन्हें एमपी एकेडमी जॉइन करने का ऑफर दिया, जिसे विवेक ने स्वीकार कर लिया और भोपाल आ गए. 

चोट ने रोकी थी रफ्तार 
कहते हैं कि सोना आग में तपकर ही कुंदन बनता है. कुछ ऐसा ही विवेक के साथ हुआ है. एक मैच के दौरान उन्हें चोट लग गई थी. इस चोट की वजह से खराब खून उनके फेफड़ों तक पहुंच गया था. जिस वजह से उनकी जान पर भी बन आई थी. लेकिन हौसले और जुनून के आगे हर दिक्कत हार मान लेती है. इस चोट से उभरने के बाद विवेक एक बार फिर से मैदान में आए. इस दौरान उन्होंने सिर्फ एक हाथ से ही अभ्यास शुरू कर दिया. जुनून और जिद्द ने इस सोने को इंडिया खेलने की आग में ऐसा जलाया कि ये अब कुंदन बन कर सबका ध्यान खींच रहा है. 

बिहार से है खास रिश्ता 
आप को जानकार हैरानी होगी कि विवेक बिहार से जुड़े हुए हैं. विवेक के पिता बिहार के सिवान के गांव कन्हौली से हैं. वो 17 साल तक सिवान में ही रहे थे. इसके बाद वो नौकरी की तलाश में मध्य प्रदेश आ गए थे. इसके अलावा विवेक की मां भी बिहार से हैं. उनके पिता कहते है कि विवेक भले ही बिहार न गए हो लेकिन उसका लगाव वहां के लिए है.

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