Israel attack Iran: ये विश्लेषण ईरान से लौटे कश्मीरी छात्रों से जुड़ा है. इजरायल से युद्ध के बीच ईरान में हालात कैसे हैं. ये आप भी देख रहे हैं. वहां लगातार बम बरस रहे हैं, मिसाइलें गिर रही हैं. सर्वोच्च नेता खामेनेई बंकर में छिपे हैं. ऐसे में वहां रहने वाले भारतीयों को एयरलिफ्ट कराकर वापस लाना जरूरी हो गया था.
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Israel Iran Conflict: इरान-इजरायल तनाव के बीच भारतीयों को एयरलिफ्ट कराकर वापस अपने देश लाना बेहद जरूरी था. ईरान से भारतीय छात्रों को दिल्ली लाया गया तो उनमें कुछ कश्मीर के छात्र भी थे. इन्होंने दिल्ली आने के बाद ऐसे बयान दिए, जिसे लेकर उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाने लगा. उनकी आलोचना हो रही है. कोई इन्हें थैंकलेस कह रहा है तो इनकी बातों को TANTRUM यानी नखरे बता रहा है.
'अपनी फ्लाइट बुक कर के जाओ'
एक शख्स ने इनके लिए लिखा- 'भारत सरकार इन बच्चों को ईरान से लेकर आ गई और अब ये कह रहे हैं कि हमें बस से कश्मीर मत भेजो. अपनी फ्लाइट बुक करो. टैक्स पेयर्स के पैसों की एक लिमिट होती है.
'दिक्कत है तो वापस तेहरान जाओ'
एक और शख्स ने इन्हें ट्रोल करते हुए लिखा - इन्हें वॉर जोन से रेस्क्यू कर लिया गया है. अब ये श्रीनगर जाने के लिए सुपर डीलक्स बस चाहते हैं. इतनी दिक्कत है तो वापस तेहरान जाओ.
'थैंकलेस लोग'
एक और शख्स ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है कि टैक्स पेयर्स के पैसों से इन्हें रेस्क्यू किया है। अब ये चाहते हैं कि उसी पैसे से इनके लिए फ्लाइट बुक की जाए.. थैंकलेस लोग
'कश्मीरी बच्चों के नखरे देखिए'
एक और शख्स ने लिखा की कश्मीरी बच्चों के नखरे देखिए. ये चाहते हैं कि हेलीकॉप्टर से इन्हें इनके घर पर ड्रॉप किया जाए. अगर ज्यादा दिक्कत है तो अपना चार्टर प्लेन बुक कर लो.
कश्मीरी छात्रों को ट्रोल करने वाले ऐसे पोस्ट हो सकता है आपने भी देखे हों. आपके पास भी ऐसे पोस्ट किसी ने फॉर्वर्ड किया होगा. लेकिन हम आपको इसका एक और पहलू बताते हैं.
छात्र उमर अबदुल्ला से फ्लाइट की उम्मीद कर रहे थे
ऑपरेशन सिंधु के तहत ईरान के वॉर जोन से वहां फंसे लोगों को दिल्ली तक लाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है. लेकिन इन कश्मीरी छात्रों का दावा है कि राज्य सरकार ने इन्हें श्रीनगर तक फ्लाइट या ट्रेन से पहुंचाने का वादा किया था. यही वजह है कि कई सारे छात्र फ्लाइट की उम्मीद कर रहे थे.
भेजी गई बस तो इनकार किया
इन छात्रों को जम्मू कश्मीर सरकार की तरफ से फ्लाइट या ट्रेन तो नहीं मिली. लेकिन एक बस का इंतजाम जरूर करवाया गया. लेकिन इन छात्रों से इस बस में बैठने से ही इनकार कर दिया. बच्चों के मुताबिक 4-5 दिन का सफर तय कर के दिल्ली पहुंचने के बाद वो इस बस में 20 घंटे का सफर नहीं करेंगे क्योंकि वो थके हुए हैं.
छात्र निराश क्यों?
इस बीच जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस मामले का संज्ञान लिया और छात्रों के लिए स्लीपर बसों का इंतजाम करवाया गया और आखिरकार करीब 9 घंटों तक दिल्ली में इंतजार करने के बाद ये लोग, निराश होकर जम्मू कश्मीर के लिए रवाना हुए. यहां सवाल ये उठता है कि आखिर ये छात्र इतने निराश क्यों हैं. आखिर जम्मू कश्मीर सरकार ने इनके लिए ऐसी बस क्यों भेजी जिसपर बैठने से इन्होंने इनकार कर दिया. क्योंकि दिल्ली से छात्रों को अपने-अपने प्रदेश ले जाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की थी.
ऑपरेशन सिंधु
#DNAWithRahulSinha | तेहरान में 'बम की जंग'..दिल्ली में 'बस की जंग'! ईरान से लौटे कश्मीरी छात्रों की 'ट्रोलिंग' क्यों?#DNA #IsraelIranConflict #Iran #Israel #JammuKashmir @RahulSinhaTV pic.twitter.com/qCgY19rVg5
— Zee News (@ZeeNews) June 19, 2025
ईरान में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों का ये मुद्दा छोटा नहीं है. क्योंकि ईरान में करीब 1500 कश्मीरी छात्र पढ़ते हैं. इनमें से आज 94 छात्रों का पहला दल ही पहुंचा है. ऐसे में आने वाले दिनों में छात्रों को आठ से नौ घंटों तक दिल्ली एयरपोर्ट पर ऐसे न छोड़ा जाए. इसके लिए उमर अब्दुल्ला सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे.
कश्मीर से लौटे ये छात्र जम्मू कश्मीर सरकार से तो निराश हैं. लेकिन केंद्र सरकार के ऑपरेशन सिंधु की तारीफ कर रहे हैं. ईरान से छात्रों को रेस्क्यू कराने के अभियान को ऑपरेशन सिंधु का नाम दिया गया है. जिस तरह वॉरजोन से इन्हें निकाला गया, उसके लिए वो केंद्र सरकार के प्रयासों की सराहना कर रहे हैं. हालांकि कुछ कश्मीरी छात्र आज फ्लाइट से ही रवाना हो गए.
दूसरे राज्यों के छात्र खुद से घर चले गए
ऑपरेशन सिंधु के तहत बुधवार को ईरान से रेस्क्यू किए गए लोगों की पहली फ्लाइट दिल्ली पहुंची थी उसमें 94 कश्मीरी स्टूडेंट्स थे, उसी फ्लाइट में दिल्ली, यूपी और राजस्थान के भी छात्र थे. यहां गौर करने वाली बात ये कि बाकी राज्यों के छात्रों ने अपनी-अपनी राज्य सरकारों ने घर पहुंचाने के नाम पर कोई मदद नहीं मांगी. ज्यादातर बच्चों के माता पिता खुद उन्हें लेने आए थे. यूपी के गजरौला निवासी मुस्तफा खुद की गाड़ी से घर पहुंचे. कोटा के अली हैदर बेटे माज को लेने आए. वहीं यूपी के सुल्तानपुर के अमान को भी सरकार ने घर नहीं पहुंचाया. क्राइसिस सिचुएशन में राज्य सरकार पर निर्भर होने के साथ छात्रों की भी ये जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वो सरकारों का सहयोग करें.