लोकसभा चुनाव 2019 के प्रचार अभियान के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को ढाल बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोल रहे हैं.
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस लगातार बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को ढाल बनाकर प्रधानमंत्री पर निशाना साध रहा है. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लालकृष्ण आडवाणी का अपमान करने का आरोप लगाया है. विपक्ष का यह भी आरोप रहा है कि बीजेपी ने लगातार अपने शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी की उपेक्षा की है. इस चुनाव में जब विपक्ष लगातार बात लालकृष्ण आडवाणी की बात कर रहा है, तब हम आपको उस दौर में लेकर चलते हैं, जब बीजेपी ने सत्ता वापस हासिल करने के लिए लालकृष्ण आडवाणी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया और सत्ता छिटक कर कांग्रेस के डॉ. मनमोहन सिंह के पास चली गई. जी हां, चुनावनामा में आज हम बात कर रहे हैं 2009 के लोकसभा चुनाव की. इस चुनाव में बीजेपी लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस सहित दूसरी पार्टियों को चुनावी मैदान में चुनौती दी थी.
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अटल के राजनैतिक संन्यास के बाद आडवाणी बने बीजेपी का चेहरा
लोकसभा चुनाव 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी अप्रत्याशित तौर पर चुनाव हार गई. देश की सत्ता बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए के हाथ से निकलकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के पास चली गई. जिसके बाद, 29 दिसबंर 2005 को अटल बिहारी वाजपेयी ने बीजेपी के रजत जयंती समारोह के दौरान सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर दी. बीजेपी के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मुंबई के शिवाजी मैदान में आयोजित इस समारोह में उन्होंने अपने अंतिम भाषण के दौरान सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा की थी. अपने अंतिम भाषण के दौरान, उन्होंने कहा था कि 'मैं परशुराम की तरह राज्याभिषेक के प्रसंग से अब अपने को अलग कर रहा हूं, अब न ही अब मैं चुनाव नहीं लडूंगा और न ही सत्ता की राजनीति नहीं करूंगा, हां मैं काम करता रहूंगा.' अटल बिहारी वाजपेयी के राजनैतिक संन्यास के बाद बीजेपी ने लाल कृष्ण आडवाणी को अपना चेहरा बनाया और उनके चेहरे पर 2009 का चुनाव लड़ा.
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सीटों की गणित में कांग्रेस के सामने कमजोरी पड़ गई बीजेपी
देश की 15वीं लोकसभा के लिए पांच चरणों में मतदान कराए गए. इस बार बीजेपी को पूरी उम्मीद थी कि कांग्रेस को शिकस्त देकर वह एक बार फिर सत्ता की चाबी हासिल करने में सफल रहेगी. 16 मई 2009 को चुनाव के नतीजे सामने आए और सत्ता की बाजी बीजेपी के हाथों निकल गई. इस चुनाव में बीजेपी के हिस्से महज 116 सीटें आईं, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार ने 206 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रहे. कांग्रेस ने यूपीए के घटक दलों की मदद से बहुमत का आंकड़ा हासिल किया और डॉ. मनमोहन सिंह एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बने. इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के अतिरिक्त बहुजन समाज पार्टी को 21, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को चार, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) को 16, नेशनल कांग्रेस पार्टी को 9 और राष्ट्रीय जनता दल को 4 सीटों पर जीत हासिल हुई. 2009 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं 7 राजनैतिक दलों को राष्ट्रीय दल का दर्जा चुनाव आयोग से मिला हुआ था.
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क्षेत्रीय दलों ने 394 सीटों पर लड़ा चुनाव, 146 में मिली जीत
2009 के लोकसभा चुनाव में करीब 34 क्षेत्रीय दलों के 394 उम्मीदवारों ने चुनावी मैदान में चुनौती दी. जिसमें 146 उम्मीदवार चुनाव जीतकर संसद पहुंचने में कामयाब रहे. क्षेत्रीय दलों में सर्वाधिक समाजवादी पार्टी के 23 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. इस चुनाव में सपा ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्त्राखंड में कुल 95 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे. हालांकि यह बात दीगर है कि सपा को सफलता सिर्फ उत्तर प्रदेश में मिली. सपा के अलावा, इस चुनाव में ऑल इंडिया अन्ना द्रविद मुन्नेत्रा कजागम (एडीएमके) ने 9, बीजू जनता दल ने 14, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने 18, जनता दल (सेकुलर) ने 3, जनता दल (यूनाइटेड) ने 20, शिवसेना ने 11 और तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इनके अलावा, इस चुनाव में असम गोवा गणपरिषद को एक, आल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक को दो, आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को 19, जम्मू और कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस को तीन और झारखंड मुक्ति मोर्चा को दो सीटों पर जीत मिली थी.
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सर्वाधिक बीएसपी के उम्मीदवारों की जब्त हुई थी जमानत
लोकसभा चुनाव 2009 में राष्ट्रीय दलों के 1623 और क्षेत्रीय दलों के 80 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी. जिसमें राष्ट्रीय दलों के 779 और क्षेत्रीय दलों के 80 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने सर्वाधिक 500 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. जिसमें, 410 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. वहीं, इस चुनाव में बीजेपी के 170, सीपीआई के 41, सीपीएम के 29, कांग्रेस के 71, एनसीपी के 42 और आरजेडी के 16 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी. वहीं, क्षेत्रीय दलों की बात करें तो समाजवादी के सर्वाधिक 37 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी. समाजवादी पार्टी का कोई भी उम्मीदवार मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में चुनाव नहीं जीत पाया था. सपा ने मध्य प्रदेश में 18 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें 16 की जमानत जब्त हो गई थी और उत्तराखंड में दोनों उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सके थे. इसके अलावा, क्षेत्रीय दलों में जनता दल (सेकुलर) के 11 उम्मीदवारों की भी जमानत जब्त हुई थी.