21वीं सदी में भी लाचारी का जीवन जीने पर मजबूर है गुमला की यह बस्ती! पीने का साफ पानी तक नहीं है नसीब
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21वीं सदी में भी लाचारी का जीवन जीने पर मजबूर है गुमला की यह बस्ती! पीने का साफ पानी तक नहीं है नसीब

इस बस्ती में लगभग 50 से 70 परिवार रहते हैं, जिनकी संख्या लगभग 400 से 500 के करीब है. बावजूद इसके इस बस्ती में पीने का पानी तक नहीं है.

यहां के लोगों को पीने का साफ पानी तक नसीब नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Gumla: गुमला में केंद्र और राज्य की सरकार पिछड़ा जाति व अत्यंत पिछड़ा जनजाति समूह के लोगों को सशक्तिकरण कर विकास की धारा से जोड़ने की बात कहती है लेकिन यहां के लोग विकास की परिभाषा से कोसों दूर हैं. आजादी के 72 साल बीत जाने के बाद भी आज तक सरकार की कल्याणकारी योजना यहां की बस्ती तक नहीं पहुंची हैं. जिससे गांव के लोग लाचारी और कवायद का जीवन जीने पर मजबूर हैं.

यहां के लोग 21वीं सदी में होने के बावजूद भी प्राचीन काल में जी रहे हैं. यह मामला जिले के चैनपुर प्रखंड मुख्यालय से सटे महज 1 किमी की दूरी पर स्थित बेदोरा पंचायत की कॉलोनी बस्ती का है. यहां आजादी के 72 साल बीतने के बाद भी लोगों तक सरकार की कल्याणकारी योजना नहीं पहुंची है. बता दें कि इस बस्ती में लगभग 50 से 70 परिवार रहते हैं, जिनकी संख्या लगभग 400 से 500 के करीब है. बावजूद इसके इस बस्ती में पीने का पानी तक नहीं है. जिसके चलते यहां के लोग आज भी डोभा का दूषित पानी पीने को मजबूर है. बस्ती में एक चापा नल है, लेकिन वह भी खराब है. यहां एक कुआं भी है लेकिन उसका पानी भी पीने लायक नहीं है.

'स्वच्छ भारत अभियान' के तहत यहां के घरों में भी शौचालय बनाया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ऐसे में लोग खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं. बात अगर शिक्षा की करें तो यहां के लोग उससे भी कोसों दूर हैं. यहां लोगों की हालत ने सरकार और प्रशासन के हर एक दावे की पोल खोलकर रख दी है. बहरहाल जो भी हो जब प्रखण्ड मुख्यालय की हालत ऐसी है तो इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांव के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की क्या हालत होगी.  सरकार को चाहिए कि योजना सीधे लाभुक तक पहुंचे जिससे लोगों को योजन का लाभ मिल सके.

(इनपुट- रणधीर निधि)

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