कोरोना बना काल: चंद घंटों में आगरा कमिश्नर के सिर से उठ गया माता-पिता का साया
कोरोना (CoronaVirus) महामारी ने आगरा के कमिश्नर अनिल कुमार (Commissioner Anil Kumar) को एक ऐसा आघात दिया है, जिससे उभरना उनके लिए आसान नहीं होगा. महज कुछ घंटों के अंतराल में कुमार ने अपने पिता और मां दोनों को खो दिया है.
आगरा: कोरोना (Coronavirus) महामारी ने आगरा के कमिश्नर अनिल कुमार (Commissioner Anil Kumar) को एक ऐसा आघात दिया है, जिससे उभरना उनके लिए आसान नहीं होगा. महज कुछ घंटों के अंतराल में कुमार ने अपने पिता और मां दोनों को खो दिया है. रविवार को कुमार के कोरोना पीड़ित पिता का देहांत हुआ था और सोमवार को मां भी उन्हें छोड़कर हमेशा के लिए चली गईं.
कमिश्नर कुमार के माता-पिता कोरोना पॉजिटिव थे और उनका इलाज चल रहा था. उनकी मां को नोएडा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन वह जिंदगी की जंग हार गईं. इससे एक दिन पहले ही कुमार ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया था. उनकी चिता अभी ठंडी भी नहीं हुई थी, कि कुमार को मां के निधन की सूचना मिल गई. कमिश्नर की बहन भी कोरोना पॉजिटिव हैं.
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निसंदेह अनिल कुमार अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं, जिन्हें कोरोना ने कभी न भूलने वाला गम दिया है, लेकिन वह सामान्य लोगों की तुलना में शक्तिशाली जरूर हैं. वह पूरे सूबे के मुखिया हैं, उनके पास शायद ही किसी चीज की कमी हो, लेकिन इसके बावजूद वह कोरोना के काल से अपने माता-पिता को नहीं बचा सके. यह घटना एक उदाहरण है कि कोरोना के कहर से कोई भी अछूता नहीं है. वह ‘सामान्य’ और ‘शक्तिशाली’ में कोई भेद नहीं करता. जब साधन-सुविधा संपन्न व्यक्ति कोरोना का शिकार बन सकते हैं, तो आम आदमी उसके लिए एक सॉफ्ट टारगेट है. इसलिए कोरोना वायरस की भयावहता को कमतर आंकने की गलती जानलेवा साबित हो सकती है.
देशव्यापी लॉकडाउन खत्म होने के बाद से कोरोना को लेकर का डर भी खत्म होने लगा है. ‘जो होगा देखेंगे’ जैसी मानसिकता हावी हो गई है. यही वजह है कि पॉजिटिव मामलों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क लगाने जैसे नियमों का उल्लंघन आम हो गया है. अधिकांश लोग यह मान बैठे हैं कि उन्हें कोरोना नहीं होगा. जबकि विशेषज्ञ कई बार यह साफ कर चुके हैं कि वायरस का प्रकोप कम नहीं हुआ है और छोटी सी लापरवाही भी जानलेवा बन सकती है.
सूबे के मुखिया अनिल कुमार ने अपने माता-पिता को बचाने के हर संभव प्रयास किये होंगे, मगर उनका रुतबा ‘बीमारी’ के आगे फीका पड़ गया. वह सबकुछ करके भी कुछ नहीं कर सके. यह घटना एक संकेत और चेतावनी है कि कोरोना को कमतर आंकने की भूल ‘भूलकर’ भी नहीं की जानी चाहिए. यदि हम महामारी से जल्द छुटकारा चाहते हैं, तो उसकी रोकथाम के लिए बनाये गए नियमों का पालन करना होगा. अकेले सरकार के दम पर यह लड़ाई नहीं जीती जा सकती, इसके लिए सभी की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है.
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