राष्ट्रमंडल के सभी सदस्य देशों को समाप्त करनी चाहिए धारा 377 : सीएचआरआई
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राष्ट्रमंडल के सभी सदस्य देशों को समाप्त करनी चाहिए धारा 377 : सीएचआरआई

नई दिल्ली: गैर सरकारी संगठन सीएचआरआई ने समलैंगिक संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मील का पत्थर बताते हुए कहा कि इससे उन सभी राष्ट्रमंडल देशों को सबक लेना चाहिए.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: गैर सरकारी संगठन सीएचआरआई ने समलैंगिक संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मील का पत्थर बताते हुए कहा कि इससे उन सभी राष्ट्रमंडल देशों को सबक लेना चाहिए, जिनके यहां अभी तक औपनिवेशिक दौर का यह ‘रूढ़िवादी’ कानून प्रयोग में हैं. कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इंनिशिएटिव (सीएचआरआई) ने शुक्रवार को कहा कि फैसले का राष्ट्रमंडल देशों पर व्यापक प्रभाव होगा. अभी तक राष्ट्रमंडल के 53 सदस्य देशों में से कम से कम 36 देशों में आपसी सहमति से बनाया गया समलैंगिक संबंध अभी तक अपराध की श्रेणी में आता है.

औपनिवेशिक शासनकाल में ब्रिटेन ने बनाए थे यह कानून 
सीएचआरआई के अंतरराष्ट्रीय निदेशक संजय हजारिका ने एक बयान में कहा, सीएचआरआई का मानना है कि धारा 377 पर आए फैसले के आधार पर राष्ट्रमंडल द्वारा नई परंपरा शुरू करना अपरिहार्य है. राष्ट्रमंडल का अध्यक्ष होने के नाते ब्रिटेन तथा राष्ट्रमंडल की महासचिव पैट्रिसिया स्कॉटलैंड को इस मामले में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए. हजारिका ने ध्यान दिलाया कि चोगम, 2018 की बैठक के उद्घाटन संबोधन में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरेसा ने कहा था कि समलैंगिक संबंधों को अपराध करार देने वाले कानून लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं और यह कानून औपनिवेशिक शासनकाल में ब्रिटेन ने ही बनाए थे.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रमंडल को इस संबंध में जागरूकता फैलानी चाहिए ऐसा समाज तैयार करनी चाहिए, जहां लोगों के यौन झुकाव के कारण उनके साथ भेदभाव ना हो.

(इनपुट भाषा से)

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