औरतों में साड़ी पहनने का प्रचलन कब शुरू हुआ? जानें सांस्कृतिक महत्व

PUSHPENDER KUMAR
Nov 24, 2024

वेदों में उल्लेख

यजुर्वेद और अन्य ग्रंथों में 'साड़ी' शब्द और इसके प्रारंभिक रूप का उल्लेख मिलता है.

शुरुआत के स्वरूप

प्रारंभिक साड़ी दो भागों में होती थी. एंटारिया (निचला वस्त्र) और उत्तरिया (ऊपरी वस्त्र).

साड़ी का विकास

दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में एंटारिया और उत्तरिया ने एकल परिधान का रूप लिया, जिसे साड़ी कहा गया.

क्षेत्रीय विविधता

महाराष्ट्र, बंगाल और दक्षिण भारत में साड़ी पहनने के विभिन्न तरीकों का विकास हुआ.

समाज में महत्व

साड़ी को अमीर और गरीब दोनों ही पहनते थे. यह शादी और त्योहारों जैसे खास अवसरों का परिधान बन गया.

महाराष्ट्र की नौवारी साड़ी

महाराष्ट्र में नौ गज लंबी साड़ी का प्रचलन हुआ, जो पारंपरिक और अनूठी है.

साड़ी का प्रतीकात्मक महत्व

साड़ी को भारतीय संस्कृति में महिलाओं की गरिमा और सुंदरता का प्रतीक माना जाता है.

आधुनिकता के साथ साड़ी

बदलते समय में साड़ी को पहनने के आधुनिक और सरल तरीके विकसित हुए हैं.

भारतीय पहचान का हिस्सा

आज भी साड़ी वैश्विक मंच पर भारतीय परिधान की पहचान है.

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