4 प्वाइंट में जानें नीतीश कुमार क्यों एनडीए में कर सकते हैं वापसी, शर्त सुशासन बाबू का होगा या फिर बीजेपी का?
बिहार की राजनीति के बुझो तो जानें यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के बारे में वैसे तो कोई भी कयासबाजी नहीं की जा सकती पर हालात और संकेतों को देखकर कहा जा सकता है कि राज्य की राजनीति में एक बार फिर से भूचाल आ सकता है.
बिहार की राजनीति के बुझो तो जानें यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के बारे में वैसे तो कोई भी कयासबाजी नहीं की जा सकती पर हालात और संकेतों को देखकर कहा जा सकता है कि राज्य की राजनीति में एक बार फिर से भूचाल आ सकता है. वैसे तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू (Janta Dal United) के आला नेताओं को भी पता नहीं रहता कि नीतीश कुमार का अगला कदम क्या हो सकता है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए (NDA) खेमे की ओर लौट सकते हैं. इसका एक सबसे मजबूत कारण यह बताया जा रहा है कि जब से नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) से अलग हुए, तब से वे उनके साथ मिलकर एक भी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Chunav) नहीं लड़े हैं और आने वाला समय भी लोकसभा चुनाव का ही आने वाला है.
दूसरा सबसे बड़ा कारण यह भी बताया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में जेडीयू को महागठबंधन में रहते चुनाव लड़ने के लिए उतनी सीटें नहीं मिल सकतीं, जितनी कि बीजेपी उन्हें सालों से देती आ रही है. महागठबंधन में 7 दल हैं और सीटों का बंटवारा सबकी सहमति से होने वाला है. इस तरह राजद और जेडीयू ज्यादा से ज्यादा सीटों पर तो चुनाव लड़ेंगे पर वह कितना ज्यादा होगा. बीजेपी नीतीश कुमार की पार्टी को चुनाव लड़ाने के लिए 17 सीटें देती आ रही है, क्या राजद उतनी सीटें दे सकती है. जाहिर है कि नहीं दे सकती, क्योंकि तेजस्वी यादव के सामने कांग्रेस, भाकपा माले और जीतनराम मांझी के अलावा अन्य छोटे दलों को साधने की जिम्मेदारी है. जाहिर है जेडीयू को चुनाव लड़ने के लिए उतनी सीटें राजद नहीं दे सकता. इस तरह अभी नीतीश की पार्टी के जितने सांसद हैं, उतने शायद चुनाव लड़ने को सीटें भी हासिल न हो पाए.
तीसरा कारण भी बड़ा महत्वपूर्ण है. नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से दूरी तब बनाई थी, जब वे चारा घोटाले में फंस गए थे और उसके बाद से आज तक नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के भ्रष्टाचार से दूरी बनाए रखी. अब जबकि नीतीश कुमार महागठबंधन में राजद के साथ सरकार चला रहे हैं तो लालू यादव का परिवार लैंड फाॅर जाॅब घोटाले में फंसता दिख रहा है. लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, मीसा भारती और तेजस्वी यादव से सीबीआई और ईडी की पूछताछ हो चुकी है. ईडी ने तो तेजस्वी यादव के अलावा उनकी तीन बहनों के आवासों पर भी छापेमारी की थी और राजद के पूर्व विधायक अबू दोजाना के ठिकानों पर भी रेड डाली गई थी. नीतीश कुमार ने उसके बाद से ही चुप्पी साध ली है. यही चुप्पी राजद को परेशान कर रही है. पिछली बार जब लैंड फाॅर जाॅब केस का खुलासा हुआ था, तभी नीतीश कुमार ने पाला बदला था और एनडीए में वापसी की थी. अब एक बार फिर इस केस का जिन्न बाहर आ गया है तो नीतीश कुमार के लिए राजद के साथ बने रहना शायद मुनासिब नहीं लग रहा है.
नीतीश कुमार यह कतई नहीं चाहेंगे कि उन पर किसी भ्रष्टाचार के आरोपी का साथ देने का तोहमत लगे, क्यों सार्वजनिक जीवन में इतने साल रहने और मुख्यमंत्री पद पर रहने के बाद भी नीतीश कुमार की छवि बेदाग रही है और समकालीन राजनीति में यही नीतीश कुमार की सबसे बड़ी यूएसपी है. इसलिए नीतीश कुमार यह कतई नहीं चाहेंगे कि राजद और कांग्रेस के चलते उनकी पार्टी को चुनाव में खामियाजा उठाना पड़े, क्योंकि बीजेपी की चुनावी मशीनरी तो अभी से ही राजद और कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ चुकी है.
ये तो हो गई नीतीश कुमार की बात कि वे क्या कर सकते हैं. अब जानते हैं बीजेपी की रणनीति क्या है. वाल्मीकिनगर की रैली के मंच से अमित शाह ने ऐलानिया कहा था कि अब सुशासन बाबू की एनडीए में वापसी नहीं हो सकती, क्योंकि उन्हें हर 3 माह के बाद पीएम बनने के सपने आते हैं. बीजेपी की बिहार कार्यकारिणी ने भी इस तरह का प्रस्ताव पारित कर नीतीश कुमार के साथ वापस जाने की मंशा पर पूर्णविराम लगा दिया है. हालांकि यह सब जानते हैं कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता. न कोई स्थायी दोस्त और न ही कोई स्थायी दुश्मन. बीजेपी के मन में इस बात की टीस जरूर है कि जिस नीतीश कुमार को बीजेपी ने आगे करके मुख्यमंत्री बनाया, उसी नीतीश कुमार ने 2-2 बार खंजर घोंपने का काम किया है. माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी में तभी राजी होगी, जब वे बिहार की राजनीति को छोड़ दें. हालांकि बिहार में इस समय बीजेपी को भी लोकसभा चुनाव के लिए मजबूत सहयोगी की जरूरत है और नीतीश कुमार अगर एनडीए का फिर से हिस्सा बनते हैं तो यह बीजेपी के लिए निश्चित ही फायदे का सौदा होगा. अब देखना यह होगा कि नीतीश कुमार की वापसी नीतीश कुमार की शर्त पर होती है या फिर बीजेपी की शर्त पर.