Centre for Science and Environment की नई रिपोर्ट ने लोगों को चौंका कर रख दिया है. नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (National Clean Air Program-NCAP) के तहत जिन शहरों को चुना गया था इस रिपोर्ट के अनुसार NCAP शहरों और अन्य शहरों की एयर क्वालिटी में कोई खास फर्क नहीं पाया गया.
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National Clean Air Program: स्वच्छ भारत अभियान के बाद साल 2019 में वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) शुरू किया गया था. इस प्रोग्राम के तहत देश के 132 शहरों में हवा के स्तर को सुधारने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन 3 साल पूरे होने के बाद भी कुछ खास काम नहीं हो पाया. जिन शहरों को इस प्रोग्राम के तहत चुना गया था, उनमें और बाकी शहरों के हवा की गुणवत्ता में कुछ खास फर्क नहीं आया है.
82 शहरों को NCAP के तहत मिला फंड
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत जिन 132 शहरों को चुना गया था, उनमें से 82 शहरों को NCAP के तहत फंडिंग की गई थी. वहीं 50 शहरों को 15वें वित्त आयोग ने फंड से दिया गया था. एनसीएपी (NCAP) के लिए साल 2021-22 तक करीब 6.5 हजार करोड़ रुपये जारी हुए और साल 2022-23 में इस प्रोग्राम के लिए करीब 2.3 हजार करोड़ रुपये जारी होंगे. साल 2020–21 से शहरों में हवा की गुणवत्ता में सुधार कि मात्रा निर्धारित करने की आवश्यकता है, इसके लिए PM 10 के वार्षिक औसत में 15 प्रतिशत कमी आनी चाहिए और अच्छी हवा के दिन 200 से ज्यादा होने चाहिए. इससे कम सुधार होने पर फंडिंग को भी कम कर दिया जाएगा.
लॉकडाउन का हवा की गुणवत्ता पर प्रभाव
साल 2019 में 132 एनसीएपी (NCAP) शहरों में से केवल 51 में रियल टाइम मॉनिटरिंग स्टेशन थे फिर साल 2021 में यह संख्या बढ़कर 63 हो गई. इसके बाद साल 2022 में अब तक छह और एनसीएपी शहरों ने रीयल टाइम मॉनिटर स्थापित किए गए हैं लेकिन केवल 43 एनसीएपी शहरों में साल 2019 से 2021 के बीच PM 2.5 डेटा मॉनीटर किया गया. हालांकि इस समय में कोरोना महामारी के चलते देशभर में लॉकडाउन रहा. इस वजह से ज्यादातर शहरों में साल 2021 में हवा के गुणवत्ता स्तर में सुधार आया था लेकिन साल 2021 में फिर से PM 2.5 डेटा में इजाफा देखा गया. साल 2019 और 2020 के बीच तुलना करने पर पता चलता है कि 43 शहरों में से केवल 14 ने दोनों के बीच अपने PM 2.5 स्तर में 10 प्रतिशत या उससे अधिक की कमी दर्ज की है.
क्या है PM 2.5 और PM 10?
आप हवा में उड़ती हुई धूल को तो देख ही लेते होंगे. धूल गले, आंख और नाक में घुस जाए तो बहुत दिक्कत होती है लेकिन वायु प्रदूषण के पीछे PM 2.5 और PM 10 का बड़ा हाथ होता है. PM का मतलब होता पार्टिकुलेट मैटर और 2.5 से लेकर 10 इस मैटर या कण का आकार होता है. पार्टिकुलेट मैटर 2.5 से लेकर 10 माइक्रोस्कोपिक डस्ट पार्टिकल होते हैं, यानी इतने छोटे पार्टिकल जिसको देखने के लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत पड़ जाए. हालांकि, इनका हमारी बॉडी में घुसना घातक और बेहद नुकसानदेय होता है.
इन शहरों की हालत में हुआ है सुधार
7 शहरों में 5 फीसदी से कम का परिवर्तन हुआ. इनमें दिल्ली और गाजियाबाद शामिल हैं और 16 शहर ऐसे हैं जहां PM 2.5 लेवल में 5 प्रतिशत या उससे अधिक बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र के शहर उन शहरों की सूची में शामिल हैं जिन्होंने 2019 और 2021 के बीच PM 2.5 के स्तर में बढोत्तरी दर्ज की है. चेन्नई, वाराणसी और पुणे NCAP शहरों की लिस्ट में सबसे अधिक सुधार दिखाते हैं.
(इनपुट: अनुष्का गर्ग)
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