कार और बस की सीधी टक्कर कोई `दैवीय घटना` नहीं, बॉम्बे HC ने पलटा 20 साल पुराना फैसला, पीड़ित परिवार को मुआवजा
Act Of God: मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल ने 1997 में कार और बस की सीधी टक्कर को `दैवीय घटना` बताया था. उस आधार पर पीड़ित को मुआवजा नहीं मिला था. अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने वह फैसला पलट दिया है.
Act Of God In Road Accident: 27 साल पहले, 14 नवंबर 1997 को मुंबई में एक हादसा हुआ. सरकारी बस और एक कार की जोरदार टक्कर हो गई थी. कार के मालिक राजेश सेजपाल को काफी चोटें आई थीं. ताउम्र बिस्तर पर गुजरनी थी. उन्होंने मुआवजे के लिए मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल (MATC) में अपील डाली. 10 करोड़ रुपये मुआवजा मांगा. ट्रिब्यूनल ने 2005 में कहा कि दोनों में किसी ड्राइवर की गलती नहीं थी. हादसा एक 'दैवीय घटना' थी और इस आधार पर क्लेम खारिज कर दिया. सेजपाल ने बॉम्बे हाई कोर्ट में ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी. हालांकि, हाई कोर्ट का फैसला आने से पहले सेजपाल चल बसे. अब हाई कोर्ट ने MATC का फैसला पलट दिया है. HC ने कहा कि 1997 का हादसा कोई 'दैवीय घटना' नहीं थी. हाई कोर्ट ने पाया कि एक्सीडेंट के लिए कार और बस, दोनों के ड्राइवर बराबर जिम्मेदार हैं. अदालत ने सेजपाल के परिवार में बचे तीन सदस्यों में से हर एक को, 20 लाख रुपये से ज्यादा का मुआवजा देने का आदेश दिया है. यह मुआवजा बीमा कंपनी और महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) को देना होगा.
1997 में हुई थी कार और बस में आमने-सामने की टक्कर
MSRTC की बस 14 नवंबर, 1997 की शाम करीब 5.15 बजे एक कार से जा टकराई थी. कार में चार लोग सवार थे. कार के मालिक राजेश सेजपाल को पहले सायन अस्पताल, फिर पीडी हिंदुजा अस्पताल ले जाया गया. वे वहां साढ़े पांच महीनों से ज्यादा वक्त के लिए भर्ती रहे. 2000 में उन्हें एक्सीडेंट से मिली चोटों के चलते फिर से भर्ती कराना पड़ा. 1998 में अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद से वह बिस्तर पर ही रहे. सेजपाल ने ट्रिब्यूनल में 10 करोड़ रुपये मुआवजे का दावा किया था. MATC ने 2005 में दावा खारिज कर दिया. सेजपाल ने ट्रिब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अब क्या फैसला दिया?
04 अप्रैल 2024 को हाई कोर्ट के जस्टिस एएस चंदूकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की बेंच ने फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि 'दैवीय घटना' का मतलब उस स्थिति से होगा जो इंसान के नियंत्रण में न रही हो. लेकिन इस मामले में कोहरा जैसी रुकावट नहीं थी और टक्कर बीच सड़क पर हुई. कोर्ट ने कहा, 'इसलिए, यह दैवीय घटना का मामला नहीं हो सकता है और ट्रिब्यूनल द्वारा लागू एलिमिनेशन का सिद्धांत गलत है.' MATC ने 2005 में कहा था कि हादसे में किसी ड्राइवर की लापरवाही नहीं थी और हादसा एक 'दैवीय घटना' थी.
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हाई कोर्ट ने कहा कि जब दो गाड़ियां आपस में टकराती हैं तो यह नहीं कहा जा सकता कि दोनों ड्राइवरों में से किसी एक ने लापरवाही नहीं की. HC ने कहा, 'लापरवाही जरूर एक या दोनों ड्राइवर्स की रही होगी. ऐसे में ट्रिब्यूनल का तर्क कायम नहीं रह जाता.' हाई कोर्ट ने यह भी नोट किया कि कार में मौजूद सभी चार व्यक्तियों ने अलग-अलग दावा फाइल किया था. 2010 में दावा ट्रिब्यूनल ने इसे समग्र लापरवाही का मामला मानते हुए 1.5 लाख रुपये मुआवजा दिया था. हालांकि उसे न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ने HC में चुनौती दी. 2013 में हाई कोर्ट ने इसे दोनों गाड़ियों के ड्राइवर्स की लापरवाही का मामला माना.