Bihar Chunav 2025: अकसर विपक्षी दल खासतौर से कांग्रेस और मुस्लिमों की राजनीति करने वाले क्षेत्रीय दल असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा की बी टीम कहकर संबोधित करते हैं. हालांकि ऐसा वह अपनी सुविधा के हिसाब से करते हैं. असदुद्दीन ओवैसी तेलंगाना में कांग्रेस के लिए अपने हैं और बाकी पूरे देश में वे भाजपा की बी टीम.
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Bihar Chunav 2025: बिहार चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है, राजनीतिक दलों की पैंतरेबाजी भी बढ़ती जा रही है. अब देखिए न, मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बिहार में राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव दिया है. एआईएमआईएम ने इसके पीछे तर्क दिया है कि ऐसा वह इसलिए कर रही है, ताकि धर्मनिरपेक्ष वोटों के बंटवारे को रोका जा सके. एआईएमआईएम भले ही जो कुछ भी कहे, लेकिन उसने यह प्रस्ताव बहुत ही सोच-समझकर दिया है. तभी तो तेजस्वी यादव की पार्टी अभी तक इस बारे में कुछ बोल तक नहीं पाई है. दरअसल, ओवैसी की पार्टी लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता को धर्मसंकट में डालना चाहती है और इसके पीछे बिहार में रहने वाले 17 प्रतिशत मुसलमानों का वोट है.
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2023 में हुए जातीय सर्वे के अनुसार, बिहार में 17 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. अब तक यह माना जाता है कि बिहार के मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनता दल ही है. हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने राजद को जबर्दस्त झटका दिया था और 5 सीटें जीतने में सफल रही थी. फिर भी पूरे प्रदेश में मुसलमानों की पहली पसंद राजद ही है. इसमें कोई दोराय नहीं है. राजद के MY समीकरण में मुसलमान पहले आते हैं.
AIMIM ने जो पासा फेंका है, उसके मद्देनजर आपको एक और बात समझ लेनी चाहिए. बिहार विधानसभा की 243 में से 32 सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमान वोटर जीत और हार तय करते हैं और अपनी धमक रखते हैं. इन 32 विधानसभा क्षेत्रों में बिहार की 30 प्रतिशत मुस्लिम आबादी निवास करती है और इस 30 प्रतिशत आबादी पर राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव का प्रभाव है. पिछले कुछ दिनों पहले कांग्रेस ने जब सीट शेयरिंग को लेकर अपनी बात रखी थी, तब वह इन 32 सीटों में बराबरी का हिस्सा चाह रही थी. अब ओवैसी की पार्टी का भी मुख्य उद्देश्य इस 30 प्रतिशत आबादी को साधना है.
दूसरी ओर, राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव AIMIM के प्रस्ताव पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं. उनको पता है कि कांग्रेस और AIMIM राजद की 'आत्मा' में से हिस्सेदारी मांग रहे हैं. अगर ऐसा होता है तो राजद का आधार वोट बैंक प्रभावित होगा और फिर जो होगा, उसके बारे में लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव से बेहतर कौन जान सकता है. AIMIM ने महागठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव भी बहुत सोच-समझकर दिया है.
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दरअसल, बिहार के मुसलमानों में थोड़ी बहुत पैठ असदुद्दीन ओवैसी ने भी बनाई हुई है. अब अगर ओवैसी की पार्टी के प्रस्ताव पर राजद नेताओं ने कोई फैसला नहीं किया और उन्हें महागठबंधन में शामिल नहीं किया, तब ओवैसी को यह बात कहने का मौका मिल जाएगा कि भाजपा विरोधी वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए राजद और कांग्रेस के नेता गंभीर नहीं हैं. इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी पर भाजपा के बी टीम के रूप में काम करने के आरोपों से भी मुक्ति मिल सकती है. इस तरह ओवैसी की पार्टी ने बिहार में बहुत बड़ा दांव खेल दिया है.