Corona: छात्रों के भविष्य पर मंडराया संकट! शिक्षा विभाग ने साधी चुप्पी
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Corona: छात्रों के भविष्य पर मंडराया संकट! शिक्षा विभाग ने साधी चुप्पी

Bihar News: सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले माता-पिता आर्थिक रूप से इतने मजबूत नहीं होते कि वो मोबाइल या लैपटॉप पर बच्चों को पढ़ा सकें. क्योंकि मोबाइल पर रोजाना पढ़ाई पर एक से डेढ़ जीबी का खर्च आता है

 

छात्रों के भविष्य पर मंडराया संकट!. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Patna: निजी स्कूलों के बच्चों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हो गई है. सूबे के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों के लिए ये व्यवस्था कब शुरू होगी इस पर शिक्षा विभाग में कोई बोलने के लिए तैयार नहीं है. लिहाजा एक बार फिर ऐसे बच्चों का सिलेबस पूरा कराना टेढ़ी खीर होगी. दूसरी ओर एक सवाल ये खड़ा हो रहा है कि अगर सरकारी स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू भी हुई तो क्या इसके बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई का खर्च उठा पाने में सक्षम हैं? क्योंकि ऐसा माना जाता है कि, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे आर्थिक रूप से मजबूत नहीं होते हैं और दूसरा तथ्य ये भी है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का परिवार भी बड़ा होता है.

पटना के अलग-अलग सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावक भी ये मानते हैं कि ऑनलाइन क्लास संभव नहीं है. क्योंकि ऐसी क्लास में रोजाना डेढ़ से 2 GB डेटा खर्च होता है और रोजाना इतना खर्च उठाना मुश्किल है. सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली एक छात्रा ने कहा कि 'पिछली बार किसी तरह से मैंने पढ़ाई पूरी की थी. हमारे लिए ये मुमकिन नहीं है कि रोजाना मोबाइल पर पढ़ाई करें. दूसरी ओर हमारे पास एक ही बड़ा वाला मोबाइल फोन है.'

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वहीं, अभिभावक का कहना है कि 'स्मार्ट फोन या लैपटॉप से पढ़ाई तो महंगी है लेकिन क्या करें हमारे पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है.' दरअसल, पिछले साल शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए 'मेरा मोबाइल मेरा विद्यालय' के नाम से एक ऐप की शुरुआत की. ये व्यवस्था क्लास 6 से 12 तक के छात्रों के लिए थी. दूरदर्शन पर भी क्लास 9 और 10 तक के बच्चों के लिए डीडी बिहार पर पढ़ाई शुरू की गई. लेकिन बावजूद इसके सिलेबस पूरा नहीं किया जा सका.

सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले माता-पिता आर्थिक रूप से इतने मजबूत नहीं होते कि वो मोबाइल या लैपटॉप पर बच्चों को पढ़ा सकें. क्योंकि मोबाइल पर रोजाना पढ़ाई पर एक से डेढ़ जीबी का खर्च आता है और अगर परिवार में दो या इससे अधिक बच्चे हैं तो रोजाना पांच जीबी का खर्च. यानि एक महीने में हजार से पंद्रह सौ का खर्च. 

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हालांकि, ये रकम ज्यादा बड़ी नहीं है लेकिन उन लाखों परिवारों का क्या जहां महीने भर के खर्च के लिए पांच हजार की कमाई भी मुश्किल है. इन बातों को सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल भी स्वीकार करते हैं. बाकीपुर गर्ल्स हाईस्कूल के प्रिंसिपल अरुण झा का कहना है कि 'ऑनलाइन पढ़ाई महंगी भी है और ये व्यहवारिक रूप से संभव भी नहीं है. साथ ही मिलर हाई स्कूल के प्रिंसिपल चंद्रशेखर आजाद चौरसियाका कहना है कि 'अधिकांश बच्चों के माता-पिता रिक्शा, ठेला, ऑटो और फल बेचकर खर्च चलाते हैं लिहाजा इनके लिए मोबाइल या लैपटॉप पर पढ़ाना तो बेहद ही मुश्किल है. 

 
एक नजर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या पर: 

  • क्लास नौ में छात्रों की संख्या- 6,38873                                                                 छात्राओं की संख्या- 6,68835   
  • क्लास दस में छात्रों की संख्या- 6,30513                                                               छात्राओं की संख्या- 6,64406   
  • क्लास 11 में छात्रों की संख्या- 2,89753                                                                छात्राओं की संख्या- 2,89748   
  • क्लास 12 में छात्रों की संख्या- 2,44570                                                                छात्राओं की संख्या-  2,35044   
  • यानि क्लास नौ से लेकर बारह तक छात्रों की संख्या- 1803709                               छात्राओं की संख्या-  1858233   

यानि सिर्फ क्लास नौ से लेकर बारह तक में ही पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 36 लाख से अधिक है. कोरोना (Corona) के बढ़ते संकट के बीच अब सवाल लाखों बच्चों के भविष्य के लिए उठने लगे हैं. महंगी ऑनलाइन पढ़ाई और ऊपर से सिलेबस पूरा करने का डर एक बड़ा संकट सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए पैदा हो गया है. स्मार्ट फोन या लैपटॉप पर पढ़ाई का विचार सोचने में तो काफी अच्छा लगता है. लेकिन उन परिवारों के बच्चों का क्या होगा जिन्हें खाना भी बेहद मुश्किल से मिलता है. सवाल ऐसे भी परिवारों के लिए उठता है जहां पढ़ने वाले बच्चे चार और स्मार्ट फोन सिर्फ एक.