Centre for Law and Policy Research Report: एक रिपोर्ट के मुताबिक कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में महिला जज पुरुष के मुताबिक एक साल कम काम करती हैं. कम सेवा देने की वजह से कॉलेजियम बनाने वाली बेंच के वरिष्ठ पदों तक नहीं पहुंच पाती हैं.
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CLPR Report Bengaluru: अक्सर देखा जाता है कि सरकारी विभाग में पुरुषों के साथ महिलाएं भी काम करतीं हैं. हालांकि एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. जिसमें कानूनी पेशे में शामिल होने वाली महिलाओं की कठिनाईयों के बारे में जिक्र किया गया है. बेंगलुरु की सेंटर फॉर लॉ एंड पॉलिसी रिसर्च (CLPR) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट में महिला जज पुरुष के मुताबिक एक साल कम काम करती हैं. जो उनके ऊंचे पदों पर पहुंचने की संभावना को काफी ज्यादा प्रभावित करता है.
प्रभाव को उजागर करती है है रिपोर्ट
TI के मुताबिक आईटी सिटी में एक रिपोर्ट पेश की गई. जिसमें महिला और पुरुष जजों के सेवा को बताया गया है. ये रिपोर्ट न्यायपालिका में महिला नेतृत्व पर इसके प्रभाव को उजागर करती है. रिपोर्ट के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति की औसत आयु पुरुषों के लिए 59.5 वर्ष और महिलाओं के लिए 60.5 वर्ष है. नियुक्ति की आयु औसत कार्यकाल को भी प्रभावित करती है. इस रिपोर्ट में पता चलता है कि महिला जजों का औसत कार्यकाल 4.4 वर्ष है, जबकि पुरुष लगभग 5.4 वर्ष सेवा करते हैं.
इसे लेकर CLPR में वरिष्ठ शोध सहयोगी नित्या रिया राजशेखर ने कहा कि कोई सोच सकता है कि यह सिर्फ़ एक साल का अंतर है. लेकिन जब आप सुप्रीम कोर्ट के कार्यकाल को देखते हैं, जो लगभग पांच साल का होता है, तो एक साल बहुत बड़ा अंतर होता है. नतीजतन, महिला न्यायाधीशों का कार्यकाल कम होता है और वे शायद ही कभी कॉलेजियम बनाने वाली बेंच के वरिष्ठ पदों तक पहुंच पाती हैं.
हाईकोर्ट में भी है यही स्थिति
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने वाली हैं, लेकिन उनका कार्यकाल सिर्फ़ 36 दिनों का होगा. इससे सवाल उठता है कि उन्हें पहले क्यों नहीं नियुक्त किया गया. हाईकोर्ट के लिए भी यही स्थिति है. हाई कोर्ट में नियुक्ति की औसत आयु पुरुषों के लिए 51.8 वर्ष और महिलाओं के लिए 53.1 वर्ष है. कुछ हाई कोर्ट में औसतन महिलाओं को पुरुषों की तुलना में तीन साल से ज़्यादा समय बाद जज के रूप में नियुक्त किया जाता है. नित्या ने कहा, "देश भर में 25 उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीशों की बात करें तो 15 न्यायालयों में कभी भी कोई महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं रही, जिसका अर्थ है कि पूरे देश में 15 न्यायालयों में कभी भी कोई वरिष्ठतम महिला नहीं रही.
अतिरिक्त बाधाओं का सामना
वहीं नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर अपर्णा चंद्रा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सर्वोच्च न्यायालय की नियुक्तियों में, कॉलेजियम मुख्य रूप से उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का चयन करता है. 1993 के बाद 86% नियुक्तियां इसी पूल से हुई हैं, जबकि पहले की कार्यकारी प्रणाली के तहत 53% नियुक्तियां इसी पूल से हुई थीं. इससे निचली न्यायपालिका के लोगों के लिए अवसर सीमित हो जाते हैं. महिलाओं को अतिरिक्त बाधाओं का सामना करना पड़ता है, अक्सर उन्हें अधिक उम्र में और कई उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के बाद नियुक्त किया जाता है.
केवल है 12 महिलाएं
कॉलेजियम द्वारा नियुक्त 242 उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों में से केवल 12 महिलाएं हैं. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा के प्रोफेसर रंजिन त्रिपाठी ने कहा, न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता का अभाव है, जिससे सुधार मुश्किल हो जाते हैं. इस बात का सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा होना चाहिए कि किस कॉलेजियम ने किन न्यायाधीशों को नियुक्त किया, कौन शामिल था और किन नियुक्तियों को अस्वीकार कर दिया गया. इस डेटा की जरूरत न केवल सर्वोच्च न्यायालय बल्कि उच्च न्यायालय स्तर पर भी है.