बिहार के मकई किसानों को 1300 करोड़ का संभावित नुकसान: स्वराज इंडिया
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बिहार के मकई किसानों को 1300 करोड़ का संभावित नुकसान: स्वराज इंडिया

योगेंद्र यादव ने कहा है कि, भुगतान का एक हिस्सा केंद्र सरकार प्राइस सपोर्ट स्कीम योजना के तहत करे और शेष कीमत बिहार सरकार दे.

बिहार के मकई किसानों को हो रही परेशानी पर आवाज उठाते हुए. (फाइल फोटो)

पटना: स्वराज इंडिया ने बिहार के मकई किसानों को हो रही परेशानी पर आवाज उठाते हुए, सरकार से सीधी खरीद करने की मांग की है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा है कि, भुगतान का एक हिस्सा केंद्र सरकार प्राइस सपोर्ट स्कीम (PSS) योजना के तहत करे और शेष कीमत बिहार सरकार दे.

कोरोना लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से मकई की बाजार में मांग एकाएक गिर गई है और बिहार में बड़े पैमाने पर उपजाए मकई के लिए खरीदार नहीं मिल रहे हैं. पिछले वर्ष जहां किसानों ने 2000 रुपए प्रति क्विंटल पर मकई बेचा था, वहीं इस बार 1000 से 1100 रुपए पर भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं.

पार्टी उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुपम ने बताया कि बिहार के 11 जिले समस्तीपुर, खगड़िया, कटिहार, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, भागलपुर और नवगछिया में देश के कुल मक्का उत्पादन का 30 से 40 प्रतिशत पैदावार होता है. अगर सरकार एमपीएस (MPS) पर खरीद नहीं करती तो बिहार के मकई किसानों को लगभग 1300 करोड़ रुपए तक का नुकसान होने की संभावना है.

कोसी और सीमांचल इलाकों के किसान व्यथित होकर सरकार की तरफ देख रहे हैं. उन्होंने कहा, 'भले ही सरकार ने मकई के लिए 1760 रुपए का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय किया है. लेकिन क्रय केंद्र खुले नहीं हैं और लॉकडाउन के कारण बाहर के व्यापारी भी नहीं आ रहे. पोल्ट्री व्यवसाय ठप पड़ जाने के कारण जहां इससे जुड़े किसान तबाह हैं, वहीं पोल्ट्री फीड में इस्तमाल होने वाले अनाज, मसलन मक्का की मांग कमजोर पड़ गई है.'

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के दूसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के अनुसार, देश में इस साल 280 लाख टन मक्के का उत्पादन होने की उम्मीद है. बिहार मक्के का प्रमुख उत्पादक राज्य है और कोसी क्षेत्र को तो 'मक्का का मक्का' कहा जाता है.

स्वराज इंडिया ने मांग किया है कि, मकई किसानों की बदहाली का बिहार सरकार जल्द संज्ञान ले और फसल की खरीद करवाएं. केंद्र सरकार द्वारा घोषित प्रधानमंत्री आय संरक्षण योजना (पीएम-आशा) के तहत भुगतान का एक हिस्सा केंद्र और बाकी बिहार सरकार दे. सरकार यह सुनिश्चित करे कि, बिहार के किसानों को इस अप्रत्याशित परिस्थिति का खामियाजा न भुगतना पड़े.