Hazaribagh Samachar: कुंती देवी चार वर्षों से अस्वस्थ्य थी और लकवाग्रस्त होने के कारण घूमने-चलने से असमर्थ थी.
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Hazaribagh: परंपराओं को तोड़कर एक नई परंपरा बनाने की बेटियों ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई. मां की मृत देह को सजाकर अंतिम यात्रा के लिए तैयार किया और मां को कंधे पर उठाकर श्मसान घाट तक पहुंचाया. हजारीबाग के टाटीझरिया प्रखंड के खम्भवा गांव में कुंती देवी (55) का निधन सोमवार को सुबह में हो गया
वहीं, दोपहर बाद कुंती देवी की आठ बेटियों ने अर्थी को कंधा देकर शमसान तक रोते-बिलखते पहुंचाई. सबसे बड़ी बात यह कि उसके अपने जाति-बिरादरी के लोग भी कोई शमसान घाट तक नहीं गए.
उसकी आठ बेटियां, पति और कुछ रिश्तेदार ही उसके अर्थी को घाट तक लेकर गए और अंतिम संस्कार किया. अर्थी उठाने वालों में से अजंती देवी ने कहा कि 'मेरे भाई नहीं है तो क्या हुआ, हम सभी बहने मिलकर मां का अंतिम संस्कार करेंगे.' अर्थी को कंधा देनेवालों में अजंती, रेखा देवी, बाबुन कुमारी, केतकी कुमारी, भोली कुमारी थी. साथ ही, ग्रामीण उदेश्वर सिंह, विनय सिंह, एमके पाठक, ब्रजकिशोर सिंह ने कुंती देवी के घर जाकर हाल-चाल लिया और शोक संवेदना व्यक्त किया.
जानकारी के अनुसार, जाति-बिरादरी के लोग अपने समाज से कुंती देवी के परिवार को किसी कारणवश बहिष्कृत कर चुके हैं. इस वजह से इस दुखद घटना में भी लोग उसके घर तक नहीं पहुंचे. यहां तक कि उसके भाई भी अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए. इसी कम्र में कुंती देवी चार वर्षों से अस्वस्थ्य थी और लकवाग्रस्त होने के कारण घूमने-चलने से असमर्थ थी.
(इनपुट-यादवेंद्र सिंह)