Women's Day Poem: मैं बहुत रोती हूं जब मेले में गुड़िया नजर आती है...
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Women's Day Poem: मैं बहुत रोती हूं जब मेले में गुड़िया नजर आती है...

International Women's Day: महिला दिवस को लेकर तमाम तरह के कार्यक्रम देश के अलग-अलग हिस्सों में आयोजित किए जा रहे हैं. लेकिन आज भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराधिक वारदात थमने का नाम नहीं ले रहे हैं.

मैं बहुत रोती हूं जब मेले में गुड़िया नजर आती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Patna: Women's Day Poem आज पूरा देश अतंरराष्ट्रीय महिला दिवस (Internaional Women's Days) मना रहा है. महिला दिवस को लेकर तमाम तरह के कार्यक्रम देश के अलग-अलग हिस्सों में आयोजित किए जा रहे हैं. लेकिन आज भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराधिक वारदात थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. ऐसे में ज़ी न्यूज के पत्रकार और कवि मुजम्मिल अय्यूब ने महिलाओं की पीड़ा शब्दों में बयां की है.

आसमां में भरी हमने बुलंद परवाज़  

ज़मीं पर दब रही हमारी ही आवाज़ 

सरहदों पर तो लड़ा दी अपनी जान  

खोती जा रही मगर हमारी पहचान  

हमारी निगेहबानी में नहीं की दुश्मनों ने हिमाकत   

लेकिन जाने कहां है मेरी ही हिफाज़त 

हमने तो करीं ज़ख्मों की तुरपाईंयां 

सरेराह नोची गईं हैं मगर हमारी चुन्नियां  

पड़ी जो ज़रूरत तो हमें ही बुलाया गया 

ज़ुल्म की आग में हमीं को जलाया गया 

हमने ही बुने हैं तुम्हारी हसरतों के ख्वाब  

मेरे ऊपर ही फेंका गया है तेज़ाब 

बुलंदियों पर हमने फ़हराया है तिरंगा 

हमें ही दफ्नाया गया है ज़िन्दा  

डीएम, कलेक्टर तो बनाया गया मुझे  

स्कूल की राह में बहुत सताया गया मुझे 

दुनिया को हमसे है उम्मीद ए वफा 

दुनिया ही करती है मेरे सपनों को हवा 

हर रिश्ते को मेरे तोड़ा गया  

मेरा ही जिस्म फिर उधेड़ा गया 

इन ज़ख्मों से नहीं उभर सकीं हूं 

रिश्तों से बहुत ही डरी हुईं हूं  

दर्द तो फिर भी आंखों से निकल जाता है 

पुराने ज़ख्मों का निशां कहां जाता है 

भरोसा अब किसी पर आता नहीं है  

ये दर्द ही ऐसा है कि जाता नहीं है 

टूट जाता है हौसला जब ऐसी कोई खबर आती है 

मैं बहुत रोती हूं जब मेले में गुड़िया नज़र आती है