Janmashtami 2022: इस मंदिर में भगवान की प्रतिमा जमीन में करीब 5 फीट गड़े शेषनाग के फन पर निर्मित 24 पंखुड़ियों वाले विशाल कमल पुष्प पर विराजमान है. कहते हैं कि यह प्रतिमा स्वप्न में दिखाई दी थी और तय स्थान पर खुदाई में मिली थी.
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Janmashtami 2022: जन्माष्टमी का उत्सव हर भारतवासी के लिए उत्साह का उत्सव है. इस बार यह 19-20 अगस्त को है. देशभर के श्रीकृष्ण मंदिर रात के 12 बजते ही घंटे-घड़ियालों से गूंज उठते हैं और ये घोषणा हो जाती है कि भगवान का जन्म हो गया है. उत्तर प्रदेश में जहां मथुरा श्रीकृष्ण की जन्म भूमि रही है तो भारत के कई अलग-अलग प्रदेश कहीं न कहीं श्रीकृष्ण की कथाओं से जुड़े हुए हैं. इनमें ही एक है, गढ़वा जिले के अनुमंडल मुख्यालय श्री बंशीधर नगर स्थित श्री बंशीधर मंदिर. बांकी नदी के किनारे यह मंदिर, अद्भुत है.
कमल पर आसीन है प्रतिमा
इस मंदिर में भगवान की प्रतिमा जमीन में करीब 5 फीट गड़े शेषनाग के फन पर निर्मित 24 पंखुड़ियों वाले विशाल कमल पुष्प पर विराजमान है. कहते हैं कि यह प्रतिमा स्वप्न में दिखाई दी थी और तय स्थान पर खुदाई में मिली भी. इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि यह प्रतिमा मराठा शासकों के द्वारा बनवाई गई होगी. उन्होंने वैष्णव धर्म का काफी प्रचार प्रसार किया था. मंदिर में हर साल धूमधाम से जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस मंदिर में वर्ष 1930 के आसपास चोरी भी हुई थी. इसमें चोर भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी और छतरी चोरी कर ले गए थे. बाद में चोरी करने वाले चोर अंधे हो गए थे. उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. परंतु चोरी की हुई वस्तुएं बरामद नहीं हो पाई. बाद में राज परिवार ने दोबारा स्वर्ण बांसुरी और छतरी बनवा कर मंदिर में लगवाया.
ये है मंदिर की कहानी
मंदिर के गुंबद पर लिखित इतिहास के अनुसार संवत 1885 में श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त नगर गढ़ के महाराज स्वर्गीय भवानी सिंह की विधवा रानी शिवमणि देवी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन थीं. आधी रात में भगवान श्रीकृष्ण ने रानी के स्वप्न में आकर दर्शन दिए तथा रानी के आग्रह पर नगर उंटारी लाने की अनुमति दी. रात में देखे स्वप्न के अनुसार रानी अपने लाव लश्कर के साथ करीब 20 किलोमीटर पश्चिम सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के दुद्धी थाना क्षेत्र के शिवपहरी नामक पहाड़ी पर पहुंची और स्वयं फावड़ा चलाकर खुदाई कार्य का शुभारंभ किया.
रात्रि में स्वप्न में आए भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा खुदाई में प्राप्त हुई. खुदाई में प्राप्त भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को हाथी से नगर उंटारी लाया गया. नगर गढ़ के सिंह दरवाजे पर हाथी बैठ गया. लाख प्रयत्न के बावजूद हाथी नहीं उठा. रानी ने राजपुरोहितों से मशविरा कर वहीं पर प्रतिमा रखकर पूजन कार्य प्रारंभ कराया. प्रतिमा सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण की थी. इसलिए वाराणसी से श्रीराधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा बनवा कर मंगाया गया और उसे भी मंदिर में श्रीकृष्ण के साथ स्थापित कराया गया.
नगर की पहचान है मंदिर
60-70 के दशक में बिरला ग्रुप ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. आज भी श्री बंशीधर की प्रतिमा कला के दृष्टिकोण से अति सुंदर एवं अद्वितीय है. भगवान श्रीकृष्ण की इस प्रतिमा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आज तक बिना पॉलिश के भी प्रतिमा ऐसी ही दमकती है. मंदिर के नाम पर झारखंड सरकार ने शहर का नाम श्री बंशीधर नगर कर दिया है. मंदिर ही इस नगर की पहचान है.
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