इस गांव में खाट वाली एंबुलेंस पर टिका लोगों का जीवन, वजह जान हो जाएंगे हैरान
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इस गांव में खाट वाली एंबुलेंस पर टिका लोगों का जीवन, वजह जान हो जाएंगे हैरान

अगर कोई ग्रामीण या गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना हो तो, उन्हें एकमात्र खटिया एंबुलेंस का ही सहारा लेना पड़ता है. वहीं, समस्या को लेकर जब आज तक सड़क नहीं बनी और गांव से शहर तक जाने के लिए कोई विकल्प नहीं है.

खटिया के सहारे एंबुलेंस तक मरीज को ले जाते हैं ग्रामीण.

दुमका: झारखंड की सरकार जहां विकास को लेकर काफी सजग है, वहीं, आदिवासी गांव के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए महरूम हैं. उन्हें जुगाड़ तंत्र के माध्यम से ही अपनी जान बचानी पड़ती है. सरकार तो आम लोगों के लिए सड़क, स्वास्थ्य, बिजली और पानी देने की बात तो कर रही है. लेकिन उपराजधानी दुमका में एक ऐसा गांव है, जहां महज झलक नहीं होने के कारण आदिवासी जुगाड़ तंत्र का इस्तेमाल कर मरीज को अस्पताल तक ले जाकर उसकी जान बचाते हैं.

दरअसल, दुमका का जरमुंडी प्रखंड क्षेत्र का जनक पुर पंचायत का हाथ घर गांव जहां आदिवासी संथाल समाज के ग्रामीण मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए खटिया एंबुलेंस तैयार कर रहे हैं और इसी खटिया में मरीज को लेकर 2 किलोमीटर का सफर करेंगे. मरीज को ले जाने के लिए गांव के ग्रामीण इकट्ठा होते हैं. बता दें कि महज गांव से मुख्य मार्ग तक पहुंचने के लिए 2 किलोमीटर की सड़क आज तक नहीं बनी है. जिस कारण आए दिन आदिवासी ग्रामीणों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

अगर कोई ग्रामीण या गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना हो तो, उन्हें एकमात्र खटिया एंबुलेंस का ही सहारा लेना पड़ता है. वहीं, समस्या को लेकर जब आज तक सड़क नहीं बनी और गांव से शहर तक जाने के लिए कोई विकल्प नहीं है, तो गांव के कुछ युवक समाज सेवा के माध्यम से आदिवासी गांव के मरीज को खटिया में लेटाकर उन्हें एंबुलेंस तक पहुंचाते हैं और मरीज का सहारा बनते हैं.

इधर, क्षेत्रीय विधायक और कृषि मंत्री बादल पत्रलेख समस्या सामने आने के बाद सड़क बनाने का दावा कर रहे हैं. लेकिन विधायक जी लगातार दो बार से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, किन्तु गांव की सड़क आज तक नहीं बन पाई है.

बरहाल, दुमका महज राजनीति का केंद्र बिंदु ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की कर्मभूमि भी है. ऐसे में आदिवासी का नेतृत्व करने वाली हेमंत सरकार में आदिवासी समाज के लोग आज भी जुगाड़ तंत्र से ही जान बचा रहे है.