नई दिल्ली: भारत के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत (CDS Bipin Rawat) के निधन पर पूरे देश की आंखे नम हैं. देश के लिए जान कुर्बान कर देने का जज्बा उनमें बचपन से था. अपने आखिरी वक्त में भी CDS रावत ऑन ड्यूटी थे. जनरल ने जीते जी कई कमाल किए. वो ऐसे बेमिसाल अफसर थे जिनकी हर सांस भारत माता की शान के लिए निछावर थी. अब आपको बताते हैं उनकी जिंदगी का वो किस्सा जब वो पाकिस्तान की गोली से घायल (CDS Injured in Pakistan Firing) हो गए थे.


'देश के नाम थी जनरल की जिंदगी'


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पाकिस्तान की गोली से घायल होने की घटना करीब 28 साल पहले घटी थी. उनकी हर बात निराली थी. वो अद्भुत शख्सियत के धनी थे. बिपिन रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत ने भारतीय सेना की सेवा की और लेफ्टिनेंट-जनरल के पद तक पहुंचे. दूसरी ओर, उनकी मां उत्तरकाशी से विधान सभा (एमएलए) के पूर्व सदस्य किशन सिंह परमार की बेटी थीं. वो ऐसे सैन्य अधिकारी थे जिनके जाने से देश को अपूर्णीय क्षति हुई है. ऐसे में उनके निधन की खबर जिसने भी सुनी वो स्तब्ध रह गया. 


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'जब पाकिस्तान की गोलीबारी में घायल हुए थे CDS रावत'


जनरल बिपिन रावत ने देहरादून और शिमला में पढ़ाई पूरी करने के बाद एनडीए और आईएमए देहरादून से सेना में एंट्री ली थी. उन्होंने मेरठ यूनिवर्सिटी से मिलिट्री-मीडिया स्ट्रैटेजिक स्टडीज में पीएचडी भी की थी. जनरल ने सेना में रहते कई कठिन परिस्थितियां का सामना किया.


'इंडिया टुडे' में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक बिपिन रावत साल 1993 को वे सेना में यूनिट 5/11 गोरखा राइफल्स के मेजर थे. वो 17 मई को उरी (Kashmir) में गश्त के दौरान पाकिस्तान की ओर से हो रही भारी गोलीबारी (Pakistani Firing) की रेंज में आ गए थे. तब बिपिन रावत के पैर के टखने पर एक गोली लगी थी और दाहिने हाथ पर छर्रे का एक टुकड़ा लगा था.


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किस्मत से उस वक्त उन्होंने कैनवस एंकलेट पहन रखा था, जिसकी वजह से गोली के तेज रफ्तार को तो झेल लिया था, लेकिन फिर भी उनका टखना बुरी तरह चकनाचूर हो गया था. जिसके बाद उन्हें श्रीनगर के 92 बेस अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने शानदार कौशल का परिचय देते हुए हाथ और टखने को एकदम ठीक कर दिया था.


रहती थी ये टेंशन


उसी इंटरव्यू में बिपिन रावत ने बताया था कि गोली लगने के बाद सेना में एक युवा अधिकारी के रूप में उन्हें इस बात की टेंशन रहती थी कि कहीं उन्हें महू (Madhya Pradesh) में अपने सीनियर कमान कोर्स में शामिल होने से वंचित न होना पड़े. सेना में प्रमोशन के लिए इस हायर कमान कोर्स को पूरा करना बेहद जरूरी था. तब कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने कहा कि उनका करियर खत्म हो चुका है.


हिम्मत नहीं हारी


लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक महीने बीमारी की छुट्टी ली. इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे बैसाखी के सहारे चलना शुरू किया. तब उन्हें रेजिमेंटल सेंटर लखनऊ में तैनाती दी गई. उरी में यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर ने तब ये कहा था कि मिलिट्री सेक्रेटरी ब्रांच की सहमति हो तो वे बिपिन रावत को वापस यूनिट में रखने को तैयार हैं. 


सीडीएस जनरल बिपिन रावत अब हमारे बीच नहीं है. लेकिन उनकी जाबांजी के ऐसे कई किस्से हैं जो देश के युवाओं को हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे. 


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