ऐसे मनाते हैं संथाल परगना के लोग होली, परंपराओं की पेश करते हैं अद्भुत मिसाल
Advertisement

ऐसे मनाते हैं संथाल परगना के लोग होली, परंपराओं की पेश करते हैं अद्भुत मिसाल

इनके परम्परा के अनुसार संथाल समुदाय के लोग पानी को शुद्ध मानते हैं. इसलिए रंगों के जगह पानी ही इस्तेमाल किया जाता है. इसमे सखुआ के फुल और महुआ के फुल की पूजा की जाती है. पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ दूर-दूर से आए लोग पानी से खेल कर होली का आनंद लेते हैं.

परंपराओं की मिसाल पेश करते हुए अद्भुत तरीके से होली मनाते हैं संथाल परगना के निवासी.

धनबाद: गांव-गांव, शहर-शहर में होली का खुमार लोगों के सर चढ़ कर बोल रहा है. लोग फगुआ का गीत गाकर खुशी मना रहे हैं. ढोलवादक और करताल लेकर लोग नाच और झूम रहें हैं. वही आदिवासी समुदाय इन सब से हट कर होली के दिनों में पर्व मना रहे हैं, जिसमे पानी की होली खेली जाती है. 

इनके परम्परा के अनुसार संथाल समुदाय के लोग पानी को शुद्ध मानते हैं. इसलिए रंगों के जगह पानी ही इस्तेमाल किया जाता है. इसमे सखुआ के फुल और महुआ के फुल की पूजा की जाती है. पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ दूर-दूर से आए लोग पानी से खेल कर होली का आनंद लेते हैं.

कहते हैं कि यह पर्व संथालों के लिए धार्मिक दृष्टि से सबसे बड़ा पर्व है. यह पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है. पहले दिन उम महा (पूजा स्थल की छवनी) करते हैं. दूसरे दिन बेगान महा (पूजा अर्चना )और तीसरे दिन जाले महा (पानी से खेलना ) की परंपरा निभाई जाती है. 

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सृष्टिकर्ता मानव से नाराज हो गए थे. मनुष्य जब धर्म, संस्कार और अपनी संस्कृति को भूलकर सृष्टिकर्ता मरांड बुरु (शिव भगवान) को भूल गए थे, तभी धरती पर अग्निवर्षा हुई थी, जिससे सभी पापी नष्ट हो गए थे. लेकिन जो लोग मरांड बुरु (शिव भगवान) की पूजा करते थे वो बच गए. 

बाद में भगवान के खुश होने के बाद वर्षा हुई थी और धार्मिक मानव जाग उठे थे. इसलिए तभी से संथाल समाज के लोग बाहा पर्व में पानी की होली खेलते है और पारम्परिक गीतों और नृत्य के साथ होली का आनंद लेते हैं. मस्ती भरा माहौल होता है. सबों के हाथों में पानी, एक दूसरे पर डालते हुए बिना किसी भेद भाव के यह लोग पानी की होली खेलते हैं. 

इनके रीति-रिवाजों के अनुसार संथाल समुदाय के लोग रंगों की जगह पानी का इस्तेमाल करते हैं. इनके शास्त्रों के अनुसार रंगों से होली खेलना मना है अगर कोई इनको रंग डाल दे तो उनकी शादी रंग डालने वाले के साथ कर दी जाती है. जिसे संथाली भाषा में इतुक छदुई कहा जाता है.

इसलिए संथाल समाज रंगों की जगह पानी से होली खेलते है और बिना झिझक के क्या बच्चे और क्या बड़े सभी मस्ती के माहौल में डूब जाते हैं

दूर दराज से आये आदिवासी समुदाय इस दिन का बेसब्री से इंतेजार करते हैं नाचते गाते और पूरी मस्ती करते हैं. बहरहाल, पूरी दुनिया रंगों में डूब कर होली का आनंद लेती है वही संथाल समाज रासायनिक रंगों से परहेज कर प्राकृतिक रूप से मनाये जाने वाले बाहा पर्व पर अपनी परम्परा के अनुसार होली का लुत्फ उठाते हैं.