हजारीबागः झारखंड के हजारीबाग जिले के बरकट्ठा प्रखंड के बरकट्ठा दक्षिणी पंचायत में इन दिनों ऐसी घटनाएं हो रही है, जिसने सभी को हैरान कर दिया है. इन घटनाओं को कोई आत्माओं का साया कह रहा है, तो कोई देवी देवताओं की नाराजगी बता रहा हैं. जिला मुख्यालय से तकरीबन 60 किलोमीटर दूर स्थित बरकट्ठा प्रखंड के बरकट्ठा दक्षिणी पंचायत में पिछले 45 दिनों से काला दिन चल रहा है. 


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45 दिनों में 20 लोगों की मौत 
दरअसल, काला दिन इसलिए क्योंकि 45 दिनों के भीतर लगातार पंचायत क्षेत्र के 17 घरों के चिराग बुझते नजर आए हैं. एक के बाद एक लोगों की मौत की सिलसिला थम नहीं रही है और कुछ इस तरीके से पंचायत के कुल 20 लोग काल के गाल समा गए. गांव में किसी की मौत अचानक हो रही है, तो किसी की सड़क दुर्घटना में, बीते 3 दिन पहले ही एक 10 वर्षीय बालक नीतीश कुमार बरकट्ठा डीह निवासी की अचानक तबीयत बिगड़ी और इलाज के लिए जाने के दौरान ही रास्ते में उसकी मौत हो गई. आज फिर बरकट्ठा पंचायत की एक गर्भवती महिला सहित नवजात शिशु की मौत हो गई. 


स्थानीय लोगों ने कहा, देवी-देवताओं की नाराजगी
स्थानीय लोगों का कहना है कि लोगों के द्वारा की गई गलतियों से देवी-देवताओं की नाराजगी है. जिसका परिणाम ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है. वहीं ग्रामीण यह भी बताते हैं कि बीते कुछ दिन पहले गांव के ही श्मशान घाट के स्थान को बदल कर, दूसरे कहीं खेत में शव का अंतिम संस्कार किया जा रहा था. जिसके बाद इस पंचायत क्षेत्र में अचानक मौत का तांडव शुरू हो गया. ग्रामीणों ने इस घटना से निजात के लिए पंचायत में ही हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों के बीच एक बैठक भी बुलाई और घटना से बचने के लिए विशेषज्ञों की पूछताछ के बाद पूजा पाठ और यज्ञ करने का भी निर्णय लिया गया है. 


अतिक्रमण मुक्त करने में लगे ग्रामीण
ग्रामीणों ने बताया कि श्मशान घाट के रास्ते में अतिक्रमण भी किया गया था. ग्रामीण एकजुट होकर अतिक्रमण मुक्त करने में लगे हुए हैं, ताकि गांव में ऐसी घटना पर विराम लग सके. एक पंचायत में 45 दिनों के अंदर लगभग 18 लोगों की मौत का सिलसिला जारी है, तो कहीं ना कहीं यह घटना किसी को भी हैरान कर रही है. पंचायत में घट रही ऐसी घटनाओं को लेकर जितनी मुंह, उतनी बातें कही जा रही है. हालांकि अब तक लगातार हो रही लोगों की मौत पर कारणों का स्पष्ट पता नहीं चल पाया है. बहरहाल, अब देखना यह होगा कि ग्रामीणों के द्वारा किए जा रहे धार्मिक और अतिक्रमण मुक्त पहल पर क्या मौत का सिलसिला थम पाता है या सिर्फ अंधविश्वास बनकर रह जाता है. 


इनपुट-यादवेंद्र मुन्नू


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