Bihar Politics: तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इंडिया ब्लॉक की नेता बनेंगी या नहीं, यह तो वक्त बताएगा लेकिन लालू प्रसाद यादव ने एक झटके में कांग्रेस को बहुत बड़ी चोट पहुंचा दी है. लालू प्रसाद यादव ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस को सपोर्ट कर बहुत बड़ी राहत दी थी और कांग्रेस ने भी उनके इस एहसान को वर्षों तक ढोया, लेकिन बीच बीच में कांग्रेसी संस्कृति लालू प्रसाद यादव को चोट पहुंचाती रही है. लालू प्रसाद यादव को सबसे बड़ी चोट तब लगी, जब तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने उनके लिए एक तरह से प्रोटेक्शन वारंट के लिए अध्यादेश पास किया था और उन्हें बहुत राहत मिल जाती, लेकिन राहुल गांधी ने उस अध्यादेश की राह में अपना वीटो पावर लगा दिया. आप सभी जानते हैं कि उस अध्यादेश का हश्र क्या हुआ. उसके बाद भी लालू प्रसाद यादव आंख मूंदकर कांग्रेस को सपोर्ट करते रहे.


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लालू प्रसाद यादव के मन में कांग्रेस को लेकर टीस 2019 के लोकसभा चुनाव से शुरू हुई, जब कन्हैया कुमार की बिहार की राजनीति में एंट्री हुई. हालांकि तब कांग्रेस इसके लिए जिम्मेदार नहीं थी. कन्हैया कुमार उस समय कम्युनिस्ट पार्टी से चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन लालू प्रसाद यादव को अपने बेटे तेजस्वी यादव के सामने कोई युवा नेता बिहार में नहीं चाहिए था. बाद में कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल हो गए, जो लालू प्रसाद यादव को नागवार गुजरा. कांग्रेस लोकसभा चुनाव में कन्हैया कुमार को बेगुसराय या फिर किसी भूमिहार बहुल सीट से टिकट देना चाहती थी पर लालू प्रसाद यादव ने तब अपना वीटो पावर इस्तेमाल कर कन्हैया कुमार को बिहार से बाहर की राजनीति करने पर मजबूर कर दिया और उन्हें कांग्रेस ने दिल्ली में उतारा था.


लालू प्रसाद यादव यह भी नहीं चाहते थे कि पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल हों. कांग्रेस अगर लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव को मैदान में उतारती तो तेजस्वी यादव की नेतागीरी उनके सामने बौनी हो सकती थी, इसलिए लालू प्रसाद यादव ने पूर्णिया की सीट पर एक बार फिर अपना वीटो पावर लगा दिया. यही नहीं पूर्णिया में जब पप्पू यादव ने निर्दलीय ताल ठोक दी तो तेजस्वी यादव को वहां कैंप करवा दिया और यह बयान दिलवा दिया कि भले ही एनडीए का प्रत्याशी जीत जाए पर पप्पू यादव वहां से नहीं जीतना चाहिए. इस तरह पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल होकर भी निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे और जीते भी. 


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पप्पू यादव भले निर्दलीय सांसद हों पर कांग्रेस उन्हें अपना मानती है और लोकसभा चुनाव में राजद के बराबर प्रदर्शन की बात करती है. लोकसभा चुनाव में राजद के 4 प्रत्याशी जीते थे और कांग्रेस के 3, लेकिन पप्पू यादव को अगर कांग्रेस अपने में गिनती है तो उसके भी 4 सांसद हो जाते हैं. लड़ाई यही से शुरू होती है. विधानसभा चुनाव सिर पर है और कांग्रेस सीट बंटवारे का आधार लोकसभा चुनाव में पार्टियों के प्रदर्शन को आधार बनाने का दबाव बना रही है. अगर लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन के आधार पर सीटों का बंटवारा हुआ तो फिर कांग्रेस और राजद को बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ना होगा, जो लालू प्रसाद यादव को बिल्कुल गंवारा नहीं होगा.


पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2020 की बात करें तो कांग्रेस ने आलाकमान से दबाव बनवाकर 70 सीटें लड़ने के लिए हथिया ली थीं लेकिन उसे केवल 19 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस का स्ट्राइक रेट बेहद खराब रहा और महागठबंधन की हार का कारण कांग्रेस की जिद को बताया गया था. इस चुनाव में ज्यादा सीट हथियाने के लिए कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को भी बीच में आना पड़ा था और बताते हैं कि उसके बाद हुए उपचुनाव के दौरान सीटों को लेकर कांग्रेस नेताओं और लालू प्रसाद यादव के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई थी. मामला इतना आगे बढ़ गया था कि लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस के तत्कालीन बिहार प्रभारी भक्त चरण दास को लेकर विवादित बयान दे डाला था. अंत में सोनिया गांधी को फोन पर बीचबचाव करना पड़ा था. 


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ममता बनर्जी इंडिया ब्लॉक की नेता बन पाएंगी या नहीं, यह तो बाद में तय होगा लेकिन लालू प्रसाद यादव अपने इस नहले पर दहला फेंकने के बाद कांग्रेस में दबाव बनाने में सफल हो गए दिखते हैं. मीडिया में भी लालू प्रसाद यादव के बयान को बड़ी तरजीत मिल रही है और कांग्रेस के नजरिये से इसे बड़ा झटका बताया जा रहा है. जानकार तो यह भी बता रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में हार से ज्यादा लालू प्रसाद यादव का बयान कांग्रेस को झटका देने वाला है.


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