झारखंड में बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए महिलाएं बना रही हैं 'किचन गार्डन'
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झारखंड में बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए महिलाएं बना रही हैं 'किचन गार्डन'

प्रखंड कार्यालयों, आंगनवाड़ी केंद्रों, अस्पतालों और स्कूलों में किचन गार्डन की शुरुआत करने की योजना बनाई है.

महिलाएं किचन गार्डन बनाकर कुपोषण को दूर कर रही है. (प्रतीकात्मक फोटो)

चाईबासाः झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले की ग्रामीण महिलाएं अब न खुद और न अपने बच्चों को केवल माड़-भात खिला रही हैं, बल्कि अब उनके खाने की थाली में एक-दो सब्जियां भी शामिल हो रही हैं. कुपोषित बच्चों का इलाज कराने आ रहीं महिलाएं अस्पताल के किचन गार्डन में भी साग-सब्जियां उगा रही हैं और उसे बच्चों के खाने में शामिल कर रही हैं.

पश्चिम सिंहभूम के एक अधिकारी ने बताया कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम सिंहभूम जिले में करीब दो लाख से ज्यादा ग्रामीण बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद जिला प्रशासन अपने जिले पर लगे इस कलंक को मिटाने के लिए तरह-तरह के प्रयास कर रहा है. इसी के तहत प्रखंड कार्यालयों, आंगनवाड़ी केंद्रों, अस्पतालों और स्कूलों में किचन गार्डन की शुरुआत करने की योजना बनाई है.

चाईबासा के उपविकास आयुक्त (डीडीसी) आदित्य रंजन ने बताया कि फिलहाल चाईबासा सदर अस्पताल, सदर प्रखंड और एक स्थानीय स्कूल में किचन गार्डनिंग या पोषण वाटिका की शुरुआत की गई है, जो कई स्थानों पर अभी प्रारंभिक चरण में है. इसके लिए करीब 50 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है.

उन्होंने बताया कि सदर अस्ताल स्थित कुपोषण उपचार केंद्र में कुपोषित बच्चे इलाज के लिए अपने परिवार के साथ आते थे, इसलिए यहां से किचन गार्डनिंग की शुरुआत की गई. सदर प्रखंड परिसर में भी इसकी शुरुआत की गई है.

चाईबासा सदर प्रखंड की प्रखंड विकास पदाधिकारी पारुल सिंह ने आईएएनएस को बताया कि प्रखंड परिसर में किचन गार्डन से उपजीं सब्जियां दाल-भात केंद्रों में पकाई जा रही हैं. उन्होंने कहा कि जल्द ही यहां के आंगनवाड़ी केंद्रों में भी इसे शुरू किया जा सकेगा.

उन्होंने कहा, "प्रत्येक सब्जियों के अपने-अपने गुण होते हैं. किसी में प्रोटीन तो किसी में विटामिन, काबरेहाइड्रेट, मिनरल्स, ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं. किचन गार्डन से अलग-अलग सब्जियां उपलब्ध कराई जाती हैं और उसे ही दाल-भात केंद्रों में भेजा जाता है."

सदर अस्पताल स्थित किचन गार्डन में भी कुपोषित बच्चों की मां स्वयं अपने हाथों से साग-सब्जियां उगा रही हैं और यही साग-सब्जी कुपोषित बच्चों और अस्पताल में भर्ती मरीजों को खिलाई जा रही है.

कुपोषण उपचार केंद्र के प्रमुख डॉ़ जगन्नाथ हेम्ब्रम ने खुद करीब 25 महिलाओं को विशेष प्रशिक्षण दिया है. उन्होंने बताया कि विभिन्न कारणों से कुपोषित बच्चे के साथ कुपोषण उपचार केंद्र में इलाजरत बच्चों की माताएं भी आकर रहती हैं. अपने बच्चों की देखभाल करने के साथ-साथ उनके पास काफी खाली समय भी रहता है.

उन्होंने कहा कि उप विकास आयुक्त आदित्य रंजन ने कुपोषण की समस्या को जिले से खत्म करने की मुहिम के तहत सदर अस्पताल में उपलब्ध खाली भूमि पर पोषक साग-सब्जी उगाने का निर्णय लिया. शुरुआत में उप विकास आयुक्त के निर्देश पर प्रखंड विकास पदाधिकारी ने यहां आई हुईं महिलाओं के साथ विचार-विमर्श किया. कई माताओं ने स्वेच्छा से किचन गार्डन में सब्जियां उगाने की बात सहर्ष कही. इसके बाद यहां किचन गार्डन शुरू हो गया.

उन्होंने बताया कि यहां कुपोषित बच्चे करीब 15 से 20 दिन इलाजरत रहते हैं और औसतन 25 से 30 बच्चे रहते हैं.

उप विकास आयुक्त आदित्य रंजन ने कहा, "चाईबासा जिला पिछड़ा हुआ है. हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है कि इस जिले की कुपोषण जिलों में गिनती की जा रही है. जिले के सभी मडल आंगनवाड़ी केंद्रों में किचन गार्डन बनाने का निर्णय लिया गया है."

उन्होंने आशा जताई कि यहां ऑर्गेनिक तरीके से साग-सब्जियां उगाकर माताएं बच्चों को स्वस्थ बनाने में अहम भूमिका तो निभाएंगी ही, अपने घर लौटकर भी वह ऐसा करेंगी.

कुपोषण केंद्र में अपने आठ वर्षीय पुत्र को इलाज कराने आईं मझगांव क्षेत्र की उर्मिला ने कहा कि किचन गार्डन को अब महिलाएं गांव में बढ़ाने लगी हैं. उन्होंने कहा कि अब गांव के लोग छोटे से भी स्थान में साग-सब्जी उपजा रहे हैं. अस्पताल में यह अच्छी पहल है, इससे महिलाएं सीख रही हैं.

बहरहाल, किचन गार्डन से कुषोषण को दूर करने की जिला प्रशासन की अनोखी पहल की सराहना की जा रही है. अब देखना होगा कि यह योजना कहीं अन्य योजनाओं की तरह बीच में ही दम न तोड़ दे.