सरकार से किसी तरह की सहायता की आस नहीं रखने वाले इस शख्स के हौसले इतने बुलन्द हैं कि जिसे देखने के बाद यही कहा जा सकता है कि 'कौन कहता कि आसमां में सुराख़ नहीं हो सकता, जरुरत है एक पत्थर तबियत से उछालने की'.
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चतरा : झारखंड के चतरा जिले के टंडवा थाना क्षेत्र के बडगांव निवासी अजीमुद्दीन शहंशाही आज किसी परिचय के मोहताज नहीं. जन्म से दिव्यांग होने के बावजूद ये दूसरे दिव्यांगों के लिए प्रेरणा की एक अनोखी मिसाल कायम किया है. हकीमी काम से लोगों का इलाज कर अपने परिवार का भरण पोषण खुशी-खुशी कर ही रहे हैं, साथ ही अपनी आय में से कुछ पैसे बचाकर गरीब अनाथ बच्चों के लिए यतीम खाना भी चला रहे हैं.
सरकार से किसी तरह की सहायता की आस नहीं रखने वाले इस शख्स के हौसले इतने बुलन्द हैं कि जिसे देखने के बाद यही कहा जा सकता है कि 'कौन कहता कि आसमां में सुराख़ नहीं हो सकता, जरुरत है एक पत्थर तबियत से उछालने की'.
अजीमुद्दीन शहंशाही अपनी प्रारंभिक शिक्षा और बीए करने के बाद डीओएमएससी कि पढ़ाई मुस्लिम युनिवर्सिटी और हकीमी पढ़ाई यूपी के फरोखाबाद से करने के बाद जब अपने घर लौटे तो सबसे पहले इन्होने टॉर्च, छाता बनाने जैसी छोटी-मोटी काम कर अपनी जिन्दगी कि गाड़ी चलाना आरम्भ किया. इनके अन्दर कुछ कर गुजरने का जज्बा था. अपनी काबिलियत पर भरोसा करते हुए डॉक्टरी का काम शुरू किया और धीर-धीरे इनका यह काम परवान चढ़ता गया.
इनकी दवाई से रोगी ठीक होने लगे. लोगों को भी इनपर भरोसा हो गया. फिर क्या था अपने सात बच्चों और पत्नी के साथ जीवन की गाड़ी सरपट दौड़ने लगी. सरकार से सहायता के तौर पर मात्र 400 रुपये मिलते हैं, जिसका इन्हें काफी मलाल है. इनका कहना है कि महंगाई के जमाने में कोई भी व्यक्ति नौ-नौ लोगों के परिवार का भरण-पोषण नहीं कर सकता है. ऐसे में 400 से क्या होने वाला है.
अजीमुद्दीन देश के सभी दिव्यांगों को संदेश देते हुए कहते हैं कि नीयत साफ़ रखें, हिम्मत और मेहनत के बल पर एक अच्छे मुकाम हासिल कर दुनिया के सामने एक मिसाल कायम करें. साथ ही वह सरकार से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं करने की सलाह देते हैं.
दिव्यांगों की अनदेखी के मसले पर केंद्र और राज्य सरकार से नाराज अजीमुद्दीन शहंशाही के इरादे इतने बुलंद हैं कि इस शख्स ने अपनी आय में से कुछ पैसे बचाकर गरीब और अनाथ बच्चों के लिए एक यतीमखाना नि:शुल्क चलते हैं. यतीमखाने के लिए समाज से थोड़ी-बहुत मदद मिल जाती है. अजीमुद्दीन का कहना है कि ये तो सिर्फ हाथ-पैर से दिव्यांग हैं, लेकिन सरकार तो मानसिक रूप से दिव्यांग है, जो हमारा दुःख-दर्द नहीं समझती है.
स्थानीय लोग अजीमुद्दीन शहंशाही के काम को देखकर लोग उनकी काफी सराहना करते हैं. उनकी परिस्थिति को देखते हुए स्थानीय लोग सरकार से सहायता का उम्मीद करते हैं.