Lok Sabha Election 2024: बिहार की सियासत में इन दिनों गर्मी खूब बढ़ी हुई है. लोकसभा चुनाव में भाजपा का रास्ता रोकने के लिए नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव साथ मिलकर विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं और उन्हें एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं लालू प्रसाद यादव का परिवार ईडी और सीबीआई की लगातार चल रही जांच का भी सामना कर रहा है. कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के गठने के लिए शपथ ग्रहण समारोह में नीतीश कुमार तेजस्वी यादव के साथ शामिल होने पहुंचे थे और वहां से वह सीधे दिल्ली के लिए रवाना हो गए. जबकि 4 दिन से दिल्ली में प्रवास कर रहे लालू यादव और राबड़ी देवी पटना लौट गए. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


ऐसे में समझना होगा कि आखिर ऐसा क्यों हुआ. दरअस सिंगापुर से किडनी ट्रांसप्लांट कराकर स्वदेश लौटे लालू यादव को लगातार चिकित्सकीय जांच और परामर्श के लिए और अपने स्वास्थ्य कीजांच कराने के लिए डॉक्टर के पास आना होता है. दिल्ली स्थित AIIMS में उनका जांच होना होता है. ऐसे में पटना गए लालू यादव को 16 तारीख को पत्नी राबड़ी देवी के साथ दिल्ली आना पड़ा. यहीं 18 मई को ईडी ने लैंड फॉर जॉब घोटाला मामले में राबड़ी देवी से पूछताछ की थी. इसके बाद अपने स्वास्थ्य की जांच करा चुके लालू यादव के साथ राबड़ी देवी आज पटना लौट गईं.  


वहीं कर्नाटक से सीधे दिल्ली पहुंचे तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार रविवार को विपक्षी नेताओं से दिल्ली में मिलनेवाले हैं. उनका विपक्षी दलों के नेताओं से मिलने का मकसद गठबंधन से पहले की बैठक की तिथि तय करना है. इस बार नीतीश और तेजस्वी के साथ ललन सिंह भी हैं. यहां नीतीश कुमार दिल्ली में अपने आवास पर पहुंचे और जदयी के वरिष्ठ नेताओं से मिलकर इस मामले पर विचार विमर्श किया. नीतीश पहले ही साफ कर चुके थे कि कर्नाटक के नतीजे और वहां सरकार गठन के बाद ही विपक्षी दलों की बैठक की तारीख पर फैसला होगा. 


ये भी पढ़ें- सर! मेरा अपहरण नहीं हुआ, मर्जी से लव मैरिज किए हैं, मुस्लिम लड़की ने जब पुलिस के सामने कही ये बात...


वहीं भाजपा के नेता देश भर में विपक्षी एकता के दावे को खोखला बता रहे हैं. भाजपा का दावा है कि विपक्षी एकता का सूत्रधार बनी कांग्रेस ने नीतीश को आगे तो कर दिया लेकिन कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार के शपथग्रहण में जो नजारा दिखा वह बताने के लिए काफी थी कि विपक्षी एकता कितनी मजबूत है. भाजपा ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न देख रहे विपक्षी नेताओं को अलग-थलग करके एक किनारे की कुर्सी पर बिठा दिया गया. वहीं कुछ विपक्षी दलों के नेताओं को तो यहां आने का न्यौता तक नहीं दिया गया. ऐसे में विपक्षी एकता का दावा एकदम खोखला है.