महागठबंधन से खारिज किए जाने के बाद कांग्रेस ने पारिवारिक गठबंधन को अपनायाः बीजेपी
बीजेपी ने कहा कि प्रियंका की नियुक्ति कांग्रेस की राहुल गांधी की विफलता की स्वीकारोक्ति है.
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नई दिल्लीः प्रियंका गांधी वाड्रा के कांग्रेस में औपचारिक प्रवेश को ‘पारिवारिक गठबंधन’ करार देते हुए बीजेपी ने बुधवार को कहा कि यह कांग्रेस द्वारा इस बात की स्वीकारोक्ति है कि राहुल गांधी नेतृत्व प्रदान करने में ‘‘विफल’’ रहे हैं . बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि प्रस्तावित महागठबंधन में विभिन्न दलों से ‘खारिज’ किये जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने ‘पारिवारिक गठबंधन’ को अपनाया है.
उन्होंने कहा, ‘‘ कांग्रेस ने वास्तव में सार्वजनिक तौर पर घोषणा कर दी है कि राहुल गांधी विफल हो गए हैं. यह महागठबंधन के दलों द्वारा खारिज किए जाने के कारण हुआ है और ऐसे में उन्होंने पारिवारिक गठबंधन को चुना . ’’ बीजेपी प्रवक्ता की यह प्रतिक्रिया ऐसे समय आई है जब बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी को पार्टी महासचिव बनाते हुए उत्तर प्रदेश-पूर्व की जिम्मेदारी सौंपी गई.
बहरहाल, विपक्षी पार्टी पर चुटकी लेते हुए पात्रा ने कहा कि यह स्वाभाविक है कि कांग्रेस पार्टी को परिवार के ही किसी सदस्य को ताज देना था . उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आसन्न लोकसभा चुनाव को ‘नामदार’ और ‘कामदार’ के बीच की लड़ाई बता चुके हैं .
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उन्होंने कहा कि कांग्रेस में कौन अगला नेता होगा, यह पहले से ही तय होता है. पात्रा ने इस संदर्भ में पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी का उदाहरण दिया . पात्रा ने कहा कि सभी नियुक्तियां एक परिवार से होती हैं. कांग्रेस और बीजेपी में यही अंतर है.
विश्लेषकों के मुताबिक सपा-बसपा गठबंधन के बाद कांग्रेस की रणनीति के लिहाज से इसको बड़ा कदम बताया जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस ने 'एकला चलो रे' की रणनीति के तहत आगामी लोकसभा चुनावों में सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐसे में पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के उतरने के गहरे सियासी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं. गठबंधन से बाहर रहने के बाद कांग्रेस लगातार कह भी रही है कि वह इस बार 2009 के लोकसभा चुनावों की तर्ज पर यूपी में चौंकाने वाले नतीजे देगी. 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को यूपी में 21 लोकसभा सीटें मिली थीं.
गौरतलब है कि संगठन की दृष्टि से कांग्रेस की यूपी में बेहद कमजोर स्थिति है. 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को तकरीबन सात प्रतिशत वोट मिले थे. लिहाजा प्रियंका को मैदान में उतारने के कदम को पार्टी संगठन को मजबूत करने के क्रम में देखा जा रहा है. हालांकि इससे यह भी साफ जाहिर होता है कि इस बार यूपी में मुकाबला सीधेतौर पर बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन के बीच नहीं होगा. कांग्रेस के इस कदम के बाद माना जा रहा है कि लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के इस सबसे महत्वपूर्ण राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है.
(इनपुट भाषा से)