बिहार : चमकी बुखार पीड़ितों के बीच किसी मसीहा से कम नहीं थी इन युवाओं की टोली
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बिहार : चमकी बुखार पीड़ितों के बीच किसी मसीहा से कम नहीं थी इन युवाओं की टोली

पटना से मुजफ्फरपुर के लिए निकलते समय इनके पास महज 500 या 1000 रुपए थे. इसके अलावा प्रभावितों के बीच बांटने के लिए इनके पास 3 कार्टन राहत सामग्री थे. 

चमकी बुखार प्रभावितों के बीच राहत सामग्री बांटती युवाओं की टोली.

मुजफ्फरपुर : चमकी बुखार को लेकर इन दिनों बिहार सुर्खियों में रहा. इस बीमारी ने सैकड़ों बच्चों की जिंदगी छीन ली. शुरुआती दौर में सरकार पर भी उदासीन रवैया अपनाने का आरोप लगा. 100 से अधित बच्चों की मौत के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री एसकेएमसीएच पहुंचे. उन्हें वहां पत्रकारों के तीखे सवाल और लोगों का आक्रोश झेलना पड़ा. यब सब देख पटना में रहकर पढ़ाई कर रहे कुछ युवाओं की टोली ने कुछ करने की ठानी. ये मसीहा बनकर पीड़ितों के बीच पहुंचे.

युवाओं की टोली ने पीड़ित बच्चों के बीच राहत सामग्री पहुंचाने की योजना बनायी, जिसमें ग्लूकोज, ओआरएस और थर्मामीटर जैसे सामग्री शामिल थे. इसके लिए पैसों की आवश्यक्ता हुई तो सोशल मीडिया में मुहीम छेड़ी गई. लोगों से आर्थिक मदद की अपील की गई. लोगों ने भी मुजफ्फरपुर में इंसेफेलाइटिस से जूझ रहे बच्चों के लिए पैसे दिए.

पटना विश्वविद्यालय के तीन छात्र सत्यम कुमार झा, ऋषिकेश शर्मा और सोमू आनंद की टोली ने शुरुआत में बिना किसी आर्थिक सहयोग की अपील किए बच्चों की मदद की निश्चय के साथ निकल मुजफ्फरपुर के लिए पड़े. सोमू आनंद ने फेसबुक पोस्ट के जरिए मेडिकल क्षेत्र के लोगों से आग्रह किया था कि वे जरूरी सामग्री डोनेट कर सकते हैं. सत्यम और ऋषिकेश का कहना है कि हमने शुरुआत तो कर दी थी, लेकिन ये नहीं पता था कि हम इसे कितना प्रभावी बना पाएंगे.

पटना से मुजफ्फरपुर के लिए निकलते समय इनके पास महज 500 या 1000 रुपए थे. इसके अलावा प्रभावितों के बीच बांटने के लिए इनके पास 3 कार्टन राहत सामग्री थे. बुजुर्गों के लिए काम करने वाली संस्था हेलपेज इंडिया ने अपने दफ्तर में ठहरने की इनकी व्यवस्था कर दी. रहने का जुगार तो हो गया, लेकिन इनके पास जो पैसे थे उससे दो दिनों से अधिक तक काम करना संभव नहीं था. सोशल मीडिया के जरिए लोग इनके देश के कोने-कोने से लोग संपर्क में थे. मदद के लिए अकाउंट नंबर मांगे. लोगों ने अपने-अपने फेसबुक पर उसे शेयर किया. नतीजा यह रहा कि महज 24 घंटे के अंदर इनके पास 1.75 लाख रुपए आ चुके थे. स्थानीय लोग भी इनके साथ जुड़ते गए.

पांच टीम अलग-अलग जगहों पर काम करने लगी. इन्होंने 350 से भी ज़्यादा बस्तियों में ग्लूकोज़, ओआरएस, बिस्किट और बुखार जांचने के लिए थर्मामीटर बांटे. एसकेएमसीएच में पीने के साप पानी तक का व्यवस्था नहीं था. वहां तीन वाटर प्यूरीफायर लगाए गए. मरीजों के परिजनों के लिए भोजन की भी व्यवस्था की गई. 400 से अधिक लोगों को रोजाना खाना परोसा जाता था. अस्पताल परिसर में दो दिनों तक सफाई अभियान चलाया गया.

सत्यम बताते हैं कि जिस तरह से मुज़फ्फरपुर में मौत के आंकड़े लगातार बढ़ रहे थे, उसने हमें झकझोर दिया. हम चीज़ों को सरकार पर नहीं छोड़ना चाहते थे. फेसबुक पोस्ट के माध्यम से हमने लोगों से अपील की और मौके पर पहुंचकर काम करना शुरू कर दिया. गांवों में जागरूकता अभियान चलाने की हमारी कोशिश रही.

टीम के एक और सदस्य ऋषिकेश का कहना है कि पूरा सफर आसान नहीं था, लेकिन लोग मदद के लिए आगे आए. हमने गांवों में जा जाकर लोगों को जागरूक किया. साथ ही उन्हें ग्लूकोज़, ओआरएस और हर तीन चार घरों पर एक थर्मामीटर भी दिया. सोमू आनंद बताते हैं कि हम सोशल मीडिया पर व्यवस्था को कोसकर कुछ भी हासिल नहीं कर सकते थे. अपने भीतर के उस आक्रोश को हमने जज्बे में परिवर्तित किया, जो कि वक्त की मांग थी. हम कुछ भी नया नहीं कर रहे हैं. कॉलेज में छुट्टी होने के कारण हमारे पास खासा वक्त था तो एक जिम्मेदार नागरिक होने के चलते जो कर्तव्य बनता था समाज के लिए, बस उसका निर्वहन किया.