बिहार में अनुसूचित जातियों में कुपोषण (नाटापन) की दर 55.8 प्रतिशत है. राज्य के दो जिलों को छोड़कर, 36 जिलों में स्टंटिंग का औसत 40 प्रतिशत से ज्यादा है.
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पटना : राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार, बिहार में हर दूसरा बच्चा नाटापन (उम्र के अनुपात में कम ऊंचाई) और हर पांचवा बच्चार गंभीर रूप से कुपोषित (ऊंचाई के अनुपात में कम वजन) है. 48.3 फीसदी बच्चें नाटापन के शिकार हैं वहीं, 20.8 प्रतिशत बच्चें वेस्टेरड (जिनका कद और वजन दोनों उम्र के अनुरूप विकसित नहीं) हैं. अनुसूचित जाति के बच्चों में स्टंटिंग दर अन्य समुदायों की तुलना में काफी अधिक है.
बिहार में अनुसूचित जातियों में कुपोषण (नाटापन) की दर 55.8 प्रतिशत है. राज्य के दो जिलों को छोड़कर, 36 जिलों में स्टंटिंग का औसत 40 प्रतिशत से ज्यादा है. उक्त बातें यूनिसेफ बिहार के प्रमुख असदुर रहमान ने आज परिचर्चा के दौरान कही.
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक रूप से लड़कियां, लड़कों की तुलना में ज्यादा मजबूत होती है पर अगर अगर हम 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर को देखें तो पूरी दुनिया में लड़कों की मृत्युदर लड़कियों से ज्यादा होती है. लेकिन भारत में और बिहार में लड़कियों की मृत्युदर लड़कों से ज्यादा है. उन्होंने कहा कि बच्चों के बेहतरी के लिए मीडिया एक महत्वपूर्ण हितधारक है, यूनिसेफ राज्य और अन्य प्रमुख हितधारकों के साथ बच्चों के अधिकारों, खासकर उन समाज के वंचित वर्गों के बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने का काम करता है.
समेकित बाल विकास समाज कल्याण विभाग की सहायक निदेशक श्वेता सहाय ने कहा कि विभाग के द्वारा स्तनपान सप्ताह के स्थान पर पूरे माह को स्तनपान माह के रूप में मनाया जा रहा है. विभाग के द्वारा स्तनपान, पूरक स्तनपान और बच्चों के पोषण को लेकर समाज में जागरूकता को बढ़ाने के लिए निदेशालय सभी आंगनबाड़ियों में हर महीने की सात तारीख को गोदभराई दिवस और 19 तारीख को अन्नप्राशन दिवस मनाया जाता है,
आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता, आशा द्वारा घर-घर भ्रमण कर मां और शिशु के उचित पोषण के बारे में बताया जाता है. बिहार से कुपोषण को समाप्त करने के लिए हमें किसी खास दिन, सप्ताह या महीना नहीं बल्कि हर दिन को कुपोषण को दूर करने के प्रयास की जरुरत है. आंगनबाड़ी से रिपोर्टिंग और काउन्सलिंग को बेहतर करने के लिए 17 जिलों के सभी आंगनवाड़ी केन्द्रों को एनड्रॉयड टेबलेट दिए गए हैं. इनमें 13 जिले, नीति आयोग के द्वारा चयनित है.
यूनिसेफ की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने कहा इस साल संयुक्त बाल अधिकार समझौता की 30वीं सालगिरह के रूप में मनाई जा रही है. हर बच्चे को पोषण और स्वास्थ्य का अधिकार है. माताओं को स्तनपान करवाने के लिए एक सकारात्मक माहौल की जरुरत होती है. खास कर उन महिलाओं के लिए जो पहली बार मां बनी है. इसके साथ ही कामकाजी महिलाओं के लिए अगर कार्यस्थलों पर छोटे बच्चों के देखभाल की व्यवस्था हो तो माताएं बिना किसी समस्या के स्तनपान करवा सकती हैं. मीडिया की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया पोषण से जुड़े उन मुद्दों और पहलूओं को उठा सकती है, जिनपर कम चर्चा हो रही है. इसके माध्यम से मीडिया नीति निर्माताओं का ध्यान महत्वपूर्ण मुद्दों की ओर ध्यान आकृष्ट कर सकते हैं.
पोषण विशेषज्ञ रवि नारायण पाढ़ी ने पोषण मिशन के बारे में बताते हुए कहा कि बिहार के 38 जिलों को पोषण के तहत अभियान में चुना गया है. जन्म के 6 माह तक केवल मां का दूध और 6 माह के बाद मां के दूध के साथ उपरी आहार बच्चों के लिए आवश्यक होती है. 6 माह के बाद सिर्फ मां का दूध बच्चों के पोषण के लिए ही पर्याप्त नहीं होता. इनके समुचित विकास के लिए उपरी आहार जरूरी होता है. एनएचएफएस-4 के अनुसार, बिहार में केवल 7.5 प्रतिशत बच्चों को ही सही और पर्याप्त मात्र में ऊपरी आहार मिल पाता है.
स्तनपान के अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के बारे में बताते हुए यूनिसेफ की पोषण विशेषज्ञ डॉ शिवानी दर ने कहा कि एनएफएचएस-4 (2015-16) के अनुसार, बिहार में 31% सीज़ेरियन सेक्शन निजी अस्पतालों में होता है और वहीं सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में 2.6% डिलीवरी सीज़ेरियन सेक्शन से होता.
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