पटना विश्वविद्यालय और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के नाम से दो यूनिवर्सिटी हैं. लेकिन यहां के कॉलेजों में शिक्षकों की कमी पिछले कई दशकों से हैं.
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पटना: राज्य के विश्वविद्यालयों में अस्टिटेंट प्रोफेसर (Assitant Professor) के पदों पर बहाली के लिए ऑनलाइन आवेदन लिए जा रहे हैं. अस्टिटेंट प्रोफेसर के 4 हजार 638 पदों नियुक्ति होनी है. लेकिन सच्चाई ये है कि अगर 4638 सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो भी जाएं उसके बावजूद कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की कमी बरकरार रहेगी. क्योंकि जिस तेजी से प्रोफेसर रिटायर हो रहे हैं, उसके हिसाब से राज्य में अरसे से विश्वविद्यालयों में टीचिंग स्टाफों की भर्ती ही नहीं हुई. बिहार उन राज्यों की गिनती में शामिल हो गया है जहां के कॉलेजों में प्रोफेसर न होने की वजह से क्लास नहीं हो रही है. छात्र कॉलेज जरूर पहुंच रहे हैं. लेकिन सिर्फ अटेंडेंस की औपचारिकता पूरा करने के लिए. ये हालात पिछले दो तीन सालों से नहीं बल्कि दो दशकों से हैं.
बिहार सरकार ये दावा जरूर करे कि राज्य में शिक्षा बेहतर हुई है. लेकिन सच्चाई ये है कि यहां के विश्वविद्यालयों के लाखों युवा बिना क्लास किए ही डिग्री लेकर घूम रहे हैं. हालांकि, बिहार में अब विश्वविद्यालय सेवा आयोग के जरिए बहाली के लिए 23 सितंबर से ऑनलाइन आवेदन लिए जा रहे हैं.
दो बार ऑनलाइन आवेदन की तारीख भी बढ़ाई गई है. पटना विश्वविद्यालय और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के नाम से दो यूनिवर्सिटी हैं. लेकिन यहां के कॉलेजों में शिक्षकों की कमी पिछले कई दशकों से हैं. कॉलेज ऑफ कॉमर्स बिहार भर में कॉमर्स की पढ़ाई के लिए अव्वल माना जाता है. लेकिन यहां भी शिक्षकों की कमी है.
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प्रिंसिपल तपन कुमार सांडिल्य के मुताबिक, कुछ नए शिक्षक मिले हैं बावजूद इसके 30 फीसदी पद खाली हैं. तपन कुमार सांडिल्य के मुताबिक, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के जरिए जो बहाली हो रही है उससे दशकों से जारी समस्या खत्म हो जाएगी. तपन सांडिल्य के मुताबिक, उनके यहां टीचिंग स्टाफ के 170 पद स्वीकृत हैं और 140 व्याख्याताओं और सहायक प्राध्यापकों की संख्या हैं. हालांकि, अब बिहार विवि सेवा आयोग के माध्यम से बहाली हो रही है. उम्मीद है जल्द शिक्षक मिल जाएंगे.
बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग के माध्यम से बड़े स्तर पर बहाली जरूर हो रही है. लेकिन नियुक्ति की प्रक्रिया कब पूरी होगी इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं. क्योंकि अभी तो ऑनलाइन आवेदन ही लिए जा रहे हैं. दो बार इसकी तारीख बढ़ाई जा चुकी है. पटना विश्वविद्यालय बिहार का सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है और ये भी टीचिंग स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहा है. सोचें,बिहार की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में अगर भारी शिक्षकों की कमी है तो दूसरी यूनिवर्सिटी में किस तरह के हालात होंगे.
यूनिवर्सिटी के डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर एन के झा के मुताबिक, कई बार गंभीरता से सरकार से बातचीत की गई. लेकिन सरकार गंभीर है ऐसा लगता नहीं है. एन के झा कहते हैं कि पहले पटना विश्वविद्यालय में टीचिंग स्टाफ के लिए 920 पद स्वीकृत थे. लेकिन बाद में सरकार ने कटौती कर इसकी संख्या 750 कर दी. फिलहाल 320 टीचिंग स्टाफ के जरिए 21 हजार छात्रों की पढ़ाई हो रही है.
दरअसल, बिहार में पहले अस्टिटेंट प्रोफेसर की भर्ती बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) के माध्यम से होती थी. लेकिन धीमी गति से भर्ती प्रक्रिया को लेकर अभ्यर्थियों ने कई बार प्रदर्शन किए हैं. जानकारी के मुताबिक,1990 के दशक में बड़े स्तर पर टीचिंग स्टाफ की भर्ती हुई.फिर सात साल बाद 2003 में एक बार फिर विश्वविद्यालयों में टीचिंग स्टाफ के पद भरे गए.
2010 के बाद भी टीचिंग स्टाफ के पद भरे गए लेकिन उसके बाद लंबे अरसे तक बिहार के सरकारी विश्वविद्यालयों में पद नहीं भरे गए. साल 2020 खत्म होने के हो लेकिन प्रोफेसर की भर्ती प्रक्रिया खत्म होने का इंतजार कब खत्म होगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
आइए जानते हैं कि बिहार के कौन-कौन सरकारी विश्वविद्यालयों में अस्टिटेंट प्रोफेसर के कितने पद खाली हैं-
विश्वविद्यालयों के नाम खाली पड़े पद
भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर 603
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा 856
जयप्रकाश विश्वविद्यालय,छपरा 319
भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय 377
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय,पटना 462
वीरकुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा 428
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय,भागलपुर 287
पूर्णिया विश्वविद्यालय,पूर्णिया 213
पटना विश्वविद्यालय, पटना 330
मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर 245
मगध विश्वविद्यालय, गया 381
यानि बिहार से लाखों छात्र और छात्रा पिछले कई दशक में सिर्फ डिग्री लेकर यूनिवर्सिटी से पास हो गए.
बिहार के विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक माहौल पर अगर ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि ये सिर्फ डिग्री देने वाले केवल संस्थान रह गए हैं. सरकार ने भी छात्रों को उनके हाल पर छोड़ दिया. सरकार के अलग-अलग आयोग जरूर समय-समय पर बहाली करते रहे हैं. लेकिन हकीकत ये है कि बहाली की रफ्तार धीमी रही जबकि रिटायरमेंट की रफ्तार उससे कहीं ज्यादा.