Bihar News: नीतीश कुमार को बीमार बताने वाले तब कहां थे, जब राष्ट्रगान के समय लालू और राबड़ी देवी कुर्सी पर बैठे हुए थे?
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Bihar News: नीतीश कुमार को बीमार बताने वाले तब कहां थे, जब राष्ट्रगान के समय लालू और राबड़ी देवी कुर्सी पर बैठे हुए थे?

Bihar Politics: नीतीश कुमार के साथ विपक्ष जिस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहा है, वह इस बात की खीझ है कि आखिर वे भाजपा के साथ क्यों हैं. पिछले 3 महीने में राजद कैंप की ओर से 3 बार नीतीश कुमार को महागठबंधन में आने की अपील की जा चुकी है और नीतीश कुमार हर मंच से इसे ठुकराते आ रहे हैं.

Bihar News: नीतीश कुमार को बीमार बताने वाले तब कहां थे, जब राष्ट्रगान के समय लालू और राबड़ी देवी कुर्सी पर बैठे हुए थे?
Bihar News: नीतीश कुमार को बीमार बताने वाले तब कहां थे, जब राष्ट्रगान के समय लालू और राबड़ी देवी कुर्सी पर बैठे हुए थे?

Bihar News: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर पूरा विपक्ष हमलावर है. दरअसल, उनका एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वे राष्ट्रगान के दौरान अपने प्रधान सचिव दीपक कुमार के कंधे पर हाथ रखकर उनको कुछ बताने की कोशिश करने लगे. वीडियो में यह भी दिखा कि नीतीश कुमार राष्ट्रगान के दौरान ताली बजाने लगे. अब राजद समेत पूरा विपक्ष नीतीश कुमार के इस व्यवहार को बिहार के अपमान से जोड़कर इस्तीफा मांग रहा है. मुख्यमंत्री को अचेत और बेहोश बताया जा रहा है. पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव आदि इस बात को लेकर मुख्यमंत्री पर हमलावर हैं. जो लोग आज इस्तीफा मांग रहे हैं, वे खुद 2002 में 26 जनवरी के दिन राष्ट्रगान के दौरान कुर्सी से चिपके हुए थे. तब राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री हुआ करती थीं. तब विपक्ष ने भी इसको लेकर खूब हो हल्ला किया था. आज केवल पोजिशन की अदला बदली हो गई है. बदला कुछ नहीं है.

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दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जनता की नजर में बीमार साबित करने की कोशिश की जा रही है. नीतीश कुमार बीमार हैं या नहीं, यह डॉक्टर बेहतर बताएंगे. नीतीश कुमार डॉक्टरों के संपर्क में भी होंगे, इसमें भी कोई शक नहीं होना चाहिए. जिस बिहार के अपमान की बात हो रही है, वह महज सियासी है. उसमें नैतिकता का लेशमात्र स्थान नहीं है. 

आप मानें या न मानें, आप नीतीश कुमार के विरोधी या फिर समर्थक हो सकते हैं, लेकिन बिहार के लिए जो नीतीश कुमार ने किया है, उसे नजरंदाज नहीं कर सकते. 90 के दशक से जब बिहार जातीय हिंसा, दहशत, बेरोजगारी, शैक्षणिक अराजकता, बाढ़, सुखाड़ जैसी समस्याएं झेल रहा था, अपहरण उद्योग स्थापित हो चुका था, तब बिहारवासियों को उम्मीद की जो पहली किरण दिखी थी, वो थे नीतीश कुमार. 

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नीतीश कुमार को जब गद्दी मिली थी, तब कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब थी. बिजली, पानी, सड़क जैसी सुविधाओं के बारे में सोचना भी मुश्किल था. बिहार के बड़े शहरों से पढ़ाई का माहौल खत्म हो चुका था. पैसे वाले लोग अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए बाहर भेज देते थे. तब नीतीश कुमार ने बिहार को एक सपना दिखाया था. 

तब बिहार की राजनीति में कैलाशपति मिश्र, रघुनाथ झा, सुशील कुमार मोदी, रामविलास पासवान जैसे दिग्गज धुरंधर नेता हावी हुआ करते थे पर नीतीश कुमार इन सभी को पीछे छोड़कर सबसे बड़े नेता बनते चले गए. नीतीश कुमार ने गैर यादव पिछड़ी जाति के वोटरों को गोलबंद किया और सवर्णों ने भी उनका साथ दिया. फिर क्या था, बदलाव की आंधी चली और लालू राबड़ी राज का अंत हुआ.

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल में बुनियादी सुविधाओं को दुरुस्त करने का जो काम हुआ, उसे विरोधी दल भी नहीं झुठला सकते. बिहार के लिए यह बदलाव वाला दौर था. नीतीश कुमार आधुनिक बिहार के नायक के तौर पर स्थापित हुए और राज्य में एक नया सामाजिक समीकरण स्थापित हुआ था. नीतीश कुमार के कार्यकाल में बिहार के गांवों में 4 हजार किलोमीटर सड़कों का निर्माण हुआ. अब तक 6,000 से ज्यादा पुल-पुलियों का निर्माण हुआ. 

बड़े पैमाने पर  पुलिस भवन, ओवरब्रिज, सरकारी स्कूलों की बिल्डिंगों का निर्माण हुआ. 1.5 करोड़ घरों में नल से जल पहुंचाया गया. दलित बस्तियों का कायाकल्प हुआ. पिछड़े मुसलमानों के लिए स्कीम लांच की गई. यह बदलते बिहार की तस्वीर थी और इसी कारण नीतीश कुमार की छवि विकास पुरुष की बनी. अपराध पर लगाम लगा. अपराधी जेल भेजे गए और सुशासन बाबू की छवि स्थापित हुई.

इस बात पर बहस की जा सकती है कि नीतीश कुमार के 20 साल के शासन में क्या उतना विकास हुआ, जितना होना चाहिए था, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि नीतीश कुमार ने अपने विजन से बिहार को बहुत कुछ दिया है. नीतीश कुमार की इसलिए आलोचना हो रही है, क्योंकि वह बीजेपी के साथ हैं. आज वह राजद के साथ आ जाएं तब सहर्ष स्वीकार कर लिए जाएंगे. 

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नीतीश कुमार के साथ इतनी बड़ी दिक्कत है तो फिर नए साल की शुरुआत के साथ ही लालू प्रसाद यादव ने क्यों उनका महागठबंधन में स्वागत करने की बात कही थी. दरवाजा खोलने की बात कही थी. राबड़ी देवी ने सदन में साथ आने का ऑफर दिया था. मीसा भारती ने तो परिवार का सदस्य तक बता दिया था. होली पर भी लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार को एक तरह से संदेश देने की कोशिश की थी.

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