चंडीगढ़ के डॉक्टरों ने बनाया ऐसा बैग, वेंटिलेटर का बचेगा लाखों रुपए, कोरोना को मिलेगी मात
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चंडीगढ़ के डॉक्टरों ने बनाया ऐसा बैग, वेंटिलेटर का बचेगा लाखों रुपए, कोरोना को मिलेगी मात

 पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का कहर देखने को मिल रहा है.भारत भी इस वायरस से लड़ने के लिए खुद को तैयार कर रहा है. 

चंडीगढ़ के डॉक्टरों ने बनाया ऐसा बैग, वेंटिलेटर का बचेगा लाखों रुपए, कोरोना को मिलेगी मात

चंडीगढ़: पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का कहर देखने को मिल रहा है. भारत भी इस वायरस से लड़ने के लिए खुद को तैयार कर रहा है. इस बीच स्वास्थ्य विभाग और लोगों को सबसे ज्यादा चिंता कम वेंटिलेटर की सता रही है. लेकिन आपको बता दें कि स्वास्थ्य विभाग के लिए एक वेंटिलेटर पर लाखों खर्च करने के बजाए फिलहाल चंडीगढ़ पीजीआई डॉक्टर दृारा तैयार किया 15000 रुपए का डिवाइस मददगार साबित हो सकता है. दरअसल कोरोना वायरस से निपटने की तैयारी में ‘वेंटिलेटर’ की भूमिका अहम है.

कोरोना से ग्रसित गंभीर मरीजों का इलाज इसी खास उपकरण में किया जाता है, लेकिन देश में इसकी भारी कमी है. हालांकि, इस बीच चंडीगढ़ पीजीआई के एनेस्थीसिया व इंटेंसिव केयर के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजीव चौहान ने वेंटिलेटर के विकल्प के तौर पर ऑटोमेटिक एंबू बैग तैयार किया है, जो एक तरह से वेंटिलेटर का ही काम करता है. इस मशीन के माध्यम से पेशेंट को सांस लेने में दिक्कत नहीं आती है.

ज़ी मीडिया से बातचीत करते हुए डॉ. राजीव चौहान ने बताया कि वेंटिलेटर के मुकाबले इसकी कीमत बहुत कम है. एक वेंटिलेटर की कीमत दस से 12 लाख है और उसके संचालन के लिए एक ट्रेंड स्टाफ की आवश्यकता पड़ती है, जबकि ऑटोमेटिक एंबू बैग की कीमत करीब 15 से 17 हजार है. स्वास्थ्य अधिकारियों की भी यही चिंता है कि यदि कोरोना ने तेजी से पांव पसारे तो मरीजों के लिए वेंटिलेटर कहां से लाएंगे?

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ऐसी स्थिति में कोरोना की लड़ाई में यह एक बड़ा हथियार बन सकता है. बाजार में अभी जो एंबू बैग मौजूद हैं, वे मैन्युल है यानी कि उसे चलाने के लिए एक व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती और बिना एक सेकेंड रुके उसे लगातार चलाना पड़ता है.डॉ. राजीव चौहान ने बताया कि इस डिवाईज़ की तुलना वेंटिलेटर से तो नहीं की जा सकती लेकिन जैसे हालात पुरी दुनिया में कोरोना वायरस के कारण बने हुए है उसमें ये मशीन मददगार साबित होगी.

उन्होनें कहा जनवरी में तैयार हुए इस डिवाइस को 2 महीने ट्रायल पर रखा यहां उन्हें सफलता मिली. पीजीआई डॉक्टर व हिमाचल के मूल निवासी डॉ. राजीव चौहान ने बताया कि उन्होंने साल 2018 में इसकी तैयारी शुरू की थी. उस दौरान पेक के स्टूडेंट्स उनके साथ जुड़े थे, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. बाद में बंगलूरू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस के दो युवा इंजीनियर ईशान दार व आकाश से डॉ. राजीव ने अपना आइडिया शेयर किया और मशीन का आविष्कार कर दिया. मशीन का पेटेंट फाइल कर दिया गया है और उसकी कार्रवाई चल रही.  

डॉ. राजीव चौहान ने मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ को भी इस मशीन के बारें में लिखा है और हिमाचल के शिक्षा मंत्री ने भी आश्वावासन दिया है कि मुख्यमंत्री से इस बारें में बात करेंगें. उन्होनें केंद्र सरकार से अपील की है कि वो जल्द से जल्द इस मशीन को प्रमाण करवाएं जिससे इसका उपयोग किया जा सके. उन्होनें कहा हेल्थ मिनिस्ट्री कभी भी इस मशीन का ट्रायल देख सकती है. पीजीआई के निदेशक डॉ. जगत राम ने भी कहा कि ये डिवाइस इन हालातों में काफी मददगार साबित हो सकता है. क्योंकि इस मशीन को कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसमें बैटरी बैकअप भी है ये मशीन 6 घंटे बिना बिजली के काम कर सकता है.

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