दक्षिण चीन सागर में चीन ने फिर दिखाई चालाकी! अब 'ड्रैगन' को जवाब देना जरूरी
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दक्षिण चीन सागर में चीन ने फिर दिखाई चालाकी! अब 'ड्रैगन' को जवाब देना जरूरी

दक्षिण चीन सागर (South China Sea) में अपने हितों को साधने के लिए चान ने एक बार फिर चालाकी दिखानी शुरू कर दी है.

विवादित दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता बढ़ती ही जा रही है.

नई दिल्ली: दक्षिण चीन सागर (South China Sea) में अपने हितों को साधने के लिए चान ने एक बार फिर चालाकी दिखानी शुरू कर दी है. अमरीकी पैसिफिक फ्लीट कमांडर एडमिरल जॉन एक्यूलिनो भारत में हैं और उन्होंने साफ साफ कहा कि विवादित दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता बढ़ती ही जा रही है. दक्षिण चीन सागर क्षेत्र वैश्विक कारोबार का अहम रूट है और चीन की इस क्षेत्र में बढ़ती दादागीरी के कारण कई देशों पर रणनीतिक असर पड़ेगा. 

चीन की दोहरी चाल और चरित्र किसी से छिपी नहीं है. इसे आसान भाषा में समझने के लिए, आपको इस पूरे विवाद की जड़ के बारे में पता होना चाहिए. दक्षिण चीन सागर (South China Sea‌) में वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड और सिंगापुर जैसे देशों को चीन की नौसेना धमकाती है और उनके समुद्री इलाकों पर जबरन दावा करती है और चीन का इन सभी देशों के साथ विवाद चल रहा है. वजह ये है कि दक्षिण चीन सागर में तेल और गैस के बड़े भंडार दबे हुए हैं.

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चीन का अमेरिका को खुला चैलेंज
दक्षिण चीन सागर को लेकर अमेरिका और चीन में लंबे समय से संघर्ष चल रहा है...चालाक चीन ने का इरादा, दक्षिण चीन सागर में सैन्य अड्डे बनाना और मिसाइल तैनात करना है. चीन ने ऐसा किया तो ये न सिर्फ भारत के लिए बल्कि अमेरिका के लिए भी खुला चैलेंज होगा. सवाल ये है कि क्या अमेरिका की ट्रंप सरकार ड्रैगन को अपना हुक्म मानने पर मजबूर कर पाएगी. इससे पहले ओबामा ने भी साउथ चाइना सी पर चीन के कब्जे को अंतरराष्ट्रीय रास्ते पर खतरा बताया था. 

इस समुद्री रास्ते से हर साल 7 लाख करोड़ डॉलर का बिजनेस होता है. दुनिया के एक तिहाई व्यापारिक जहाज इस समुद्री इलाके से गुज़रते हैं. भारत का 55 फीसदी से भी ज़्यादा का समुद्री व्यापार भी साउथ चाइना sea के जरिए होता है. भारत वर्ष 2011 से दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के साथ मिलकर तेल की खोज कर रहा है जिस पर चीन का खासा ऐतराज़ है. 2013 में चीन ने यहां एक ऑर्टिफीशियल आयलैंड बनाया और चीन दक्षिण चीन सागर में समंदर के बीच में अपने अड्डे बनाकर मिसाइल तैनात करके भारत पर दबाव बढ़ाना चाहता है. 
 
अमरीकी पैसिफिक फ्लीट कमांडर एडमिरल जॉन एक्यूलिनो का कहना है कि ''इस इलाक़े के सभी देशों के लिए ये ख़तरनाक है. सभी हमारे दोस्त और सहयोगी हैं. लेकिन किसी में ये क्षमता नहीं है कि चीन के बनाए इन द्वीपों को हटा सकें. ऐसे में मै यह कह सकता हूं कि यहां चीन की आक्रामकता में कोई कमी नहीं आई है. चीन इस इलाक़े में अपना मक़सद हासिल करने के लिए दबाव की रणनीति पर काम कर रहा है. यहां सैन्य गतिविधियां बढ़ रही हैं जिससे हमारे दोस्तों और सहयोगियों के लिए मुश्किलें भी बढ़ रही हैं. अमरीका और भारत इंडो-पैसिफिक में स्वतंत्र आवाजाही को लेकर साथ मिलकर काम करते रहेंगे.'

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ड्रैगन को जवाब देना अब ज़रूरी 
दक्षिण चीन सागर पर चीन अपना दबदबा क़ायम करना चाहता है क्योंकि यहां भारी मात्रा में प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं. यहां मानव निर्मित द्वीपों और बड़े पैमाने पर मिलिट्री ठिकानों को विकसित करके चीन भारत सहित अमेरिका जैसे देशों को आंख दिखाने की कोशिश कर रहा है. लिहाज़ा अब वक्त आ चुका है कि चीन को साउथ चाइना सी में माकूल जवाब दिया जाना चाहिए. भारत और अमेरिका स्वाभाविक दोस्त हैं. भारत-अमेरिका की ज़रूरतें एक जैसी हैं. अमेरिका और भारत का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून का पालन होना चाहिए और साउथ चाइना सी में  भी ऐसा ही होना चाहिए. 

(दिल्ली से वरुण भसीन के साथ ब्यूरो रिपोर्ट, ज़ी मीडिया)

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